Friday 6 March 2020

सौरभ प्रभात के हाइकु...

*मधुयामिनी~*
*श्वेत चादर देख* 
*आँखों में लाली*

*हाइकुकार - सौरभ प्रभात* 

व्याख्या - इसे लिखते वक्त जो भाव मेरे मन में उत्पन्न हुये थे, इसे आपके साथ साझा करना चाहता हूँ-

*मधुयामिनी*
          ये समयसूचक बिंब है, जो स्वयं में परिपूर्ण है। इसे पढ़ते ही पाठक के अंतर्मन में सुहागरात का दृश्य उद्धृत हो जायेगा।

*श्वेत चादर देख आँखों में लाली*
       आज भी कई स्थानों पर ये प्रथा प्रचलन में है कि सुहागसेज पर सफेद चादर बिछा दी जाती है ताकि नववधू के कौमार्य की पुष्टि हो सके। परंतु आधुनिक समय में एक पढ़ी लिखी लड़की के लिये यह प्रथा असहनीय है।पाठक सहज ही अनुभव कर सकता है कि सुहागसेज पर बिछी सफेद चादर देख कर दुल्हन के मन की पीड़ा आँखों में लाली बन तैर रही हैं या वो ये भी अनुभव कर सकता है कि स्त्री-पुरूष समानता के भावों से परिपूर्ण दुल्हन इसे देख कर आंदोलित हो जाती है और उसकी आँखों में गुस्से के लाल डोरे खिंच जाते हैं।
         पाठक यदि चाहे तो कर्ता को पुरूष रख कर भी समान भाव से इस बिंब को देख सकता है।
जैसे - कमरे में प्रवेश करते ही जब वर सुहागसेज पर सफेद चादर देखता है तो कौमार्य पुष्टि वाली बात जेहन में आते ही उसकी आँखों में आत्म-मुग्धता अथवा पौरूष (वासना कहना उचित नहीं होगा) की लाली दृष्टिगत होती है। या फिर ऐसे भी समझ सकता है पाठक कि वर, जो स्त्री-पुरूष समानता से अभिप्रेरित है, जब सुहागसेज पर सफेद चादर देखता है और वहीं अपनी पत्नी के चेहरे पर विषाद एवं असमंजस के भाव देखता है, तो उसे अपने परिवार के संकुचित सोच पर क्रोध आता है और यही क्रोध उसकी आँखों में लाली के रूप में परिलक्षित हो रहा है।

*आ० अनुपमा अग्रवाल जी के शब्दों में इस कृति की समीक्षा*

                
        ये हाइकु मानवीय संवेदनाओं का बहुत ही खूबसूरती के साथ निरूपण करती एक शानदार कृति है।
            इस रचना में प्रथम पाँच वाले बिंब में *मधुयामिनी* ----अर्थात् नवयुगल के प्रथम मिलन की रात्रि का वर्णन किया गया है।
मधुयामिनी एक पूर्णतः प्राकृतिक बिंब है जो हाइकु लेखन की सर्वप्रथम शर्त है।
      अब दूसरे बारह वाले बिंब पर यदि दृष्टि डालें तो ये बिंब अपने आप में बहुत कुछ समेटे हुये है।
         *श्वेत चादर देख* 
          *आँखों में लाली* ।   
      प्रथम दृष्टया इस बिंब को देखने से ये भाव उत्पन्न होते हैं कि
एक नववधु की मधुयामिनी का अवसर है।और उसी पल उसके सुहाग की मृत्यु हो जाती है। पति के शव को सफेद चादर में लिपटा देखकर वो न तो रो ही पाती है और न ही कुछ कह पाती   है।और बस इस असह्य दुःख की पीड़ा से उसकी आँखें लाल हो जाती  हैं और उसके आँखों की लाली को हम साफ साफ देख सकते हैं।
       भरपूर *आह के पल* हैं इस बिंब में। 
            
