Saturday 25 April 2020

2020 में हाइकु विश्वविद्यालय से क्षीरोद्र कुमार पुरोहित जी का एक ऐतिहासिक हाइकु...

[25/04, 9:27 PM] 

प्रक्षालक बू ~
दो हजार बीस की
लग्न पत्रिका 

हाइकुकार - क्षीरोद्र कुमार पुरोहित


सकारात्मक चर्चा व संशोधन पश्चात आ. क्षीरोद्र पुरोहित जी की इस कृति पर भिन्न-भिन्न हाइकुकारों की प्रतिक्रियाएँ इस प्रकार हैं -


आदरणीया कुमकुम पुरोहित जी के शब्दों में -
वर्तमान परिपेक्ष्य को प्रदर्शित करने वाला यह अति उत्तम और मार्मिक हाईकु है। करोना नामक इस भयंकर रोग से आज हमारा पूरा विश्व संकट ग्रस्त है।प्रत्येक कार्य स्थगित करने का फरमान जारी कर दिया गया है। इसी प्रकार लोगों को प्रत्येक वस्तु धोने और सेनेटाइजर करने की बाध्यता है ताकि हम सुरक्षित रहें । लोगों के वैवाहिक कार्यक्रम भी स्थगित और  बंद ही हो गये हैं । अतः जो भी खरीदारी  पूर्व से कर लिए गए  थे उसे भी भय से सेनेटाइजर किया जा रहा है।यहां तक कि लग्न पत्रिका को भी।दो हजार बीस की यह भयानक त्रासदी कभी भी भुलाया नही जा सकेगा, जिसमें लोगों को लोगों से मिलना तक प्रतिबंधित हो गया ।यह हाईकु इसी मार्मिक चित्रण की झलक है।
समीक्षक-
कुमकुम पुरोहित

अपने विचार आ. दीपिका जी ने कुछ इस तरह व्यक्त किया है-
आदरणीय,मार्मिकता को समेटे यह हाइकु वर्तमान स्थिति पर कोरोना जैसी महामारी को इंगित कर रहा है।जहाँ एक ओर प्रक्षालक का उपयोग हो रहा है।वहीं दूसरी ओर अनेक 2020 की अनेक शादियाँ समय से पूर्व ही स्थगित हो गई है।जिनका इस समय हो पाना असंभव है।उन्हें इंतज़ार करना पड़ेगा।यह दुखद स्थिति है।
समीक्षक-
दीपिका पांडे 

अपनी समीक्षा में अनंत पुरोहित अनंत जी के उद्गार-

इस सुन्दर कृति के लिए बड़े भाई को ढेरों बधाई सह शुभकामनाएँ। कृति के सौंदर्य की वजह से समीक्षा देने का लोभ सँवरण न कर सका।

प्रक्षालक बू~ यह इस कृति का प्रथम बिंब है। सुगंध इंद्रियबोधगम्य विषय के अंतर्गत हाइकु में मान्य है और एक अच्छे हाइकु के गुणधर्म में आता है।

साथ ही इसका दूसरा बिंब है *दो हजार बीस की लग्न पत्रिका*। मेरे दृष्टिकोण से इसमें दो अर्थ निकलते हैं। एक तो यह कि एक लग्न पत्रिका है जिसमें किसी का विवाह सन 2020 को होना है। और सन 2020 में संपूर्ण विश्व कोरोना महामारी की भयानक त्रासदी से गुजर रहा है। ऐसे विकट समय में जब इस महामारी की कोई औषधि विश्व के पास नहीं है तब केवल सुरक्षात्मक उपायों से ही इससे बचा जा सकता है और हाथों को इस विषाणु से बचाने हेतु हाथ व लग्न पत्रिका दोनों को ही प्रक्षालक (sanitizer) से प्रक्षालित किया गया है।

इसके अलावा एक और गूढ़ अर्थ भी निकाला जा सकता है। सन 2020 की लग्नपत्रिका में कोरोना महामारी की वजह प्रक्षालक की गंध डाल दी।

निस्संदेह यह रचना कालजयी रचना है क्योंकि वर्षों पश्चात भी इसे पढ़कर व्यक्ति इस भयानक त्रासदी को अनुभव कर सकता है। पुनः बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ ।

समीक्षक-
अनंत पुरोहित अनंत

आदरणीया जयश्री जी इस तरह लिखती हैं-

      क्षीरोद्र भैया द्वारा रचित यह हाईकू वर्तमान काल पर आधारित.बहुत सुंदर हाईकू है।जिसमें पहला बिंब प्रक्षालक बू अर्थात सेनेटाईजर की गंध आ रही है।जो कि एक ईंद्रिय बोधगम्य जनित बिंब है।

