Saturday 14 March 2020

चमेली कुर्रे को पढ़ें हाइकु में...

सर्वप्रथम मैं आप सभी को कुंडलिया छंद के माध्यम से हाइकु विधा को जो अब तक मैं समझ पाई हूं उसे आप सभी तक पहुँचाने का प्रयास कर रही हूं।

(1)
लिखने में हाइकु विधा , लगे बहुत आसान। 
पाँच सात वा पाँच में , दो बिम्बों को जान।। 
दो बिम्बों को जान , सदा फोटो ही लेना। 
रखना योजक चिन्ह , कल्पना लिख मत देना।।
मानवीकरण त्याग , श्रेष्ठ रचना दिखने में 
निखरे उत्तम चित्र , बने हाइकु लिखने में।।

(2)

ऐसे लगता मत बता , बात सुनो तुम मित्र।
कल परसो का हो नही , दिखा अभी का चित्र।। 
दिखा अभी का चित्र , सरल शब्दों में कहना। 
रहे प्राकृतिक दृश्य , बचे तुकबंदी रहना। 
सुवासिता दे ध्यान , लगे सब यर्थाथ जैसे। 
अलंकार से दूर , लिखो हाइकु तुम ऐसे।। 


*हाइकु मेरी नजर में*-:
लोग कहते हैं हाइकु जापानी विधा है पर मैं हाइकु के बारे में कुछ अलग ही विचारधारा रखती हूं कि हाइकु हिंदी साहित्य में  सबसे छोटी विधा है और हिंदी साहित्य की एक छोटी विधा समझकर मैने इसे लिखा है । लिखते समय मुझे एक बार भी ऐसा आभास नही हुआ की मैने किसी विदेशी विधा को लिखा है। शायद यही कारण है कि मुझे हाइकु लिखने में आनंद की अनुभूति हुई और भारतीय हिंदी साहित्य की इस विधा के आकर्षण केन्द्र दो बिंब रहें हैं। जैसा की पहले भी दोहा , कहमुकरी आदि अनेक छंदो में अलंकार मानवीकरण के साथ बिंब लिखती रही हूँ। परन्तु हाइकु में कल्पना मानवीकरण और न होते हुए दो दृश्य,  ठोस बिंब लिखे जाते हैं। इन ठोस बिंबों के आकर्षण ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया। 

*हाइकु  के प्रति मेरी समझ*-:
 प्रारंभ में मैं केवल इतना ही जानती थी कि हाइकु में पाँच सात पाँच तीन पंक्ति में १७वर्ण होते हैं ।बस मुझे इतना ही पता था 
*मैं निम्न लिखित बातों से अंजान थी*
 1. हाइकु में दो बिंब होते है 
2. बिंब कैसे बनाए जाते हैं
 3.प्राकृतिक बिंब का होना अनिवार्य है 
4.वर्तमान दृश्य चाहिए 
5.एक पल की फोटो क्लिक हो 
6. कटमार्क( ~) का प्रयोग हो 
7.12 में एक वाक्य होता है 
8. कारण दोष नही होना चाहिए 
9. तुकांत दोष नही होना चाहिए 
 ये सब मुझे नही पता था ।

*हाइकु की सुगंध व्हाट्सएप समूह में जुड़ने के बाद*-:
*आदरणीय संजय कौशिक विज्ञात* गुरुदेव जी के माध्यम से मुझे हाइकु व्हाट्सएप समूह *हाइकु की सुगंध* से जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ तब पता चला कि इसमें हाइकु सत्रह (१७) अक्षर में लिखी जाने वाली सबसे छोटी कविता है। इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में ५ अक्षर, दूसरी में ७ और तीसरी में ५ अक्षर रहते हैं। हाइकु लिखते समय यह देखें कि उसे सुनकर ऐसा लगे कि दृश्य उपस्थित हो गया है, बिंब स्पष्ट हो 
कल्पना मानवीकरण से दूर वर्तमान काल पर हो जिसमें एक बिंब प्राकृतिक होना चाहिए।

