Friday 21 February 2020

नीतू जी का हाइकु सफर...

*हाइकु की यात्रा और मेरा दृष्टिकोण*

सर्वप्रथम प्रस्तुत है एक मनहरण घनाक्षरी जिसके माध्यम से हाइकु विधा को मैंने सरलता से समझा और पहचाना है। उन्हें  नियमों के माध्यम से समझाने का प्रयास करती हूँ   ..... 
*मनहरण रचना*
 
प्राकृतिक मूल विधा,
हाइकु  निराली कही,
ठोस दृश्य देखकर, 
बिम्ब में सजाइये।

तुकबंदी क्रियापद,
विशेषण व वर्तनी,
बिम्ब जो स्वतंत्र बने,
कथ्य से बचाइये।

पर्व, प्रथा,वर्तमान,
एकपल अनुकृति,
स्पष्ट तूलना से बचें,
यथार्थ दिखाइये।

कारण का फल दोष,
मानवीकरण छोड़,
योजक का चिन्ह लगा,
हाइकु बनाइये।

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

हाइकु कविता अनुभूति के चरम क्षण की कविता है। हाइकु के जानकारों का मानना है कि इस विधा के बीज प्राचीन काल में भारत की भूमि पर ही रोपे गए थे। पर हाइकु को काव्य-विधा के रूप में प्रतिष्ठा प्रदान की मात्सुओ बाशो (१६४४-१६९४) जापान ने। बाशो के हाथों सँवरकर हाइकु १७ वीं शताब्दी में कविता की युग-धारा के रूप में प्रस्फुटित हुआ। आज हाइकु जापानी साहित्य की सीमाओं को लाँघकर विश्व-साहित्य की निधि बन चुका है। कविवर रवीन्द्र नाथ ठाकुर जी द्वारा यह विधा भारत में हाइकु के नाम से लाई गई थी। आधुनिक काल में हिंदी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में 'हाइकु' एक अनोखी और नूतन विधा है। हिंदी में हाइकु खूब लिखे जा रहे हैं और अनेक संग्रह तथा पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हो रहे हैं। वर्तमान काल की सबसे अधिक चर्चित विधाओं में हाइकु अपने विशेष स्थान को मजबूती के साथ प्रकट कर रहा है। 

  हाइकु विधा को पढ़ने का प्रथम अवसर मुझे प्राप्त हुआ तब इस विधा के लघु स्वरूप के चमत्कृत आकर्षण ने अपनी ओर आकर्षित किया। यह बात उस समय की है जब हमने ब्लॉग जगत में पदार्पण किया था। तब गूगल प्लस पर अपनी कम्युनिटी में आदरणीया कुसुम कोठारी जी के हाइकु को पढ़ा। हाइकु बहुत सुंदर थे और उन्होंने लिखने के लिए प्रेरित भी किया। हमने भी सोचा यह तो दुनिया की सबसे आसान विधा है सिर्फ 3 पंक्ति और 17 वर्ण .... इतने ही तो लिखने है। संरचना को जानकर समझने के पश्चात स्वाभाविक है कि अब हाइकु को मेरी कलम से प्रथम बार प्रकट होना था सो हुआ भी .... प्रस्तुत है प्रथम हाइकु ....

सबसे अच्छा 
एकतरफा प्यार~  
जीत न हार 
           नीतू ठाकुर 'विदुषी'

   मन में हर्ष की अनुभूति थी, जीवन के प्रथम हाइकु से एक नई विधा और नई यात्रा का श्रीगणेश हो चुका था। परंतु बहुत ही जल्द पता चला कि यह विधा प्रत्येक कलमकार या रचनाकार के लिए इतनी सहज और सरल नहीं है। हमारे हाइकु नुमा रचनाओं की तरीफ तो बहुत हुई पर हमें संदेह रहा कि ये हाइकु नही है।तब इसी लिए हमने इस विधा को लिखने का विचार त्याग दिया था। पर आदरणीया पम्मी सिंह जी के माध्यम से मुझे हाइकु व्हाट्सएप्प ग्रुप " हाइकु की सुगंध" से जुड़ने का अवसर मिला तब पता चला कि यह विधा हमारी सोच से बहुत ज्यादा आकर्षक और आनंद की अनुभूति प्रदान करने वाली है। जो मेरे अच्छे समय ने आदरणीय जगत सर, विज्ञात सर, सनन सर और ऋतु जी के मार्गदर्शन में मुझे इस विधा की अन्य बारीकियां और गहराई को समझने का अवसर दिया। जिसका प्रभाव न सिर्फ इस विधा पर बल्कि हर विधा पर दिखा। हाइकु यह एक ऐसी विधा है जो कम शब्दों में ज्यादा बोलना सिखाती हैं। बिम्ब को देखने और समझने का एक अलग दृष्टिकोण देती है। अच्छे से अच्छा रचनाकार भी जब किसी नई विधा  को सीखता है तो शुरू में समझने में कठिनाई अवश्य आती ही है लेकिन कहते हैं कि लगन सच्ची हो तो कुछ भी असम्भव नही .... हाइकु सीखना  हमारे  लिए ऐसा  ही एक ज्वलंत उदाहरण रहा है l 

   हमारी  नजर में हाइकु उस शैतान ज़िद्दी बच्चे के जैसा है जिसे जरा सी भी कमी बर्दाश्त नही होती। जो हमसे अपनी हर बात अपनी शर्तों पर मनवाता है। और यही उसकी विशेषता भी है जो उसके मूल स्वभाव को बदलने नही देती l हमारे जैसे बातूनी इंसान के लिए 3 लाइन और 17 वर्णों में बड़ी बात कहना आसान काम नही था। सोने पर सुहागा प्राकृतिक बिंब ..... एक महीना तो हमारे  हाइकु कथन और  प्रकृतिक  बिंब के अभाव में ही उलझ कर चयन से वंचित रहे l कभी कभी लगता था कि जितना समय हम इस विधा को दे रहे हैं उतने समय में तो न जाने कितनी कावितायें और कितनी गज़ल लिख चुके होते ... पर छुटकू से हार जायें ये भी तो सही नही थाl मेरे विचार से हाइकु अन्य विधाओं की अपेक्षा एक तो बालक ऊपर से मूक बधिर ....यह इस लिए क्योंकि हाइकु में कथन अमान्य है, शायद वो सुनता नही।हर बात दृश्य मतलब इशारे में बतानी पड़ती है अगर इशारा गलत हुआ तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है। अब पड़ोसी का बालक है तो क्या हुआ अब अपनी धरती पर है और अपनी भाषा ने अपनाया है तो उसका ध्यान तो रखना ही पड़ेगा। हमें ही इसे समझना था इस लिए  बार बार नियम और चयनित हाइकु को पढ़ते और समझने की कोशिश करते की हमारे हाइकु में क्या कमी हैl फिर हमने  विचारों पर जोर दिया .... हाइकु सही हो या ना हो पर वो विचार दमदार होना चाहिए जो हम कहना चाहते हैं। परिणाम यह निकला की उसके बाद तो रचनायें बहुत तेजी से चयनित हुई क्योंकि रचना में कुछ विशेष है। तो संशोधन करने में भी आनंद आता है। अच्छे परिष्कार के सुझाव मिलते भी हैं और गहन चर्चा के अवसर पर अच्छे विचार सूझते भी हैं।

17 नियमों में बंधकर तीन पंक्ति में 17 वर्ण लिखना वो भी ऐसे प्राकृतिक बिम्ब जिसमें आह या वाह का पल अनिवार्यता के साथ विशेष स्थान रखता हो ऐसा लिखना सरल नही था फिर भी अपनी समझ अनुसार हमने जो समझा है आपको समझाने का प्रयास करती हूँ.....