दूसरा बिंब

दो **हजार*बीस* की ** ** *लग्न* *पत्रिका*

दोहजार बीस की लग्न पत्रिका कहें तो ईसमें कोई विशेष बात नही है परंतु वर्तमान समय में जो *कोरोना* नामक भयंकर माहामारी फैला हुआ है उसे देखते हुए ईसमें विशेष बात हो जाती है कि अभी सब ईस बीमारी से ईतने डरे हुये हैं कि घर में यदि लग्न पत्रिका भी आ रहा है तो उसे भी लोग सेनेटाईजर से धो रहे हैं।ईस बात से ईसकी भयानकता का अनुमान लगाया जा सकता है।

वर्तमान काल पर आधारित यह हाईकू  हमारे हाईकू के नियमानुसार बहुत सुंदर हाईकू है।
समीक्षक-
जयश्री पंडा

[25/04, 11:30 PM] 
अंत में आ. रुनु बरुआ जी लिखती हैं-
सब ने बहुत सुन्दर और सार्थक समीक्षा की है। मेरे लिए कुछ नया लिखने को बचा ही नहीं !  फिर भी लग्न पर लिखना चाहुगीं कि एक किशोर ज्योतिष ने कुछ महीने पहले ही भविष्य वाणी की थी कि कई ग्रहों के एक ही पथ पर आने से विश्व को महामारी के संत्रास से गुजरना होगा और मई के अंत तक यह लग्न रहेगा । जो ज्योतिष चर्चा करते है या ज्ञानी है वह निश्चय ही लग्न पत्रिका से ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति और उसके फल को समझ सकते है । यह रचना समसामयिक विषय पर आधारित अपने आप में एक सम्पूर्ण सारगर्भित सृजन है। विषाणु मुक्त करने हेतु प्रक्षालक बू  ( सेनिटाईजर की गंध) एक बिम्ब है । 2020 की लग्न पत्रिका में विवाह संबंधित मुहूर्त जानकारी दी गई होती है । अतः सामाजिक मेल मिलाप के वर्जन के समय इन पत्रिकाओं अथवा नियमों को पालन करने का कोई औचित्य नहीं रहता। इस सदी की बहुत ही महत्वपूर्ण घटना को आदरणीय क्षीरोद कुमार पुरोहित जी ने अपनी रचना में चिरस्मरणीय कर दिया है । आपको बहुत बहुत बधाई
समीक्षक-
रुनु बरुआ 

इन समीक्षाओं ने इस कालजयी रचना के सभी पहलुओं को उजागर किया जिसने मात्र 17 वर्णों के भीतर सारे नियमों के अंदर सदी की इस भीषण त्रासदी को अपने भीतर समाहित कर लिया। बतौर संपादक मैं लेखक को इस सुन्दर कृति के लिए बधाई व शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ। सचमुच यह कृति इस सत्र को चिरस्मरणीय बनाती सराहनीय कृृृति है। 

       जिन दिनों हम लग्न पत्रिकाओं के जरीए शादी-ब्याह आदि कार्यक्रमों में हर्षित मस्ती कर रहे होते हैं, उन दिनों हम कोरोना जैसे वायरस से जूझते जिन्दगी और मौत का सामना कर रहे हैं। इस विडम्बना को भलीभाँति पिरोए हुए कृति हाइकु के रुप में विस्फुटित हुआ आ.क्षीरोद्र कुमार पुरोहित जी की कलम से। यह समसामयिक रचना आज के परिवेश को अपने में समेटे हुए बहुत से तथ्य सामने रखने में सक्षम है, जो हाइकु का खूबसूरत गुण है।

        वहीं दूसरी ओर दो हजार बीस की लग्न पत्रिका में प्रक्षालक बू की शादी का उल्लेख नजर आता है। हालाँकि यह तथ्य एक काल्पनिक है, परंतु दोनों बिम्ब को साथ देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि कोरोना के आने पर सबकुछ उलटफेर हो गया और कुछ भी संभव हो सकता है। अतः इस पत्रिका में लगता है कि प्रक्षालक बू का लग्न लगा है और इस काल्पनिक विवाह में हम मानव आमंत्रित हैं। जिसमें न चाहते हुए भी जाना पड़ेगा, रुबरु होना पड़ेगा। 

           यही तो हाइकु की खासियत है कि वक्त के यथार्थ चिह्न को हम उसके समीक्षा के माध्यम से कल्पनाओं के पंख डालकर देखें तो हाइकु बहुत ही रोचक भरे लम्बी कहानी हमारे समक्ष प्रस्तुत होता है श्रेष्ठ हाइकु। आप कृति को जितनी बार नजर दें उतनी दफा मर्म और कहानी आपके जेहन में भर देता है।

          वाह्ह बहुत ही सुंदर और मर्मस्पर्शी कृति आ.क्षीरोद्र कुमार पुरोहित जी। आपको बहुत-बहुत बधाई...