*हाइकु कैसे लिखे*-:
हाइकु अनुभूति के चरम क्षण की कविता है अर्थात अनुभूति का यह चरम क्षण प्रत्येक हाइकु कवि का लक्ष्य होता है। इस क्षण की जो अनुगूँज हमारी चेतना में उभरती है उसे ही पाँच सात पाँच शब्दों में तीन पंक्तियाँ में उतार देना ही हाइकु है ।
अर्थात सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए गागर में सागर भर कर अपनी भावनाओं को व्यक्त करना ही हाइकु है। जिससे स्पष्ट चित्र उभरता है कि हम क्या दिखा रहे है। 

*अक्षर कैसे गिना जाता है*
संयुक्त अक्षर को एक अक्षर गिना जाता है, जैसे *‘रहस्य'* में तीन अक्षर हैं – *र-१, ह-१, स्य-१*) तीनों वाक्य अलग-अलग होने चाहिए। अर्थात एक ही वाक्य को ५,७,५ के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि तीन पूर्ण पंक्तियाँ हों।
*आधा अक्षर* 
हाइकु में आधा अक्षर गणना में नही लिया जाता है ।
*मेरी प्रथम हाइकु*
1.
*महुआ गंध ~*
*चौपाल पर बूढ़े*
*खिलखिलाये*
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'

2.
*निशीथ काल ~*
*झुरमुट के बीच*
*बालिका शव*
✍चमेली कुर्रे 'सुवासिता'

*सहयोगी साथियों के सहयोग से*
निम्न लिखित सहयोगी साथियों के सहयोग से ही हाइकु लिख कर *हाइकु की सुगंध* में स्थान बना पाई हूँ ।
1.मुख्य मंच संचालक आदरणीय नरेश जगत जी 
2.आदरणीया अनुराधा चौहान जी 
4.आदरणीया अनुपमा अग्रवाल जी का विशेष योगदान रहा इन के सहयोग से  ही बारीककियां और गहराई से समझा कर एक एक सभी रचना की गहराई अच्छे से समझ पाई जैसे छोटे बच्चे को वर्ण माला सिखाई जाती है वैसे ही हाइकु के नियमों को आदरणीया अनुपमा अग्रवाल जी ने स्मरण करवाया। 

*एक कृति आदरणीय संजय कौशिक 'विज्ञात' जी की देखें*.....

*वृष्टि ओले की--* 
*बजा माँ का चिमटा*
*उल्टे तव्वे पे।*
✍ संजय कौशिक ' विज्ञात '

कवि प्रकृति और समाज के किसी विलक्षणता को अपने शब्दों में पिरोकर अपनी भावनाओं को पाठक तक पहुँचाने का प्रयास करता है। जो देखता है उसे लिखता है, प्रथम बिम्ब...

  *वृष्टि ओले की--* 

       यह एक मजबूत प्राकृतिक दृश्य बिम्ब है, जो हाइकु का आधार तत्व है। हाइकु में दो ऐसे बिम्ब चाहिए होते हैं जो प्रकृति की खूबसूरती, विडम्बना या किसी संदेश को लिखा जाए और विधिवत् प्रथम बिम्ब से घनिष्ठ सम्बंध भी रखता हो। इसलिए इससे सम्बंधित दूसरा बिम्ब...