*1. दो वाक्य, दो स्पष्ट बिम्ब हो।*
वाक्य संयोजन ऐसा हो जो दो दृश्यों (बिम्ब) का निर्माण करे। दो स्वंत्रत बिम्बों के मिश्रण से ही एक पूर्ण दृश्य उभरता है।यदि 2 बिम्ब न हुए तो रचना कथन मात्र रह जायेगी और अपनी बात पाठक तक नही पहुंचा पाएगी। बिम्ब लिखते समय वचन दोष,लिंग दोष और शब्द बिखराव न हो इस बात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है।

*2. किसी एक बिम्ब में प्राकृतिक का होना अनिवार्य है।*
किसी भी दृश्य को पूर्ण करने के लिए स्थान,समय,वातावरण इनका होना आवश्यक है,इसी लिए हाइकु में प्राकृतिक बिम्ब का होना अनिवार्य है।बिना प्राकृतिक बिम्ब के रचना जीवंत नही लग सकती। जिस दृश्य को आप ने देखा उसे पाठक तक पहुंचने के लिए उस समय परिस्थितियां कैसी थी जिस वजह से यह दृश्य मार्मिक लगा यह बताना अनिवार्य। मौसम ,ध्वनि, प्रकृति में हो रहा परिवर्तन।

*3. दो वाक्य, 5 में विषय और 12 में बिम्ब वर्णन हो सकता है।*
इस नियम का इस्तेमाल ज्यादातर त्योहार या किसी विशेष अवसर को दिखाने के लिए किया जाता है। जिसमें 5 वाले भाग में विषय और 12 में वर्णन हो सकता है।शब्द संख्या कम होने के कारण यह नियम सबसे उपयोगी और सरल है जिसमें पर्व के प्रतीक की जगह सीधा पर्व का उल्लेख कर सकते हैं।

*4. दो वाक्य, विरोधाभास भी हो सकते हैं।*
इस नियम के अंतर्गत दो दृश्यों के बीच का अंतर दिखा सकते हैं।
और इस से न तूलना होती है न कारण फल दोष दिखता है। पर विरोधाभास अलंकार का प्रयोग करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है कि बिम्ब कथन, कल्पना और मानवीकरण से बचे क्योंकि हाइकु सिर्फ यथार्थ और ठोस बिम्ब का ही समर्थन करता है।

*5. स्पष्ट तुलनात्मक न हो।*
यदि 2 बिम्बों के बीच तूलना की जाए तो उस से दोनों बिम्बों का प्रभाव नष्ट होकर मात्र तुलना ही रह जाती है और पाठक तक कोई ठोस बिम्ब नही पहुँचता। उपमा और उपमेय से भी बचना है।

*6. कल्पना व मानवीयकरण न हो ।*
हाइकु में सिर्फ यथार्थ ही लिखा जाता है। तो कल्पना और मानवीकरण का तो कोई स्थान ही नही है। यह बिम्ब को सत्य से दूर ले जाता है और बिम्ब में भ्रम उत्पन्न करता है जो हाइकु में मान्य नही। 

*7. वर्तमान काल पर हो।*
एक पल की अनुकृति वर्तमान काल में ही संभव है। भविष्य और भूतकाल दोनों कल्पना कर के लिखे जाते है।अगर यथार्थ देखना है तो वर्तमान काल को ही देखना है। 

*8. एक पल की अनुकृति, फोटोक्लिक हो।*
तस्वीर एक पल की ही ली जा सकती है। दूसरा पल आते ही वो वीडियो का दृश्य बन सकता है फ़ोटो नही।मन को छूने वाला वो एक पल ही दिखना चाहिए जो दृश्य का चरम बिंदू है।

*9. कटमार्क (दो वाक्यों का विभाजन) चिन्ह हो।*
बिम्ब को स्पष्ट करने के लिए कट मार्क अनिवार्य ताकि सही बिम्ब पाठक तक पहुँचे।गलत कट मार्क रचना का भाव बदल देता है। बिना कट मार्क पाठक बिम्ब को अपने हिसाब से विभाजित करेगा और शब्दों का अर्थ बदल जायेगा।

*10. दो वाक्य ऐसे रचे जाएँ जो एक दूसरे के पूरक न होकर कारण और फल न बने।*
दो बिम्बों के मध्य क्यों? लगाने से अगर एक बिम्ब का उत्तर दूसरा बिम्ब है तो कारण फल दोष है। हाइकु का उद्देश्य कारण फल या कुछ भी कह कर बताना नही बल्कि संकेत देकर समझने के लिए उकसाना है।

*11. रचना में बिम्ब या शब्दों का दोहराव न हो।*
वर्णो की संख्या बहुत कम है शब्द दोहराव रचना को कमजोर बनाते हैं। बिम्ब दोहराव से भी बचें क्योंकि एक एक शब्द मूल्यवान है अगर कम शब्दों में गहरी बात कहनी है। बिम्ब जितने नए और अर्थ पूर्ण होंगे उतना ही हाइकु को प्रभावी बनाएंगे।

*12. तुकबंदी से बचें।*
दो यथार्थ बिम्ब दिखाने है। दृश्य गीत नही जिसे सुर में गाया जाए।हाइकु तो मौन है बोलता नही तो गायेगा क्या।

*13. 5 वाले हिस्से में क्रिया/क्रियापद और विशेषण न हो।*
दृश्य मार्मिक है तो स्वयं विशेष है उसे विशेषण की क्या आवश्यकता। क्रिया एक पल में नही हो सकती इस लिए अमान्य है। हँसना,बोलना,चलना कथन की श्रेणी में आता है उसे दृश्य बिम्ब में लाना आवश्यक है जैसे रोना कहने के स्थान पर 'नैनों में नीर' लिखने से कथन दृश्य रूप में उभरता है।

*14. 12 वाले हिस्से में एक वाक्य हो।*
दो बिम्ब ही हैं तो 17 वर्ण 5 और 5+7 इसी तरह विभाजित होंगे अन्यथा 3 बिम्ब बनेंगे। दो दृश्य बनाने के लिए यह जरूरी है कि प्रथम बिम्ब 5 वर्ण का हो और 5 व 7 मिलकर एक वाक्य बने। पर ध्यान रहे कि कथन स्पष्ट हो और शब्दक्रम सटीक हो।

*15. बिना बिम्ब के केवल वर्तनी न हो।*
जो दृश्य कह कर बता रहें है उसे दिखाना चाहिए बिम्ब के माध्यम से अन्यथा कथन होगा बिम्ब नही।

*16. पंक्तियाँ स्वतंत्र न हों।*
सभी पंक्तियाँ स्वतंत्र होंगी तो 3 बिम्ब बनेंगे एक 5 का दूसरा 7 का तीसरा 5 का। सही भाव पाठक तक नही पहुँचेगा। 2 लोगों की बात आराम से सुनी जाती है पर 3 बोलें तो किसकी सुनें  बस शोर होता है।