संपादक-
नरेश जगत 
हाइकु विश्वविद्यालय
25 अप्रैल 2020

[26/04, 6:00 PM] मैं सौरभ प्रभात: समीक्षा बतौर अपने शब्दों से इस कृति को आप सबको सुपूर्द करता हूँ...
प्रक्षालक बू~
दो हजार बीस की
लग्न पत्रिका

हाइकुकार - आ० क्षीरोद्र कुमार पुरोहित 

समसामयिक आधार पर लिखा यह हाइकु वर्तमान परिदृश्य का एक जीवंत उदाहरण है। हाइकुकार की यह एक उत्कृष्ट कृति है। हाइकु की यह विशेषता है कि यह पाठकों को कृति का अर्थ निकालने और भाव समझने की पूरी स्वतंत्रता देता है। आइये देखें, मैनें क्या देखा-

*दो हजार बीस की लग्न पत्रिका*
          यह अपने आप में पूर्ण स्वतंत्र बिंब है। इसे पढ़कर पाठक के मन में छवि उभरेगी एक लग्न पत्रिका की, जिसपर वर्ष दो हजार बीस की तिथि अंकित है। निश्चित तौर पर किसी स्नेहीजन की लग्न पत्रिका हाथ में आने पर चित्त प्रसन्न होता है। अतः यह *वाह* के पल हैं। 

अब दूसरा बिंब देखें -
*प्रक्षालक बू*
          प्रक्षालक (सैनेटाइजर)  की गंध एक पूर्ण प्राकृतिक बिंब है, जो घ्राणेन्द्रियों से ज्ञात है। यह पढ़ते ही पाठक के मानस पटल पर वैश्विक महामारी कोरोना से संबंधित एक चित्र स्वतः ही बन जायेगा।

इन दोनों बिंबों के एक साथ आते ही *वाह* के पल *आह* में बदल जाते हैं। तुरंत ही पाठक के हृदय में एक टीस सी उठती है कि क्या समय आ गया है, अपने प्रिय की लग्न पत्रिका को भी पहले सैनेटाइज करना पड़ रहा है। साथ ही कोरोना संकट से जुड़े सभी दुष्कर यादें अचानक ही उसके मस्तिष्क पर अंकित होने लगेंगी और उसका मन कसैला हो जायेगा।

हाइकुकार आ० क्षीरोद्र साहब की यह एक कालजयी कृति है। सादर नमन आपके लेखनी को।

-सौरभ प्रभात 
मुजफ्फरपुर, बिहार

[26/04, 10:24 PM] क्षीरोद्र पुरोहित का आभार...
हाइकु
पटल को सादर नमन 
प्रिय साथियों , 
कल मैंने एक हाइकु पटल पर समीक्षार्थ रखा ।आप सबने मेरी कृति की बहुत सराहा । अपने मंजे हुए अनुभव से उसकी  समीक्षा भी किया ।इस कृति को ऐतिहासिक,कालजयी आदि उपाधि दी।
यह कृति इन उपाधियों के योग्य है या नही यह तो मै नही जानता परंतु यह मेरी अब तक की सबसे अच्छी कृति है । इस कृति का श्रेय आप सब को जाता है।
यह बात केवल विनम्रता और औपचारिकता वश नहीं कह रहा हूँ बल्कि हृदय की गहराई से पटल को समर्पित करता हूँ। मैं पिछले एक साल से हाइकु लिख रहा हूँ ।इसी अप्रैल को पूरा एक वर्ष हो रहा है ।हालांकि मैं बहुत बाद मैं इस पटल से जुड़ा ।  मेरे प्रारंभिक हाइकु और आप सबके सानिध्य के बाद के हाइकु में बहुत अंतर है ।
  मेरी पुरानी रचनाओं को मैं स्वयं ही अब नकार देता हूँ और उनको इस पटल के नियमों में पिरोने का प्रयास कर रहा हूँ ।
 जहां तक कल की मेरी रचना की बात है ये अनायास ही पिछले 3-4 महीनों की वैश्विक त्रासदी को हाइकु में गूँथने का प्रयास किया और आदरणीय नरेश जगत जी के प्रोत्साहन और मार्गदर्शन तथा अनुज अनंत के स्नेहिल सुझाव से हाइकु अच्छा बन पड़ा। बाद में आप सबकी समीक्षा से  ऐतिहासिक हो गया ।   
 सर्व आ0 सौरभ जी, मसखरे जी,तुकाराम जी, सामल जी,आदरणीया विदुषी जी, निधि जी,दीपका जी,कुमकुम,जयश्री पंडाजी,  अनुपमा जी,अभिलाषा जी,ज्योति जी , सुकमोती जी आदि सभी समीक्षकों का आभार।

 क्षीरोद्र कुमार पुरोहित

इस कृति पर विशेष चर्चा जारी है...