*बजा माँ का चिमटा* 
*उल्टे तवे पे।* 

         यह बिम्ब आंतरिक रुप से प्रथम बिम्ब से संबंधित है और साथ ही एक विधान भी, कि जब भी कोई मुसीबत आन पड़ती है तब "त्राही माँ त्राही माँ" होती है, इसी मर्म को इस दूसरे बिम्ब में ओले वृष्टि की वजह से प्राकृतिक आपदा को चित्रित करने का प्रयास किया गया है। तवे को उल्टा रखना भी परम्पराओं के अनुसार परिवार में मृत्यु का सूचक होता है, (पर भिन्न-भिन्न स्थान पर भिन्न-भिन्न परम्पराएं हो सकती हैं) जो आह के क्षण को दर्शाता है और साथ ही इस विधान का ज्ञानवर्धन भी कर रहा है। ज्ञातव्य है कि इस प्रक्रिया से ओले की वृष्टि थम जाती है। (या भयंकर छाए मेघ को सूचना देना की जन मानस के अपराध क्षम्य हैं वे मर रहे हैं)  यह भी हो सकता है कि पाठक इसके तारतम्य अपनी मतानुसार अर्थ में भिन्नता रख सकते हैं, जो हाइकु को और भी मजबूती प्रदान करती है।

*एक कृति आदरणीय जगत नरेश जी की देखें*.....

*अंतिम ज्येष्ठ --*
*चतुर्भुज लहरें*
*सिंधु सतह।*
 ✍जगत नरेश 
व्याख्या :- आप जब भी दो समुद्र के संगम में पहुँचेंगे और मौसम का बदलाव यानी खूब हवा चलने की स्थिति बनती हो तभी यह दृश्य संभव है। इसलिए प्रकृति के खास पल को दर्शाते हुए मैंने प्रथम बिम्ब अंतिम ज्येष्ठ लिया है, इन दिनों आषाढ़ और मानसून के आगमन का समय होता है जिससे चक्रावात या हवा का वेग अधिक होता है। जब हवा का वेग अधिक होता है तभी दोनों समुद्र में मजबूत लहरें उत्पन्न होते हैं और फिर संगम स्थल में यह चतुर्भुज लहरें चेस बोर्ड की तरह दिखाई देते हैं। यह प्रकृति की असामान्य और खूबसूरत घटना है जिसे दुनिया के दो या तीन जगह आपको देखने को मिलेंगे। एक खास जगह है फ्रांस के पश्चिमी तट जिसे हम आइले आँफ रे के नाम से जानते हैं। यहाँ इस दृश्य को देखकर सहज ही मुख से वाह निकल आती है। क्योंकि सामान्यतः हम आढ़ी, तिरछी, सीधी लहरें ही देखते हैं। यह एक ऐसी प्राकृतिक घटना है जो हमेशा देखने को नहीं मिलता। यह जितनी खूबसूरत है उतनी खतरनाक भी है। इसमें जो कोई फँस जाता है निकलना नामुमकिन सा होता है। इसकी खूबसूरती देखकर लोग सेल्फी या फोटो लेने चले जाते हैं जिसके नीचले हिस्से में पानी की दमदार लहरों में फँसकर मिनटों में जान तक जाने की संभावना होती है।
      अतः यहाँ हाइकु के विधिवत् खास प्राकृतिक दृश्य का चित्रण करने का प्रयास किया गया है, जो हाइकु का मूल विधान है। साथ ही ऐसी प्राकृतिक घटना को लिया गया है जो अविस्मरणीय वाह का पल है।

*एक कृति आदरणीया अनुपमा अग्रवाल जी की देखें*.....

*रबी फसल~*
*किसान के घर से*
*उठता धुआँ।*
✍अनुपमा अग्रवाल 

रबी की फसल ~
ये एक ठोस प्राकृतिक बिंब है।रबी की फसल के  नाम मात्र से ही जौ,चना, सरसों, गेहूँ और मसूर आदि की फसलों का दृश्य आँखों के सामने आ जाता है ।