*17. विधा प्रकृति मूलक है, किसी धर्म या व्यक्ति विशेष न हो।*

हाइकु का उद्देश्य बहुत व्यापक है। व्यक्ति विशेष उसमें नही आते। किसी को आहत करना या उँगली उठाना इन सभी विवादों से दूर की विधा है। जिसका एक स्वच्छ और सार्थक उद्देश्य है। भावनाओं को जागृत करना विचार करने के लिए उकसाना।यथार्थ दिखाना।

एक उदाहरण :-

वन में पड़े
बदन के टुकड़े-
सेल्फी की होड़
         नीतू ठाकुर 'विदुषी' 

इस हाइकु के माध्यम से मैने मिट रही मानवीय संवेदनाओं को दिखाने का प्रयास किया है। आधुनिक युग में मनुष्य आभासी दुनिया से इस तरह जुड़ा है कि यथार्थ में घटित होने वाली किसी भी घटना से विचलित नही होता। बड़ी से बड़ी दुर्घटना क्षणिक दुःख भले दे पर दूसरे ही क्षण वह पूर्ववत हो जाता है। अपने सुख-दुःख स्वजनों के साथ बाँटने से ज्यादा महत्वपूर्ण सोशल मीडिया में साझा करने में लगा रहता है। मरने वाले के प्रति दुःख जताने के बजाय उसकी फोटो और वीडियो बनाने की जो होड़ दिखती है उसने मुझे इस हाइकु को लिखने के लिए प्रेरित किया। प्रयास कितना सफल रहा यह तो आप बताएंगे क्योंकि हाइकु ऐसी विधा है जिसे लिखता हाइकुकार है पर पूर्ण पाठक करता है। 

हाइकु हर व्यक्ति नही लिख सकता क्योंकि उसे लिखने के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। पर यह भी उतना ही बड़ा सत्य है कि है कि हाइकु को समझने के लिए पाठक के पास भी बिम्ब समझने की क्षमता होनी अनिवार्य है। अन्यथा उसे इन 17 वर्णों में शब्द संयोजन से अधिक कुछ नजर नही आएगा।

मुझे लगता है हाइकु की रचना प्रकृति की सुंदरता और उसमें हो रहे परिवर्तन के चित्रण को दिखाने के लिए हुई होगी। प्रकृति के मूल स्वभाव की समझ का होना और उसमें हो रहे परिवर्तन के क्षणों की अनुभूतियों को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना उद्देश्य रहा होगा। हम भाग्यशाली हैं जो इतनी गंभीर और गूढ़ विधा को सीखने का अवसर मिला इसके लिए मैं 'हाइकु की सुगंध' पटल का आभार व्यक्त करती हूँ। इस मंच ने ज्ञान के साथ साथ अनुराधा जी, अभिलाषा जी, अनुपमा जी, निधि जी, पाखी जी, वंदना जी, दीपिका जी, अनिता जी जैसी सखियाँ दी। कुसुमजी, अनकही जी, इन्दिरा जी, श्वेता जी इन्होंने भी समय समय पर मार्गदर्शन किया इनका भी आभार। आदरणीय विज्ञात सर जिन्होंने इस मंच को बनाया, जगत सर जिन्होंने इस मंच को सजाया और संवारा, सनन सर, ऋतु कुशवाह जी, देव टिंकी होता सर, पुरोहित सर जिन्होंने निखारा इनका विशेष आभार। हमने क्या पाया शब्दों में बताना मुश्किल है पर उसके बदले में धन्यवाद बहुत छोटा शब्द है।

एक उदाहरण और देखें आदरणीय बाबूलाल शर्मा बौहरा' जी का एक हाइकु मेरी दृष्टि से .....

बँधा युवक
ग्राम्य चौपाल पर~
नँगाड़ा ध्वनि
        बाबूलाल शर्मा 'बौहरा'

*बँधा युवक*
*ग्राम्य चौपाल पर~*

यह एक बहुत ही मार्मिक दृश्य है जिसमें भरपूर आह के पल हैं। दृश्य से स्पष्ट है कि युवक को अपराधी की तरह बांधा गया है जो कि सामाजिक कुरीतियों का प्रतीक है। न्याय व्यवस्था के होते हुए भी इस तरह का दृश्य वर्तमान परिस्थितियों में भी देखने को मिलता है ....बहुत ही सार्थक बिम्ब 👌👌👌

*नँगाड़ा ध्वनि*

17 नियमों के अंतर्गत सुंदर सटीक पूर्ण बिम्ब है।इस बिम्ब में उन्होंने इन्द्रिय बोध गम्य बिम्ब का सुंदर प्रयोग किया है।

प्रथम बिम्ब तो मार्मिक था ही पर द्वितीय बिम्ब ने उसमें चार चाँद लगा दिए ....आह के पल को दुगना बना दिया। बंधे हुए युवक के सामने नगाड़ों का बजना ....बहुत ही मार्मिक दृश्य जो कि पाठक को सटीक भाव तक पहुंचाने में सफल रहा। एक तरफ किसी का जीवन दाँव पर है तो दूसरी तरफ नगाड़े की ध्वनि वातावरण को और गंभीर बना रही है।

एक उदाहरण आदरणीया ऋतु कुशवाह जी का देखें 
नन्ही कब्र पे
उड़ती तितलियां-
जंगली पौधे

बिल्ली कब्र पे
उड़ती तितलियां-
जंगली पौधे
           ऋतू कुशवाह 'लेखनी'

मेरा उद्धव बिल्ली का बच्चा हैं। उसे मेरी अपनी संतान समझिये। उसकी मृत्यु (7/7/2019) 4 वर्ष  की आयु में हो गयी। उसे हमने घर के सामने ही दफनाया है।वहाँ पर बारिश की वजह से जंगली पौधे आसपास उग गए है और बहुत बड़े हो गए है उनमें पुष्प होने के कारण कई सारी तितलियां मंडराती रहती है उसकी कब्र पर
पिछले 4 सालों से बारिश के बाद जब उस स्थान पर पौधे उगते थे और छोटे छोटे पौधे में फूल आते थे तो उन पर कूद कूद कर उन तितलियों को पकड़ लेता था न वहां फूल होते थे न पौधे बस मेरा पुत्र होता था और उसकी अड़खेलिया। वह अब वो सो रहा है तो वही पौधे कितने बड़े हो गए है और वो तितलियां जैसे उसके ऊपर उड़ कर उसे चिड़ा रही है। खेर, ये मेरी कल्पना और अपना भाव है ।
ये रचना में नही है । पाठक इसे जैसे चाहे वैसे देखे। मैंने 2 रचनाये इसलिए प्रेषित की है क्योंकि मुझे आदत नही है अपने बेटे को बिल्ली कहने की । मैं वो स्वीकार नही पा रही थी इसलिए पहली वाला रचना का निर्माण हुआ । दूसरी वाला रचना भाव स्पष्ट करने के लिए हैं। इसका दूसरा अर्थ यह भी निकल सकता है कि जीवित बिल्ली के सामने तितलियां आती भी नही और मृत की ऊपर तांता लगा हुआ है।

एक उदाहरण आदरणीय नरेश जगत जी का देखें ....