[26/04, 11:07 PM] 
Dr. Pushpa Singh g: जिज्ञासावश आप सभी अनुभवी,ज्ञानी जनों से जानना चाह रहे हैं की कोरोना खत्म होने के बाद ऐसे हाइकु जो कोरोना से सम्बंधित है उन्हें कैसे समझ पाएंगे?
  इसमें कोरोना वायरस का जिक्र तो कहीं नहीं है?

राजकुमार मसखरे जी: ये भी कालजयी बनाने के यक्ष प्रश्न .... ये सामयिक रचना कुछ साल बाद अप्रासंगिक हो सकता है।

Anant Purohit g: क्या आपको लगता है कि इस त्रासदी को विश्व कभी भूल सकेगा?

राजकुमार मसखरे जी: यह भी है,,,
       समय काल के अनुसार मस्तिष्क पटल से विस्मृत भी हो जाता है।

Anant Purohit g: अमेरिका के एक वैली मे प्रदूषण(खासकर कोहरे) के वजह से कुछ एक दो हजार लोग मर गए थे वह आज तक नहीं भूल पाया है विश्व 

औल यह तो ऐसी घटना है जिसमें विश्व के लगभग दो सौ देश चपेट में हैं।

राजकुमार मसखरे जी: प्रेमचंद की कहानी सवा सौ साल बाद आज भी सामयिक व प्रासंगिक लकता है।

Anupama Agrawal g: आदरणोय भोपाल गैस त्रासदी ज आज से लगभ 35 वर्ष से भी पूर्वहुई थी उससे भी हमारी आज की पीढ़ी अनभिज्ञ नहीं है।तो ये तो.....कभी न भुलाई जा सकने वाली त्रासदी है।

राजकुमार मसखरे जी: हम भी सहमत हैं साहेब जी ,जी मात्र ये एक पक्ष है, सामान्य विचार है।
मैं तो प्रेमचंद का भी उदाहण दिया ,मैं तो आपकी बातों पर सहमत हूँ,,, साहित्य में ये आगे पीछे के प्रभाव को सोचना पड़ता है,,, यहाँ कई समसामयिक हाइकू  रचना चयनित हुए हैं ,,,उन सभी के लिए भी है,,,
        हाइकू कल्पना नही है, जीवंत है ,जो दिखता है,घटता है ,अनुभव होता है वही लिखा जाता है।

Dr. Pushpa Singh g: प्रश्न ये नहीं कि इस महामारी को लोग बरसों भूल नहीं पाएंगे। किंतु ये पता कैसे चले कि ये हाइकु कोरोना संकट के समय की है।

सौरभ प्रभात जी: क्या ऐसा कोई समय या आपदा पहले कभी आई है जब सैनेटाइजर का उपयोग इस हद तक हुआ हो....अभी बच्चा बच्चा इसका नाम जान रहा है.... प्रक्षालक बू स्वयं ही कोरोना से संबंध जाहिर कर पाने में सक्षम है।

Deepika Pandey g: आ०यह बात हाइकु से स्वतः स्पष्ट हो जायेगी।मैं बताने का प्रयास करती हूँ। हाइकु में दो बातें स्पष्ट हैं...
1.प्रक्षालक बू
2.2020 का कार्ड
पाठक स्वतः सोचेगा कि 2020 का शादी का कार्ड और ऊपर से प्रक्षालक बू??इतना काफी है उसकी जिज्ञासा को शांत करने के लिये कि ऐसा क्यों हुआ होगा।जब वह और इसके बारे में जानने का प्रयास करेगा तो उसे सब समझ आ जायेगा कि प्रक्षालक बू और 2020 के शादी कार्ड के बीच क्या सम्बंध है, जब ये चिन्तन करने लगेगा पाठक तो स्वतः ही इस भयंकर महामारी को पायेगा। इससे जुड़ी सभी घटनाएँ फिर सामने होंगी। हालाँकि इस कृति में कोरोना का वर्णन नहीं है, परंतु उससे जुड़े बिम्ब जो पाठक को चिन्तन करने पर विवश करेगा और विचार करने पर कहीं न कहीं कोरोना के त्रासदी को जरुर पायेगा।

तुकाराम पुंडलिक जी: प्रक्षालक जंतूनाशक हैं, यह बात तो कालातीत हैं । कोई तो बिमारी फैल गई हैं ; यह जरूरी नहीं की वो बिमारी कोरोना ही हो ।

सौरभ प्रभात जी: सहमत हूँ आ०

परंतु किसी भी कालजयी कृति का उद्भव इतिहास अथवा वर्तमान को परिलक्षित करते हुये ही होता है, भविष्य को नहीं। आज से पहले यदि प्रक्षालक का प्रयोग इस चरम तक हुआ हो, तो हमें ज्ञात नहीं, कृपया बताने का कष्ट करें.... रही बात भविष्य में उत्पन्न किसी रोग और प्रक्षालक के संबंध का, तो कृति में उपस्थित *दो हजार बीस* क्या कोरोना से संबंध जोड़ने का लिये पर्याप्त नहीं है.... इसमें तो शायद कोई संशय नहीं होगा आपको आदरणीय कि यह रोग जिसे *कोरोना संक्रमण* के नाम से जाना जा रहा है, यह स्वयं एक कालजयी आपदा है, इसके छींटे मानव मानसपटल से धूमिल तो कभी नहीं होंगें... और *2020* का जब भी नाम आयेगा तो कोरोना संक्रमण काल के लिये इसे याद किया जायेगा.... *प्रक्षालक बू* ने इस बिंब को और ढृढ़ता प्रदान की है मात्र...