किसान के घर से
उठता धुआँ

अब यदि इस दूसरे बिंब पर दृष्टिपात करें तो ये बहुत कुछ बयां करता सा प्रतीत होता है।
               इसका एक भाव जो लिखते समय मेरे मन में था वो ये कि फसल की कटाई हुयी है।और अच्छी फसल के कारण किसान के घर में चूल्हा जल सका है।
ये एक भरपूर वाह का पल है जबकि अच्छी फसल होने की खुशी में एक किसान के घर में खुशियों के पल हैं।
वहीं दूसरी ओर पाठक अपने हिसाब से ये भाव भी निकाल सकता है कि किसी कारणवश कोई अनहोनी हो गयी है और संभवतः इसलिए ही किसान के घर से धुआँ उठ रहा है।ये एक भरपूर आह का पल होगा।
यही एक हाइकु की विशेषता है।
एक उत्कृष्ट हाइकु में आह या वाह के पल भरपूर होने चाहिए।
और हाइकु में लेखक प्रतिबद्ध है सिर्फ़ दृश्य बिंब लिखने के लिये, परन्तु पाठक स्वतंत्र है अपने हिसाब से अर्थ निकालने के लिए।

*अंत में*
इन सभी कलमकारों के सहयोग से ही आज मैं कलम की सुगंध परिवार से जुड़कर न केवल हाइकु विधा को लिख रही हूं बल्कि ऐसा महसूस कर रही हूं कि मैंने एक नई हाइकु विधा को सीखा है और नजदीक से जाना है अब मुझे ऐसा लग रहा है जैसे कि इस विधा के साथ मेरी मित्रता हो गई है मैं हाइकु को नहीं छोडूंगी हाइकु तो मुझे नहीं छोड़ेगी पर मैं भी हाइकु को कभी नहीं छोडूंगी।

      🙏🙏🙏
चमेली कुर्रे 'सुवासिता'
जगदलपुर बस्तर (छत्तीसगढ़ )

Friday 6 March 2020

सौरभ प्रभात के हाइकु...

*मधुयामिनी~*
*श्वेत चादर देख* 
*आँखों में लाली*

*हाइकुकार - सौरभ प्रभात* 

व्याख्या - इसे लिखते वक्त जो भाव मेरे मन में उत्पन्न हुये थे, इसे आपके साथ साझा करना चाहता हूँ-

*मधुयामिनी*
          ये समयसूचक बिंब है, जो स्वयं में परिपूर्ण है। इसे पढ़ते ही पाठक के अंतर्मन में सुहागरात का दृश्य उद्धृत हो जायेगा।

*श्वेत चादर देख आँखों में लाली*
       आज भी कई स्थानों पर ये प्रथा प्रचलन में है कि सुहागसेज पर सफेद चादर बिछा दी जाती है ताकि नववधू के कौमार्य की पुष्टि हो सके। परंतु आधुनिक समय में एक पढ़ी लिखी लड़की के लिये यह प्रथा असहनीय है।पाठक सहज ही अनुभव कर सकता है कि सुहागसेज पर बिछी सफेद चादर देख कर दुल्हन के मन की पीड़ा आँखों में लाली बन तैर रही हैं या वो ये भी अनुभव कर सकता है कि स्त्री-पुरूष समानता के भावों से परिपूर्ण दुल्हन इसे देख कर आंदोलित हो जाती है और उसकी आँखों में गुस्से के लाल डोरे खिंच जाते हैं।
         पाठक यदि चाहे तो कर्ता को पुरूष रख कर भी समान भाव से इस बिंब को देख सकता है।
जैसे - कमरे में प्रवेश करते ही जब वर सुहागसेज पर सफेद चादर देखता है तो कौमार्य पुष्टि वाली बात जेहन में आते ही उसकी आँखों में आत्म-मुग्धता अथवा पौरूष (वासना कहना उचित नहीं होगा) की लाली दृष्टिगत होती है। या फिर ऐसे भी समझ सकता है पाठक कि वर, जो स्त्री-पुरूष समानता से अभिप्रेरित है, जब सुहागसेज पर सफेद चादर देखता है और वहीं अपनी पत्नी के चेहरे पर विषाद एवं असमंजस के भाव देखता है, तो उसे अपने परिवार के संकुचित सोच पर क्रोध आता है और यही क्रोध उसकी आँखों में लाली के रूप में परिलक्षित हो रहा है।