*मेड़ किनारे*
*कर्क घोंघे की अस्थि--* 
*दवा पोस्टर।* 
            नरेश जगत 

           इस कृति में आह के पल समाहित हैं, जबकि यह दिखने में बहुत ही साधारण सा दृश्य है। क्यों नहीं करेंगे प्रश्न इस पर, स्वाभाविक है। यह कृति दिखने में बहुत ही साधारण है परंतु उतनी ही संदेशात्मक और मार्मिक भी है। इसीलिए यह विधा आसान नहीं... क्योंकि दिखने में कुछ और, होता कुछ और ही है। आईये इसे समझने का प्रयास करें...
           हम अपने बचपन में जाएँ तो किसी भी रासायनिक पदार्थों का उपयोग देखा नहीं जा रहा था, जिन्दगी खुशहाल थी। हाँ थोड़ी आर्थिक कमजोरी थी परंतु स्वच्छ खाद्य पदार्थ और स्वस्थ्य काया थी, प्रकृति सेवा-संरक्षण की भावना थी लोगों में इसलिए खुशहाली थी। आज रासायनिक दवा और खाद का उपयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है और आज भरमार उपयोग में है...जिसकी वजह से पूरी प्रकृति का संतुलन बिगड़ता बन रहा है। चूँकि प्रकृति का कोई भी एक हिस्सा अगर टूट जाए तो असंतुलित होगा ही, और अंततः जीवन की समाप्ति। इसी दुखद पल को अपने में लिये यह असामान्य कृति, प्रथम दृश्य बिम्ब... *मेड़ किनारे कर्क घोंघे की अस्थि* यह एक सामान्य नज़राना हो गया है आजकल खेतों में। जब-जब दवाओं का छिड़काव होता है तब-तब खेतों में यह दृश्य आम है। जिसकी सूचनार्थ खेतों में जो दवाई छिड़काव होते हैं उक्त दवा का पोस्टर भी लगा दिया जाता है ताकि गलती से कोई खेत के पानी का उपयोग न करे, इसलिए... *दवा पोस्टर (दूसरा सदृश्य बिम्ब)* जिसके चलते सारे हितैषी और अहित करने वाले सारे प्राणी मारे जाते हैं। ये आभास नहीं लोगों को कि उस विनाशकारी तत्व के अंश खेती में पल रहे खाद्य पदार्थों के जरीए हमारे शरीर में भी प्रवेश कर जाते हैं। जिससे हम बिमारियों से जुझते अकाल मौत के मुख में समा जाते हैं। इसी दुख भरी व्यथा को इस कृति में दर्शाने का छोटा प्रयास किया गया है।
*नरेश कुमार जगत*

एक कृति आदरणीय संजय कौशिक 'विज्ञात' जी की भी देखें.....

*ओले की वृष्टि -*
*बजाती माँ चिमटा*
*उल्टे तव्वे पे।*

कवि प्रकृति और समाज के किसी विलक्षणता को अपने शब्दों में पिरोकर अपनी भावनाओं को पाठक तक पहुँचाने का प्रयास करता है। जो देखता है उसे लिखता है, प्रथम बिम्ब...

 *ओले की वृष्टि* 

       यह एक मजबूत प्राकृतिक दृश्य बिम्ब है, जो हाइकु का आधार तत्व है। हाइकु में दो ऐसे बिम्ब चाहिए होते हैं जो प्रकृति की खूबसूरती, विडम्बना या किसी संदेश को लिखा जाए और विधिवत् प्रथम बिम्ब से घनिष्ठ सम्बंध भी रखता हो। इसलिए इससे सम्बंधित दूसरा बिम्ब...

*बजाती माँ चिमटा* 
*उल्टे तवे पे।* 

         यह बिम्ब आंतरिक रुप से प्रथम बिम्ब से संबंधित है और साथ ही एक विधान भी, कि जब भी कोई मुसीबत आन पड़ती है तब "त्राही माँ त्राही माँ" होती है, इसी मर्म को इस दूसरे बिम्ब में ओले वृष्टि की वजह से प्राकृतिक आपदा को चित्रित करने का प्रयास किया गया है। तवे को उल्टा रखना भी परम्पराओं के अनुसार परिवार में मृत्यु का सूचक होता है, (पर भिन्न-भिन्न स्थान पर भिन्न-भिन्न परम्पराएं हो सकती हैं) जो आह के क्षण को दर्शाता है और साथ ही इस विधान का ज्ञानवर्धन भी कर रहा है। ज्ञातव्य है कि इस प्रक्रिया से ओले की वृष्टि थम जाती है। (या भयंकर छाए मेघ को सूचना देना की जन मानस के अपराध क्षम्य हैं वे मर रहे हैं)  यह भी हो सकता है कि पाठक इसके तारतम्य अपनी मतानुसार अर्थ में भिन्नता रख सकते हैं, जो हाइकु को और भी मजबूती प्रदान करती है।

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

Wednesday 5 February 2020

हाइकु समीक्षा...

अंतिम मार्च~
अंकपत्रक थामे
झूलता शव ।

*अनंत पुरोहित 'अनंत'*


प्रिय अनंत,
          बहुत ही अच्छा हाइकु है।हाइकु के मानकों को पूरा करता है ।इसमें आह के पल का वर्णन है । समाज के लिए संदेश परक है । साहित्य में यदि कोई संदेश न हो तो वह उत्कृष्ट साहित्य नहीं हो सकता ।इस दृष्टिकोंण से बेशक उत्तम सहित्य है जिसमें अभिभावक,विद्यार्थी और शिक्षक के लिए संदेश है ।
दूसरा बिम्ब बहुत ही मार्मिक है । परीक्षा में अपेक्षित सफलता न मिलने पर एक किशोर/युवा ने आत्महत्या कर ली है। यहां यह सोचने की आवश्यकता है कि क्यो आत्महत्या की- असफलता से क्षुब्ध होकर या सफलता-असफलता के प्रति समाज का दृष्टिकोण,अभिभावकों की महत्वाकांक्षा एवं व्यवहार,हमारी शिक्षा व्यवस्था,शिक्षकों की निदेशन एवं मनो सामाजिक, संवेगात्मक विषयों का ज्ञान या  छात्रों का मनोवैज्ञानिक विकास आदि बहुत कारण हो सकते हैं,चाहे कारण कुछ भी हो आत्महत्या समाज के लिए अभिशाप है।किशोरावस्था में आत्महत्या और भी दुःखदायक है। इसे रोकने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए
सबको अपने स्तर के कारण पर गौर करें और आवश्यक बदलाव करे तो इस बुराई को कम अवश्य किया जा सकता है।

समीक्षक
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित

Tuesday 4 February 2020

हाइकु परख...

आइए देखें आ. अनंत पुरोहित जी की एक कृति...