Dr. Pushpa Singh g: इसमें तो स्पस्ट है 2020
और वर्षों तक लोग इस महामारी को भूल नही पाएंगे।
इस रचना पर कोई प्रश्न ही नहीं।

हम सब नवोदित हाइकुकार यदि सीखना चाहते हैं तो जिज्ञासा तो होगी ही।
हर विधा में कोई भी पारंगत नहीं होता।इस पटल से सम्बंध अब तो इतना गहरा बन ही गया है कि कुछ पूछा जा सके,सीखना निरन्तर जारी है,फिभी यदि किसी को बुरा लगा हो तो क्षमा...
लेकिन इस बात का वादा नहीं कर सकते कि भविष्य में फिर कभी जिज्ञासा नहीं होगी।

[27/04, 2:13 PM] सौरभ प्रभात जी: क्षमा माँगने की कोई आवश्यकता ही नही है आदरणीया।

पटल का मुख्य उद्देश्य ही चर्चा परिचर्चा से ज्ञानकोश में उत्तरोत्तर वृद्धि करना है। जिज्ञासा तो उठती ही रहेगी और निराकरण भी होता ही रहेगा, हमलोग तो इस सफर में कोई हिस्सेदारी दे सकें, वही जीवन का आनंद है। सादर नमन🙏🏻🌷

हाइकु विश्वविद्यालय

Thursday 23 April 2020

कुसुम कोचर जी की प्रथम हाइगा...

आदरणीय श्री  नरेश कुमार जी 'जगत'
               सादर नमस्कार! सौभाग्यवश आज पूर्वाशा हिंदी अकादमी पटल पर आपसे 'हाइगा' विधा का कुशल प्रशिक्षण मिला। यह मेरे लिए अत्यंत कौतूहल का विषय था कि 5,7,5 वर्णों में 2 वाक्य और उसने भी एक कविता लिखी जा सकती हैं। दो छोटे वाक्य, जो एक दूसरे के कारक ना हो, और ना ही कथन हो फिर भी एक प्राकृतिक दृश्य को अत्यंत सूक्ष्मता व सुंदरता से वर्णित करते हो, तुकबंदी ना हो, ना ही वे तुलनात्मक हो, और सबसे बड़ी बात कि वह एक फोटो क्लिक हो, शुरुआत में सोचकर यह कठिन लग रहा था, पर यह कहते हुए गर्व महसूस हो रहा है कि आपके सुघड़ मार्गदर्शन से यह कठिन विधा भी हम सब के लिए संभव हो सकी। रंगों से चित्रांकन मेरा शौक रहा है पर शब्दों से चित्रांकन मैंने आपसे आज सीखा। यद्यपि मुझे कई बार संशोधन की आवश्यकता पड़ी पर आपके मार्गदर्शन से उत्तरोत्तर सुधार के प्रति आशान्वित हूं। मैं हृदय-तल से आप के प्रति आभार व्यक्त करती हूं। आपका मार्गदर्शन यूं ही मिलता रहे, यही कामना है।
                     -कुसुम  कोचर 
                         कोलकाता
                         23/4/20
मेरी प्रथम कृति...
आ. जगत जी की समीक्षा...
          आ.कुसुम कोचर जी आपकी प्रथम हाइगा रचना के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई, यह कृति बहुत ही सुंदर है...
       मुस्कुराहट मानव की एक भावनात्मक प्राकृतिक क्रिया है जिसे अंतरमन से ही विस्फुटित कर पाते हैं, जो ओछी नहीं हो सकती और इसके लिए हमारे समक्ष किसी खास कारण होना जरुरी है, जिससे हमारे अंदर की खुशियाँ मुस्कुराहट स्वरुप मानव पटल में नजर आता है। इससे हमारे आसपास के लोगों में भी सहज प्रसन्नता संचार हो जाता है। यह आपका सराहनीय प्रथम बिम्ब है।
       दूसरा बिम्ब आपने लिया है कि वर्षा का पानी जो बालों को भिगोया है, उसे किसी युवति ने गर्दन को झटका देकर मुस्कुराते हुए उक्त पानी के बूंदों को अपनी ओर छिटका दिया। यह बहुत ही सुंदर यौवन स्मृति का चित्रण है। हो सकता है कि युवति हमें रिझाने या छेड़ने के लिए ऐसा किया हो। इस अनुकृति में यह तो स्पष्ट है कि युवति में मादक भरी चंचल प्रवृत्ति है और यह उसके खुशियों को सहज ही बोध कराने में सफल हो रहा है। यह घटना किसी के भी साथ घटे वह अवश्य अविस्मरणीय होगा।
        इस कृति में आपने यौवनपन के एक खास पल को लेकर इस प्रकार दर्शाया है, मानो यह चित्र जीवंत हो और इसके थोड़ी ही देर पूर्व ये घटना घटी हो।
       बहुत ही सुंदर हाइगा के शिल्प में एक भावनात्मक कृति साहित्यिक पटल में प्रदान करने के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आ.कुसुम कोचर जी, सदैव ऐसे ही भावनात्मक कृतियों से हमें विभोर करती रहें।