      दूसरी ओर यदि हम इस कृति का थोड़ी गहराई  से मनन करें तो हम पायेंगे कि इस कृति में  आह के नहीं  बल्कि *वाह के पल* भरपूर हैं। 
आईये देखते हैं कैसे.....
     मधुयामिनी का अवसर है।नववधु अपने कक्ष में बैठी है।
       कक्ष में पलंग पर *श्वेत चादर* बिछी है जो कि आमतौर पर मधुयामिनी की चंद विशेषताओं में से या फिर यूँ कहूँ कि परंपराओं  में से एक मानी जाती है।
         अब ये सफेद चादर का बिंब तो स्पष्ट हो गया।अब दूसरा दृश्य बन रहा है *आँखों में  लाली*-----तो जब नववधु मधुयामिनी में सर्वप्रथम अपने जीवनसाथी को देखती है तो लजा जाती है और लाज से उसकी आँखें लाल हो जाती हैं।हया की लाली उसकी आँखों में स्पष्टतः दृष्टिगोचर होती है।
ये एक भरपूर *वाह का पल* होगा जब पहली बार अपने जीवनसाथी का सामीप्य पाकर नव दुल्हन की आँखों में शर्म की लाली छा जाती है।
अतः ये हाइकु मानसिक बोधगम्य की श्रेणी  के अंतर्गत आता है, जहाँ पाठक अपने अनुसार कृति का अर्थ निकालता है।हाइकु में लेखक को कल्पना की स्वतंत्रता नहीं है परन्तु पाठक अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाने के लिये पूर्णतः स्वतंत्र है ।
           अब इसी बिंब में पाठक को एक और स्वतंत्रता है।यदि हम यहाँ कर्ता को बदल दें।अर्थात् मधुयामिनी को लेकर जितने सपने एक पत्नी अपनी आँखों में संजोये होती है, उतने ही सपने एक पति के भी होते हैं।अब यहाँ पाठक यह भी सोच सकता है कि श्वेत चादर में पत्नी का शव है,और मधुयामिनी के दिन अपनी पत्नी के शव को देखकर एक पति पर क्या बीती होगी? जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पुरुष सहजता से अपनी पीड़ा को नहीं दिखाते हैं।एक स्त्री रोकर अपना मन हल्का कर लेती है पर पुरुष तो वो भी नहीं कर पाते।और उसी अवसाद में डूबे पति की आँखों में लाली देखी जा सकती है।
          अब एक और भी अभिप्राय यहाँ हो सकता है----
          पत्नी की मृत्यु किन परिस्थितियों में हुयी?यह कृति में स्पष्ट नहीं है।अब यहाँ फिर पाठक स्वतंत्र है ये सोचने के लिए कि हो सकता है पत्नी के  साथ किसी ने कुकृत्य किया हो और परिणामस्वरूप पति की आँखें क्रोध से लाल हो गयी हैं।मानो आवेश से उसकी आँखों में खून उतर आया हो।
इस प्रकार, यदि हाइकु के नियमों के मापदंड पर इस हाइकु को परखा जाया तो ये हर तरह से एक श्रेष्ठ कृति है।

*आ० दीपिका पांडेय "क्षिर्जा" जी के शब्दों में इसी कृति की समीक्षा*

यदि हम इस कृति को देखें तो इसके अनुसार यहाँ आह और वाह पल दोनों ही दिखाई देते हैं जो इस हाइकु को अद्भुत बनाते है।
किंतु यहाँ 'श्वेत चादर' और 'आँखों में लाली' यदि इन शब्दों पर गौर किया जाए तो मैं यह पाती हूँ कि श्वेत चादर एक मानसिक बोधगम्य प्रश्न उकेरता है।कि सफेद चादर ही क्यों??जो इस हाइकु को सुदृढ़ बनाता है वहीं दूसरी ओर आँखों में लाली आह के पल को समेटते हुए नारी/पुरूष के क्रोध को दर्शाता है कि, वो यह इंगित करने का प्रयास करना चाह रही/रहा है कि आज भी नारी की पवित्रता और अस्मिता का उसे प्रमाण देना पड़ेगा??
किंतु यदि मैं इस कृति पर पुन: विचार करूँ तो यह पाती हूँ कि आँखों में लाली अर्थात सुखद अनुभव को दर्शाता है जो कि वाह के पल है।इससे कोई सरोकार नहीं कि चादर का रंग जो भी हो।अर्थात कुलमिलाकर कहा जा सकता है कि यह हाइकु बहुत कुछ बयां करता है।

*आ० अभिलाषा चौहान जी की दृष्टि से इस कृति की विशेषता*

प्रस्तुत हाइकु में रचनाकार ने भरपूर आह के पल प्रस्तुत किए हैं।मधुयामिनी अर्थात मधुर मिलन की बेला,जिसकी प्रतीक्षा हर नव युगल को होती है। लेकिन यहाँ पर श्वेत चादर बिछी हुई है,अर्थात कुछ अनिष्ट हो चुका है। खुशियों के स्थान पर दुख है, नेत्रों में लाली अर्थात रोने से
आँखें लाल है।यहाँ पर प्रथम बिंब सशक्त है और दूसरे बिंब के साथ मिलकर एक मार्मिक दृश्य उपस्थित कर रहा है, इसमें रचनाकार ने दृश्य के माध्यम से स्वयं कुछ न कहकर एक संपूर्ण बिंब नेत्रों के समक्ष ला दिया है।

लेखक - सौरभ प्रभात

8 comments:

  1. एक खूबसूरत कृति की शानदार समीक्षा 👏👏👏👏👌👌👌👌

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  2. बहुत सुंदर कृति

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    1. धन्यवाद भाई साहब

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  3. बहुत सुंदर हाइकु शिल्प और उसकी व्याख्या और समीक्षा बेहतरीन, हार्दिक बधाई 💐💐💐

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  4. बहुत सुंदर हाइकु सौरभ जी,आप सभी की बेहतरीन व्याख्या और समीक्षा ने इस कृति को और भी बेहतरीन बना दिया। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं👌👌💐💐💐

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया दी

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