पोंगल पर्व~
साँढ की सींग पर
टँगा आदमी।

हाइकुकार-श्री अनंत पुरोहित जी

हाइकुकार ने इस हाइकु में *पोंगल पर्व* को प्रथम बिंब के रूप में चुना है। यह *ऋतुसूचक* व त्योहार से संबंधित है जिसे *कीगो* कहा जाता है।यह बिंब अपने आप में सशक्त है। क्योंकि पोंगल पर्व दक्षिण भारत में तमिल वासियों का प्रिय उत्सव है।यह कृषि से संबंधित और ऋतु विशेेेष है। इसकी तुलना नवान्न से की जा सकती है जो फसल की कटाई का उत्सव होता है। पोंगल का तमिल में अर्थ *उफान या विप्लव* होता है। पारम्परिक रूप से ये सम्पन्नता को समर्पित त्यौहार है जिसमें समृद्धि लाने के लिए वर्षा, धूप तथा खेतिहर मवेशियों की आराधना की जाती है।

दूसरा बिंब है-

साँढ़ की सींग पर टँगा आदमी

        यह बिंब भरपूर *आह* के पल समेटे हुए है।पोंगल चार दिनों का पर्व है,इसके अंतिम दिन *जलीकट्टू* नाम का पर्व मनाया जाता है जिसमें बैलों के साथ युवा लड़ाई करते हैं।इस प्रक्रिया में उनके प्राण भी चले जाते हैं।इस खूनी खेल को सरकार ने प्रतिबंधित भी किया है।किंतु फिर भी परंपरा के नाम पर आज भी यह खेल खेला जाता है।इस प्रकार हाइकुकार ने इस हाइकु में प्रकृति परिवर्तन, शस्य उत्सव, और उससे जुड़ी समस्या को समेटने का प्रयास किया है। यह हाइकु अपने आप में सशक्त हैऔर भरपूर आह व वाह के पल को समाहित किए हुए है।यह अपने अर्थ को अभिव्यक्त करने में सक्षम है। *दृश्य बिंब* का सार्थक प्रयोग इसमें किया गया है

समीक्षक
अभिलाषा चौहान
हाइकु विश्वविद्यालय

Sunday 2 February 2020

आओ सीखें हाइकु...

        सर्वप्रथम मैं दीपिका पाण्डेय यहाँ पर उपस्थिति देने वाले सभी विद्वज्जन,मार्गदर्शकों एवम् सभी शिक्षार्थियों का हृदयतल से अभिनंदन करती हूँ और इसी के साथ आप सभी के स्नेहाशीष के साथ एक शिक्षार्थी होने के नाते मैंने जो साहित्य की एक अनूठी एवम् सर्वप्रिय विधा हाइकु सृजन शैली के बारे में सीखा व जाना उसी पर अपनी मंदमति अनुसार अपने विचार साझा करने जा रही हूँ।आशा करती हूँ कि मैं अपने हाइकु शैली के अनुभव को आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर सकूँगी।
                 
                  *'हाइकु'* 

       कहा जाता है कि हाइकु एक जापानी विधा है।हाइकु शैली को अनेक रचनाकारों/हाइकुकारों ने समय समय पर अपने ढंग से परिभाषित भी किया है।और ऐसा भी कहा जाता है कि जापानी संस्कृति, परंपरा एवम् विचारों को अल्प समय व अल्प सार्थक शब्दों मे उजागर करने हेतु यह विधा जापानी साहित्य में कारगर साबित हुई।जिसका प्रतिपादन मात्सुओ बाशो ने किया।उन्होंने जीवन दर्शन के अनेक पहलुओं को हाइकु में बखूबी उकेरा।
        कहा जाता है कि एक रचनाकार/साहित्यकार किसी नई साहित्य की विधा को देख आकर्षित हो जाता है और उसकी यही जिज्ञासा उसे बहुत कुछ नया सीखने में मदद करती है।इसी जिज्ञासावश मैंने हाइकु को एक बार पढ़ा और इसे सीखने हेतु प्रयासरत रही।मेरी समझ में हाइकु मात्र सत्रह वर्णों का महज एक खेल था जिसे 5-7-5 के वर्णों में बस पिरोना ही तो था।किंतु मेरी यह धारणा तब गलत साबित हुई जब मुझे बहुत से गुणीजनों एवम् बुद्धिजीवियों का साथ मिला और जिनके सान्निध्य में, मैंने हाइकु सृजन करना आरंभ किया व बहुत सी रोचक जानकारियाँ भी प्राप्त हुईं और तब मैंने जाना कि हाइकु विधा मेरी समझ से बहुत ऊपर है।यह महज 5-7-5 वर्णों का क्रमबद्ध खेल नहीं अपितु *यथार्थ पर आधारित पद्य* *साहित्य की अतुकांत लघु काव्य* *कृति है* ।
        यदि हम इसकी सूक्ष्मता को गहनता से अध्ययन करें तो पायेंगे कि *हाइकु कल्पना से परे हमारे* *आज के परिवेश का प्रकृति से* *संबंध दर्शाती एक यथार्थपरक* *एवम् बोधगम्य कृति है।* यह एक ऐसी अद्भुत कृति है जिसके माध्यम से हम अपने अनुभवों एवम् प्रकृति में घटने वाली घटना को मात्र सत्रह वर्णों के प्रयास से उकेर सकते हैं।अन्य शब्दों में.....
 *मात्र सत्रह वर्णों(5-7-5) के मेल* *से बनी यह हाइकु कृति* *उत्कृष्ट,मर्मस्पर्शी एवम् सटीक* *कृति है* ।
इस विधा की विशेषता जो मुझे आकर्षित करती है वो यह है कि हाइकु विधा दोनों तरह के व्यक्तित्व स्वभाव अंतर्मुखी(Introvert) और बहिर्मुखी(Extrovert) के लिये उपयुक्त विधा है। जिसके माध्यम से वे अपने भावों को पाठक तक रुचिकर ढंग से अल्प शब्दों में बखूबी पहुँचा सकते हैं।इसमें मात्र रचनाकार अपने भावों की अभिव्यक्ति करता है जिसका पाठक अपने अनुसार अर्थ भी ग्रहण कर सकते हैं।इसमें पाठक को दिये गये हाइकु से स्वयं के अनुसार अर्थ निकालने की पूरी स्वतंत्रता होती है।तो जैसा कि अब आप सभी को हाइकु के बारे में काफी कुछ समझ आ चुका होगा..... तो आईये अब हम एक दृष्टि हाइकु के नियमों पर डालते हैं।फिर हाइकु सृजन करने का प्रयास करतें है।

            *हाइकु के नियम* 
           –––––––––––
        हाइकु सृजन के कुछ सहज,सरल नियम जो मैंने गुणीजनों के सान्निध्य में सीखे,इस प्रकार हैं.....

1.दो वाक्य, दो स्पष्ट बिंब हो।
2.किसी एक बिंब में प्राकृतिक का होना अनिवार्य है।
3.दो वाक्य, पाँच में विषय और बारह में बिंब वर्णन हो सकता है।
4.स्पष्ट तुलनात्मक न हो।
5.कल्पना व मानवीयकरण न हो।
6.वर्तमान काल पर हो।
7.दो वाक्य,विरोधाभास भी हो सकते हैं।
8.एक पल की अनुकृति, फोटोक्लिक हो।
9.दो वाक्यों के विभाजन हेतु कटमार्क अनिवार्य है।
10.दो वाक्य ऐसे रचें जाये कि वे आपस में कारण/फल न बनें।
11.तुकबंदी से बचें।
12.पाँच वाले हिस्से में क्रिया/क्रियापद व विशेषण न हो
13.रचना में बिंब व शब्दों का दोहराव न हो।
14.बारह वाले हिस्से में एक पूर्ण वाक्य हो।
15.बिना बिंब के वर्तनी न हो।
16.पंक्तियां स्वतंत्र न हो।
17.अनावश्यक शब्दों से बचा जाए।
18.विधा प्रकृति मूलक है,यह किसी धर्म, व्यक्ति विशेष पर आधारित न हो।
19.हाइकु बनने के बाद हाइकु सृजन में आह या वाह के पल का समावेश अवश्य हो।
   अत:अब इन नियमों को ध्यान में रखते हुए हम हाइकु सृजन की सरल विधि जानेंगे।
        
        *हाइकु सृजन विधि* 
  ------------------------------------
               उपर्लिखित नियमों को ध्यान में रखते हुए अब हम हाइकु सृजन करते हैं।तो सबसे पहले हमें अपने आस पास किसी ऐसी घटना को देखना,पहचानना होगा जिसका संबंध प्रकृति से अवश्य हो। ताकि हमें पाँच वाले बिंब के लिये एक सटीक प्राकृतिक बिंब मिल सके ,जो कि हमारा नियम भी कहता है......