आ.अनंत पुरोहित जी की समीक्षा...
      आदरणीया कुसुम कोचर जी को उनके प्रथम हाइगा की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ।

आपकी यह कृति इतनी सुंदर है कि इसमें समीक्षा देने का अपना लोभ मैं सँवरण न कर सका।

       इस कृति की समीक्षा करने से पूर्व हाइकु और हाइगा में कुछ अंतर जान लेना आवश्यक है। हाइकु और हाइगा दोनों ही संरचना की दृष्टि से दोनों में ही 5-7-5 का वर्णक्रम होता है। यह कृति एक चित्र के ऊपर लिखी गई है। स्पष्ट है कि यह एक हाइगा है और यह हाइगा का मूलभूत विशेषता है कि इसे किसी चित्र पर लिखा जाता है। दो जापानी शब्दों 'हाइ' और 'गा' से मिलकर बने शब्द 'हाइगा' का अर्पथ है चित्राभिव्यक्ति। परंतु यहाँ पर एक महत्वपूर्ण प्रश्न और भी विचारणीय है कि क्या संरचनात्मक दृष्टि से हाइकु की तरह दिखने वाले हाइगा का चित्र से इतर भी कोई अस्तित्व है? यदि है तो फिर सभी हाइकु को एक चित्र के साथ व्यक्त कर देने पर वह हाइगा बन सकता है। इससे स्पष्ट है कि चित्र से हटकर इसका कोई अस्तित्व नहीं हो सकता तभी यह हाइगा है। यही इस विधा को हाइकु से अलग बनाती है। चित्र से हटाकर देखने पर यह अपना अस्तित्व खो देती है।

     अब आपकी रचना पर विचार करते हैं। जब इस कृति को संलग्न चित्र के साथ देखते हैं तो प्रथम बिंब *मुस्कराहट* पूर्णतः एक स्वाभाविक क्रिया है जो मानव मन के भावों को व्यक्त करता है। चित्र में युवती की मुस्कान को व्यक्त करता सुन्दर प्रथम बिंब है आपकी कृति में। साथ ही दूसरा बिंब है *गेसुओं से छिटके वर्षा की बूँदें*। वैसे तो वर्षा हर किसी को प्यारी लगती है किंतु अक्सर यह नवयुवक/नवयुवती को खास आकर्षित करती है। ऐसे में चित्र की युवती की भीगी व बिखरी लटों ने स्पष्ट कर दिया है कि वर्षा पश्चात/दौरान युवती ने अपने बाल झटके हैं और वर्षा की बूँदें छिटक रही हैं। यह मोहक अदाएँ युवतियाँ बहुधा तब दिखाती हैं जब उनके अंतर हृदय को कोई बात गुदगुदा जाए। इस पल को पूर्णतः व्यक्त करती हुई आपकी यह कृति अत्यंत सराहनीय है।

       अब हाइकु से तुलनात्मक दृष्टिकोण पर विवेचना करें तो हम इसे चित्र से पृथक कर विचार करना होगा ऐसे में प्रथम बिंब *मुस्कराहट* अधूरा हो जाता है अतः चित्र से इतर इस कृति का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है।यही हाइगा का मूलभूत गुणधर्म है।

आपकी यह कृति एक सुन्दर हाइगा है। पुनश्च आपको कोटिशः बधाई व शुभकामनाएँ।

हाइकु विश्वविद्यालय ब्लाँँग

मनोरमा जैन "पाखी" जी के शब्दों से आइए हाइगा को समझें...

*हाइगा*
23/04/2020
मनोरमा जैन पाखी 
         हाइकु की तरह ही हाइगा भी जापानी कृति है। इसका अपना अलग अस्तित्व है।17वर्णों में जहाँ हाइकु कैमरे की नज़र से दृश्य को देखता है वहीं हाइगा 17वर्णों में चित्र या दृश्य को वर्णित करता है। प्राकृतिक बिंब हाइगा में भी आवश्यक है। 
हाइगा दो शब्दों से मिलकर बना है हाइ+गा अर्थात् हाई --चित्रकारी या पेंटिंग,गा--कविता।
मूलतः हाइगा को हम चित्र कविता कह सकते हैं।
हाइगा काप्रारंभ 17वीं शताब्दी से माना जाता है।तब हाइगा रंग और ब्रुश से बनाया जाता था फिर उसमें कविता लिखी जाती थी।
आज कालांतर में डिजीटल फोटोग्राफी जैसी आधुनिक विधा से हाइगा लिखा जा रहा है।
यद्यपि भारत में जापानी विधाओं को लेकर विरोध है ।कुछ इसे सृजन नहीं मानते और कुछ सिरे से नकारते हैं कि यह विदेशी है ,उस वक्त भूल जाते हैं कि  विदेशी वस्त्र,श्रृँगार प्रसाधन, खाद्य पदार्थ ,मोबाइल ,पेन आदि बहुत सारा सामान विदेशों का उपयोग करते हैं।तब वह विदेशी नहीं लगता?साहित्य विदेशी !!
   तमाम विरोध के बावजूद कुछ रचनाकार हाइकु,हाइगा,हाइबन आदि  जापानी विधाओं पर भारत में काम कर रहे हैं। 
जगत नरेश जी के अनुसार , *चित्र में क्या है उसे बताना नहीं,उसमें क्या हुआ होगा कि ऐसा चित्र बना ?उसका वर्णन करना ही हाइगा है।*
       हाइगा में स्वयं को अलग रख कर चित्र पर गहन बिंब को परखना होता है।प्रतीकात्मक भावनाएँ अमान्य होती हैं।हाइकु की तरह ही एक प्राकृतिक बिंब अनिवार्य होता है।बिना चित्र के हाइगा मान्य नहीं।
हाइगा से संबंधित सामान्य नियम आद. जगत नरेश जी के अनुसार  इस प्रकार हैं--
हाइगा :- 5,7,5 के तीन पंक्तियों में और दो बिम्बों में की जाने वाली अभिव्यक्ति, जिसमें किसी विशेष पेण्टिंग की व्याख्या करती हो और वह लेख पेण्टिंग में ही हो वह हाइगा कहलाती है। इसमें हाइकु के नियम क्रमांक 6 के मानवीकरण के अलावा सभी नियम लागु होते हैं। 

1. दो वाक्य, दो स्पष्ट बिम्ब हो।
2. किसी एक बिम्ब में प्राकृतिक का होना अनिवार्य है।
3. दो वाक्य, 5 में विषय और 12 में बिम्ब वर्णन हो सकता है।
4. दो वाक्य, विरोधाभास भी हो सकते हैं।
5. स्पष्ट तुलनात्मक न हो।
6. कल्पना व मानवीयकरण न हो ।
7. वर्तमान काल पर हो।
8. एक पल की अनुकृति, फोटोक्लिक हो।
9. कटमार्क (दो वाक्यों का विभाजन) चिन्ह हो।
10. दो वाक्य ऐसे रचे जाएँ जो एक दूसरे के पूरक न होकर कारण और फल न बने।
11. रचना में बिम्ब या शब्दों का दोहराव न हो।
12. तुकबंदी से बचें।
13. 5 वाले हिस्से में क्रिया/क्रियापद और विशेषण न हो।
14. 12 वाले हिस्से में एक वाक्य हो।
15. बिना बिम्ब के केवल वर्तनी न हो।
16. पंक्तियाँ स्वतंत्र न हों।
17. विधा प्रकृति मूलक है, किसी धर्म या व्यक्ति विशेष न हो। 

*मेरे द्वारा सृजित हाइगा...* 

समीक्षा आद. जगत नरेश जी द्वारा 
*सुंदर अनुकृति आदरणीया पाखी जी 👌👌 वास्तव में वर्षा वृक्षों पर ही निर्भर है। आपके इस सदृश्य हाइगा में बेहतरीन संदेशात्मक मर्म छुपे हुए हैं।*
    *एक तो बारिश का अंतिम चरण दिखाई पड़ रहा है और लगता है कि कुछ बूँदें अब भी टपक रहे हैं और वो बूँदें धरातल नहीं पहुँच पा रहे हैं।*
     *दूसरा यह कि बारिश वृक्षों पर ही निर्भर होता है।*
    *तीसरा यह कि वर्षा के बाद बूँदें वन में गीले स्वरुप ठहरी हुई हैं।*

मनोरमा जैन पाखी

Tuesday 7 April 2020

हाइकु के विभाग

हाइगा :- 5,7,5 के तीन पंक्तियों में और दो बिम्बों में की जाने वाली अभिव्यक्ति, जिसमें किसी विशेष पेण्टिंग की व्याख्या हो और वह लेख पेण्टिंग में ही हो वह हाइगा कहलाती है। उदाहरण उपरोक्तानुसार है।