 *उदाहरण 1* .

            जैसा कि मैंने एक दृश्य यह देखा था कि एक घोड़ा द्वार पर खड़ा है और वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति चने का पौधा लगाने हेतु अंकुरित चने निकालता है।तो आपको यहाँ दो बातें देखने को मिलेंगी जो कि हाइकु के नियम के अनुसार उपयुक्त भी है।
1.घोड़ा(प्राकृतिक बिंब)द्वार पर है।
2.घोड़े के साथ चने का गहरा संबंध भी है।
          तो आइये अब हम (5-7-5)के नियम को अपनाते हुए हाइकु सृजन करते हैं।
👉द्वार पे अश्व(पाँच वर्ण)और एक वाक्य भी हो गया।तो अब हम इसमें कटमार्क भी लगा देते हैं।
 *द्वार पे अश्व~* 
         अब हम दूसरा वाक्य जिसमें अंकुरित चने का बीजारोपण होना है को बारह वर्णों की सहायता से बारह वाले बिंब में रखते हैं.....
 
द्वार पे अश्व~
अंकुरित चने का
 बीजारोपण ।

हाइकुकार-----

दीपिका पाण्डेय----

      तो देखा आपने हमारा हाइकु बन गया और साथ में हम इस हाइकु पर ध्यान दें तो पायेंगे कि यह वाह के पल को दिखा रहा है।क्योंकि जहाँ एक ओर घोड़ा खड़ा है तो वहीं उसके समक्ष चने का बीजारोपण हो रहा है।तो आप समझ सकते हैं कि स्थिति क्या मोड़ लेने वाली है। यहाँ मानव का पशु के प्रति प्रेेेम की भावना को रखने का प्रयास किया गया है। जो वाह के क्षण को मजबूती प्रदान कर रहा है।
        इसी प्रकार अब हम एक और सुंदर, सटीक व बोधगम्य हाइकु को देखते हैं।
             यह हाइकु, आदरणीय संजय कौशिक 'विज्ञात'जी द्वारा रचित है। जिसे हम समझने का प्रयास करते हैं।

 ओले की वृष्टि~
 बजायी माँ चिमटा
 उल्टे तव्वे पे।
 
      हाइकुकार--

  संजय कौशिक 'विज्ञात'
 
          आप देखेंगे कि ओले की वृष्टि यहाँ एक मजबूत प्राकृतिक बिंब है।और यही हाइकु का आधार तत्व भी है जिसे सहर्ष स्वीकारा जा सकता है।
        अब बारह वाला बिंब ऐसा बनाना है जिसका पाँच वाले बिंब *'ओलेकी वृष्टि* ' से घनिष्ठ संबंध हो।इसलिए इससे संबंधित दूसरा बिंब इस प्रकार रखा गया....
 बजायी माँ चिमटा
 उल्टे तव्वे पे।
 
                      यदि अब हम इस बिंब को देखें तो पायेंगे कि इसका पहले वाले बिंब से घनिष्ठ संबंध है।यहाँ पर प्राकृतिक आपदा को दर्शाने का प्रयास किया गया है।तवे को उल्टा रखना अपशकुन या कहीं कहीं परम्परा में मृत्यु का सूचक भी माना जाता है।जो कि *आह के क्षण* दिखाता है।और कहीं कहीं यह भी माना जाता है कि तवे को उल्टा रखने से उपलवृष्टि थम जाती है या फिर छाए बादल को सूचना देना कि हमें हमारी गलती के लिये क्षमा किया जाए और इस उपलवृष्टि को रोका जाये।तो जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि पाठक इस दृश्य को अपनी समझ अनुसार भी अर्थ ग्रहण कर सकता है।जिससे हमें हाइकु को समझने में और भी मदद मिलेगी।और यही हाइकु की सुंदरता भी है।
        तो आईये इस हाइकु को समझने के बाद अब हम एक अन्य हाइकु जो कि स्वरचित है,को समझने का प्रयास करते हैं......

 कार्तिक सांझ~
 गंडक तट पर
 मतंग/कुंजर झुंड।

हाइकुकार---

दीपिका पाण्डेय----

                        यहाँ  प्रथम पाँच वाले बिंब में एक *समयसूचक* शब्द जिसे *ऋतुसूचक* शब्द भी कहा जाता है और इसी को ' *कीगो* ' भी कहा जाता है,को देख रहें है।यह एक मज़बूत प्राकृतिक बिंब है जो कि हाइकु में  सर्वदा मान्य है।साथ ही यह एक फोटोक्लिक भी है अर्थात् यह गतिशील दृश्य नहीं है।इसका बारह वाले बिंब से संबंध यह दर्शाता है कि बिहार में एक गंडक नदी बहती है जहाँ सोनपुर का मेला कार्तिक मास में आयोजित किया जाता है, उसको दर्शाया गया है।यहाँ पशुओं, विशेषकर हाथी की प्रदर्शनी लगाई जाती है जबकि बहुत पहले इस अवसर पर पशुओं को इस मेले में बेचा भी जाता था लेकिन अब इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। तो यह दृश्य पाठक को काफी कुछ सोचने को मजबूर कर सकता है और पाठक अपनी समझ अनुसार इसका अर्थ ग्रहण कर सकता है।
 
         *नोट :*             
                      कार्तिक मास एक महीना है इसलिए हाइकु नियमानुसार दोहराव से बचने हेतु मैंने कार्तिक मास की जगह *कार्तिक सांझ* शब्द का प्रयोग किया।और यह भी स्मरण रहे कि गंडक नदी का प्रयोग मैंने इसलिए ही प्रयोग किया क्योंकि यह मेला वहीं आयोजित किया जाता है।
          हालाँकि इसका धार्मिक महत्व भी है।लेकिन मैंने इसे हाइकु के नियमानुसार धार्मिक से परे रखकर सृजन किया है।

           तो आशा करती हूँ कि अब आपको काफी हद तक हाइकु सीखने में मदद मिली होगी।
     इसी प्रकार आप भी प्रदत्त नियमों को ध्यान में रखते हुए हाइकु सृजन करें।
         उपरोक्त हाइकु के नियम व विधि समझने के बाद एक शिक्षार्थी होने के नाते एक प्रश्न मन में आना स्वाभाविक है कि क्या हाइकु एक जापानी विधा ही है?क्या इस विधा को भारतीय साहित्य की अनमोल विधा में नहीं देखा गया?ऐसे अनेक प्रश्न हो सकते हैं जो मन को उद्वेलित करतें है तो इसको समझने के लिये यदि हम आज भारतीय  साहित्य के वार्णिक छंद पर प्रकाश डालें तो पायेंगे कि शिखरिणी व मन्दाक्रांता छंद एक ऐसी भारतीय साहित्य विधा है जिसकी प्रत्येक पंक्ति मात्र सत्रह वर्ण में लिखी गई है जबकि संपूर्ण हाइकु सत्रह वर्ण में निहित है।और वहीं मशहूर विधा 'कह मुकरी' में भी दो बिंबों को देखा जा सकता है।हालाँकि हाइकु में पाठक स्वतंत्र है अर्थ के विचार पर लेकिन 'कह मुकरी' में स्पष्ट कर दिया जाता है कि किस विषय को लेकर बात कही गई है।और यह गूढ़ जानकारी मुझे हाइकुकार आदरणीय संजय कौशिक 'विज्ञात' जी की कृतियों से मिली।जिसमें उन्होंने जापानी हाइकु को भारतीय विधा में देखने का बखूबी प्रयास किया है।अतः यह कहा जा सकता है कि यदि हम भारतीय साहित्य की अनछुई विधा जिसमें मात्रिक/वार्णिक/मुक्त छंद भी शामिल हैं, को देखें तो हम खुद को हाइकु के उद्भव में  असमंजस में  ही पायेंगे।ऐसी अनेक संस्कृत साहित्य की कृति भी देखने को मिल सकती हैं जो हाइकु की परिचायक हों।

                  हालाँकि हाइकु की लोकप्रियता को देखते हुए हाइकु पहेली का भी प्रचलन शुरू हो गया है ताकि इसकी रोचकता को शिष्टता के साथ बरकरार रखा जाये।       अतः कुल मिलाकर यह कहना तर्कसंगत होगा कि, *हाइकु यथार्थ पर आधारित सहज,सटीक व पर्यावरण से खुद को जोड़ने का सुअवसर प्रदान करती है।* और अंत में जिज्ञासावश एक प्रश्न आप सबके समक्ष रखना चाहूँगी कि क्या भारतीय साहित्य विधा में कोई ऐसी विधा आप जानते हैं जो हाइकु की परिचायक है?
        आप सभी के स्नेहाशीष के साथ  यह लेख मैं प्रदत्त प्रश्न के साथ यहीं समाप्त करती हूँ।

धन्यवाद...
शिक्षार्थी
दीपिका पाण्डेय।

आइए जानें हाइकु को...

     आज हर किसी के पास समय की कमी है।हर व्यक्ति किसी न किसी चीज़ के पीछे भागता हुआ दिखाई  देता है।ऐसे में मानवीय संवेदनायें मृतप्राय हो चुकी हैं।किसी के पास किसी के लिए भी वक़्त नहीं है।सब बस अपनी ही दुनिया में रहना चाहते हैं इसी कारण अब संयुक्त परिवारों का चलन भी कम होता जा रहा है। अब विवाह आदि कार्यक्रम भी सब कम से कम लोगों के साथ और कम से कम समय में बस खानापूरी भर करते हैं।
ऐसे में लुप्तप्राय हो चुकी रस्मों को पुनः जीवंत करने का मेरा एक छोटा सा प्रयास है अपनी नन्ही कलम के माध्यम से .....

 देवउठनी~
 बाढ़ ढुकाई नेग
 लेती भगिनी।

हाइकुकार--

अनुपमा अग्रवाल

          इस रचना में  मैंने प्रथम बिंब लिया है ' *देव उठनी* ', जो एक समयसूचक बिंब है।ऐसे समयसूचक शब्दों को ' *कीगो* ' कहा जाता है और हाइकु में ऐसे शब्दों का प्रयोग हाइकु को श्रेष्ठता प्रदान करता है।
दूसरे बिंब में मैंने पुत्र के विवाह में निभायी जाने वाली एक रस्म *'बाढ़ ढुकाई* ' के विषय में बताने का प्रयास किया है।
         जब विवाहोपरांत नववधु के साथ पुत्र घर में प्रवेश करता है तो सभी बहिनें और बुआ मिलकर द्वार पर ही नव दंपत्ति को रोक कर नेग की माँग करती हैं।और फिर हास-परिहास के बाद  नेग लेकर ही वे भाई  भाभी को अंदर आने देती हैं।
         अब इस पंक्ति को पढ़ने के पश्चात् अनायास ही पाठक की आँखों के समक्ष घर परिवार में हुये विवाहोत्सव और उसमें होने वाले नेगचार और हँसी ठिठोली का दृश्य बनेगा।
यही हाइकु की सार्थकता है। 
         एक उत्तम हाइकु वही है जो पाठक की आँखों के सामने उस दृश्य को ले आये।यही हाइकुकार की सफलता है।
         हाइकु में दोनों बिंब में परस्पर संबंध होना अति अनिवार्य है।
         यहाँ मैंने *'देव उठनी* ' प्रथम बिंब इसलिए रखा है क्योंकि ये विवाह के लिए एक बहुत ही शुभ एवं अबूझ मुहूर्त माना जाता है।अर्थात् यदि किसी भी विवाह योग्य युगल के नाम से विवाह का मुहूर्त न निकल रहा हो तो देव उठनी एकादशी को उनका विवाह संपन्न करा दिया जाता है।अतः इस दिन बहुत विवाह संपन्न होते हैं। इस प्रकार दोनों बिंब में परस्पर गहरा संबंध दिखाई देता है।किंतु दोनों बिंब में परस्पर संबंध होने के साथ ही साथ हाइकु का एक और भी नियम है। वो है ' *कारण*फल दोष* '।
           हाइकु की इस शर्त पर भी यह हाइकु खरा उतरता है जिसके अंतर्गत एक बिंब का कारण फल दूसरे बिंब में न हो। यहाँ  प्रथम बिंब का दूसरे बिंब से संबंध तो है पर रचना कारण फल के दोष से मुक्त है। क्योंकि न तो मैंने यहाँ विवाहोत्सव बिंब रखा है जो कारण फल दोष रचना में उत्पन्न करे। और ऐसा भी नहीं है कि  सिर्फ़ देव उठनी एकादशी के ही दिन विवाह होते हों अतः यह रचना इस दोष से पूर्णतः मुक्त है।
            इस तरह से हाइकु के सभी मानकों पर खरी उतरती इस रचना को हम एक श्रेष्ठ हाइकु की श्रेणी में रख सकते हैं।

          हाइकु  एक प्रकृति आधारित विधा है।हमारे चारों ओर प्रकृति में एक से बढ़कर एक खूबसूरत नज़ारे जिधर भी दृष्टि उठाओ नज़र आ जायेंगे।और बस किसी भी ऐसे ही प्रकृति के नज़ारे पर अपनी कलम चलाईये और रच दीजिये एक अमर हाइकु......