हाइकु :- 5,7,5 के तीन पंक्तियों में और दो बिम्बों में की जाने वाली अभिव्यक्ति, जो मानवीय संवेदनाओं का उल्लेख न करते हुए संवेदनशील का होना और प्राकृतिक का होना पाया जाए। ऐसा लेख हाइकु कहलाता है।

उदाहरण :-

गंगा का तट -
ग्रहण मोक्ष पर
वस्त्र के ढेर।

संजय कौशिक "विज्ञात"

सैर्न्यू :- 5,7,5 के तीन पंक्तियों में और दो बिम्बों में की जाने वाली अभिव्यक्ति, जिसमें धार्मिक या व्यक्ति विशेष और व्यंग्यात्मक श्रेणी की कृति पाए जाते हैं। ऐसा लेखन सैर्न्यू कहलाते हैं।

उदाहरण :-

हल्का भूकंप ~~
सब से आगे भागा
राज ज्योतिषी।

संजय सनन

डेस्क हाइकु :- 5,7,5 के तीन पंक्तियों में और दो बिम्ब में की जाने वाली अभिव्यक्ति जिसमें पूर्णतया काल्पनिक हो, ऐसी कृति डेस्क हाइकु कहलाती है।

कन्नौज इत्र...
डाकिए के थैले में
उसका खत।

संजय सनन

हाइबन :- एक ऐसा तथ्य जो यथार्थ हो और वह तथ्य प्राकृतिक न लग रहा हो तो उस तथ्य को स्पष्ट करते हुए डायरी की तरह उस तथ्य का वर्णन करके अंतिम में 5,7,5 के तीन पंक्तियों में और दो बिम्बों में की जाने वाली सार तत्व की अभिव्यक्ति हाइबन कहलाती है।

उदाहरण :-

     आश्चर्य कर देने वाला बोलीविया का वह स्थान, जहाँ हजारों तालाब सूखकर मोटी नमक की परत जमी हुई है। यह परत दूर-दूर तक फैले होने के कारण इसका छोर एक नजर में दृष्टिगोचर नहीं हो पाता और पता नहीं चलता कि धरती कहाँ तक और आसमान कहाँ तक है। इस तरह दोनों का संगम इस तरह विलय हो जाकर आकाश का प्रतिबिम्ब शीशे की तरह इस नमक के परत में नजर आता है कि यहाँ पहुँचने पर ऐसा लगता है मानो हम आसमान में बादलों के साथ सैर कर रहे हों। जहाँ हम मंत्रमुग्ध होकर विचरण करते कब समय व्यतीत हो जाता है पता ही नहीं चलता। सारी दुनिया को भूलकर यहाँ खो जाना किसी जादुई से कम नहीं। जी करता है बस हम यहीं के होकर रह जायें। सचमुच प्रकृति का यह अद्भूत दृश्य कोई सपनों से कम नहीं। इस अकल्पनीय दृश्य को हम कैमरे में कैद करना कदाचित नहीं भूलेंगे। जहाँ हम पाते हैं...

नोन परत --
बादलों के बीच वो
सपरिवार ।

इनके साथ ही हमें बिम्ब और विभाग के अनुसार हाइकु के कुछ नियम फेर बदल हो सकते है। परंतु हाइकु के लिए यह नियम आवश्यक होता है। नियम...

1. दो वाक्य, दो स्पष्ट बिम्ब हो।
2. किसी एक बिम्ब में प्राकृतिक का होना अनिवार्य है।
3. दो वाक्य, 5 में विषय और 12 में बिम्ब वर्णन हो सकता है।
4. दो वाक्य, विरोधाभास भी हो सकते हैं।
5. स्पष्ट तुलनात्मक न हो।
6. कल्पना व मानवीयकरण न हो ।
7. वर्तमान काल पर हो।
8. एक पल की अनुकृति, फोटोक्लिक हो।
9. कटमार्क (दो वाक्यों का विभाजन) चिन्ह हो।
10. दो वाक्य ऐसे रचे जाएँ जो एक दूसरे के पूरक न होकर कारण और फल न बने।
11. रचना में बिम्ब या शब्दों का दोहराव न हो।
12. तुकबंदी से बचें।
13. 5 वाले हिस्से में क्रिया/क्रियापद और विशेषण न हो।
14. 12 वाले हिस्से में एक वाक्य हो।
15. बिना बिम्ब के केवल वर्तनी न हो।
16. पंक्तियाँ स्वतंत्र न हों।
17. विधा प्रकृति मूलक है, किसी धर्म या व्यक्ति विशेष न हो।

मुख्य संचालक
हाइकु विश्वविद्यालय
नरेश कुमार जगत "प्रज्ञ"

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