 पहाड़ी पथ~
 वायु वेग से बने
 हिम के रोल।

हाइकुकार----

अनुपमा अग्रवाल

        मेरी यह कृति ऐसी ही प्रकृति की एक अविश्वसनीय घटना से प्रेरित कृति है।
इस कृति में मैंने पहला बिंब लिया है.....
' *पहाड़ी पथ* '
जो कि एक पूर्णतः प्राकृतिक बिंब है और पाठक को याद दिलाता है किसी भी पर्यटन स्थल की जहाँ खूबसूरत पहाड़ी मार्ग होते हैं।
        फिर दूसरा बिंब मैंने लिया है---
         वायु वेग से बने
         हिम के रोल।
जो कि प्रकृति की एक बहुत ही अद्भुत एवं अकल्पनीय घटना की ओर इंगित करता है।
       पहाड़ी स्थलों पर कभी-कभी हिमपात के पश्चात् पवन अपने पूरे वेग से बहती है।और तब पवन के वेग से स्वतः ही उस हिम के रोल जैसे बनकर तीव्र गति से ढलान पर लुढ़कने लगते हैं।
ये एक बहुत ही दुर्लभ दृश्य है। जो बमुश्किल ही दिखाई देता है। इस दृश्य को मैंने अपनी कलम रूपी कैमरे से आप सभी के समक्ष रखने का एक प्रयास किया है।
         हाइकु का एक और नियम है कि हाइकु के दोनों बिंब में परस्पर गूढ़ संबंध होना चाहिए, जो इस कृति में  स्पष्ट है कि पहाड़ी स्थल पर ही ऐसा अद्भुत दृश्य देखने को मिल सकता है और साथ ही साथ एक और नियम कारण फल का....
        यह रचना इस दोष से पूर्णतः मुक्त है।यदि मैं प्रथम बिंब में लिखती ' *ढलानी पथ*' तो निश्चित ही कारण फल होता क्योंकि ऐसा होना ढलान के कारण ही संभव है।परन्तु यहाँ  *'पहाड़ी पथ* ' लिखने से मेरी कृति कारण फल के दोष से बच गयी।
          हाइकु की एक और विशेषता है और वो ये कि हाइकु को पढ़ते ही मुख से एक ' *आह* ' या ' *वाह* ' निकल उठे,अर्थात् एक श्रेष्ठ हाइकु वही है जिसमें ' *आह* ' या ' *वाह* ' के भरपूर पल हों। इस हाइकु में प्रकृति की ऐसी खूबसूरत कलाकारी देखकर स्वतः ही मुख से ' *वाह'* निकल उठता है।
             
           अतः आपको भी यदि कहीं प्रकृति  का कोई ऐसा करिश्मा दिखाई दे जो आपके दिल को छू जाये तो बस फिर देरी किस बात की है....उठाईये कलम और लिख दीजिये एक यादगार.... *'हाइकु*'

अनुपमा अग्रवाल

मेरी हाइकु की समीक्षाएँ...

[02/02, 10:55 AM] आ. Anant Purohit: जी की समीक्षा...

करवा चौथ~
विधवा के नैनों से
टपकी बूँद
हाइकुकार - अभिलाषा चौहान 'अभि'

*समीक्षा*-

        प्रथम बिंब *करवा चौथ* है, जो कि त्यौहार एवं प्रथा परंपराओं के अंतर्गत मान्य है। इसका कारण यह है कि प्रथा परंपरा एवं त्यौहार स्वयं में एक ऋतु या विशेष दिन को समेटे हुए होती हैं जो कि हाइकु में मान्य हैं और ऐसा हाइकु जिसमें ऋतुसूचक शब्द होता है वह *कीगो* कहलाता है।

         दूसरा बिंब *विधवा के नैनों से टपकी बूँद* भरपूर आह्ह के पलों को समेटी हुई एक पल की अनुकृति है। ध्यान देने योग्य यह है कि एक भी अनावश्यक वर्ण नहीं है पूरे हाइकु में। यहाँ यदि *बूँद* के स्थान पर आँसू किया जाता तो निश्चित ही यह दोहराव की श्रेणी में आता।
          दोनों बिंब का अपना स्वतंत्र अस्तित्व भी है और जब दोनों को आपस में मिलाकर विश्लेषण करें तो ऐसा लगता है कि करवा चौथ, जो कि सधवा स्त्रियों का पर्व है, में पति की याद आ रही है और विधवा की आँखों से आँसू टपक रहे हैं। इस भावना को बिना भावसूचक शब्दों के केवल दृश्य बिंब के माध्यम से दर्शाता हुआ एक *सटीक हाइकु* ।

[02/02, 3:31 PM] आ. Anupama Agrawal: जी की समीक्षा...

करवा चौथ~
विधवा के नैनों से
टपकी बूँद

        आदरणीया अभिलाषा जी की ये कृति अपने आप में बहुत कुछ कहती है।
इसमें पहला बिंब उन्होंने लिया है...
करवा चौथ~
जो भारतीय सुहागिनों के लिये एक बहुत बड़ा त्यौहार होता है। इस दिन सभी सुहागिनें सोलह श्रृंगार करके अपने पति की लंबी उम्र के लिए उपवास रखती हैं।
          हालाँकि धार्मिक बिंब हाइकु में मान्य नहीं है पर यह एक समयसूचक शब्द है अतः ये धार्मिक न होकर 'कीगो' की श्रेणी में आता है।
     अब दूसरा बिंब है----
विधवा के नैनों से टपकी बूँद----
       इस बिंब से ये स्पष्ट है कि सुहागिन स्त्रियों के इस पावन पर्व पर एक विधवा नारी अपने दिवंगत पति को याद कर रही है और उसकी याद में उसके नेत्रों से अश्रु बूँद टपक गयी। ये अत्यंत भावुक कर देने वाला क्षण है।परन्तु इस पल की तस्वीर का खाका लेखिका ने अपने शब्दों के माध्यम से पाठक के सामने खींच दिया। बिना देखे पाठक ने इस दृश्य को लेखिका की निगाहों से देख लिया। जबकि किसी भी भावसूचक विशेषण का कृति में प्रयोग नहीं किया गया है। इस कृति में आँख से आँसू जैसे किसी भी शब्द का प्रयोग न होने से दोहराव की स्थिति भी नहीं बनती है।
यही एक उत्कृष्ट हाइकु की विशेषता है।

[02/02, 3:46 PM] आ. Abhilasha: जी की समीक्षा...

करवाचौथ~
विधवा के नैनों से
टपकी बूँद।

         इस हाइकु के चयन की प्रक्रिया बड़ी कठिन थी। इस विषय को लेकर मैंने करीबन दस या बारह हाइकु बनाये थे,तब कहीं यह एक चयन हुआ।उस समय करवाचौथ का पर्व पास में था।मन में रह-रह कर बस एक ही प्रश्न उठता था कि जो सधवा अभी तक करवाचौथ का पर्व खुशी-खुशी मना रही थी। उसकी मनोदशा क्या होगी यदि वह विधवा हो जाए और पर्व पास में हो।यह निस्संदेह उसके लिए असहनीय पीड़ादायक समय होता होगा।इस एक आँसू की बूँद में उसकी अथाह पीड़ा को मैंने समेटने का प्रयास किया है। अतीत की स्मृतियाँ और वर्तमान की स्थितियों को चित्रित करने का प्रयास है।उसके लिए पति की स्मृति, वैधव्य का एकाकीपन,समाज की उपेक्षा।शुभ कार्यों में उसकी वर्जना इस आँसू की बूँद में समाई है।एक ओर वह अपने दुख से लड़ रही है, वहीं हिंदू समाज में विधवा नारियों का ऐसे समय पर शुभ कार्यों से दूर रहने की असह्य प्रताड़ना उसकी पीड़ा को दोगुना कर रही है।  
         आप सबने मेरी इस कृति को सराहा और मेरे अंदर उठती भावनाओं को शब्द दिया, कृति सार्थक हुई आप सभी का आभार।

हाइकुकार
अभिलाषा चौहान
हाइकु विश्वविद्यालय

  https://www.blogger.com/profile/17801488357188516094 Blogger 2023-01-14T07:17:12.311-08:00 <?xml version="1.0" encoding="...