*आ० अनुपमा अग्रवाल जी के शब्दों में इस कृति की समीक्षा*

                
        ये हाइकु मानवीय संवेदनाओं का बहुत ही खूबसूरती के साथ निरूपण करती एक शानदार कृति है।
            इस रचना में प्रथम पाँच वाले बिंब में *मधुयामिनी* ----अर्थात् नवयुगल के प्रथम मिलन की रात्रि का वर्णन किया गया है।
मधुयामिनी एक पूर्णतः प्राकृतिक बिंब है जो हाइकु लेखन की सर्वप्रथम शर्त है।
      अब दूसरे बारह वाले बिंब पर यदि दृष्टि डालें तो ये बिंब अपने आप में बहुत कुछ समेटे हुये है।
         *श्वेत चादर देख* 
          *आँखों में लाली* ।   
      प्रथम दृष्टया इस बिंब को देखने से ये भाव उत्पन्न होते हैं कि
एक नववधु की मधुयामिनी का अवसर है।और उसी पल उसके सुहाग की मृत्यु हो जाती है। पति के शव को सफेद चादर में लिपटा देखकर वो न तो रो ही पाती है और न ही कुछ कह पाती   है।और बस इस असह्य दुःख की पीड़ा से उसकी आँखें लाल हो जाती  हैं और उसके आँखों की लाली को हम साफ साफ देख सकते हैं।
       भरपूर *आह के पल* हैं इस बिंब में। 
            
      दूसरी ओर यदि हम इस कृति का थोड़ी गहराई  से मनन करें तो हम पायेंगे कि इस कृति में  आह के नहीं  बल्कि *वाह के पल* भरपूर हैं। 
आईये देखते हैं कैसे.....
     मधुयामिनी का अवसर है।नववधु अपने कक्ष में बैठी है।
       कक्ष में पलंग पर *श्वेत चादर* बिछी है जो कि आमतौर पर मधुयामिनी की चंद विशेषताओं में से या फिर यूँ कहूँ कि परंपराओं  में से एक मानी जाती है।
         अब ये सफेद चादर का बिंब तो स्पष्ट हो गया।अब दूसरा दृश्य बन रहा है *आँखों में  लाली*-----तो जब नववधु मधुयामिनी में सर्वप्रथम अपने जीवनसाथी को देखती है तो लजा जाती है और लाज से उसकी आँखें लाल हो जाती हैं।हया की लाली उसकी आँखों में स्पष्टतः दृष्टिगोचर होती है।
ये एक भरपूर *वाह का पल* होगा जब पहली बार अपने जीवनसाथी का सामीप्य पाकर नव दुल्हन की आँखों में शर्म की लाली छा जाती है।
अतः ये हाइकु मानसिक बोधगम्य की श्रेणी  के अंतर्गत आता है, जहाँ पाठक अपने अनुसार कृति का अर्थ निकालता है।हाइकु में लेखक को कल्पना की स्वतंत्रता नहीं है परन्तु पाठक अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाने के लिये पूर्णतः स्वतंत्र है ।
           अब इसी बिंब में पाठक को एक और स्वतंत्रता है।यदि हम यहाँ कर्ता को बदल दें।अर्थात् मधुयामिनी को लेकर जितने सपने एक पत्नी अपनी आँखों में संजोये होती है, उतने ही सपने एक पति के भी होते हैं।अब यहाँ पाठक यह भी सोच सकता है कि श्वेत चादर में पत्नी का शव है,और मधुयामिनी के दिन अपनी पत्नी के शव को देखकर एक पति पर क्या बीती होगी? जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पुरुष सहजता से अपनी पीड़ा को नहीं दिखाते हैं।एक स्त्री रोकर अपना मन हल्का कर लेती है पर पुरुष तो वो भी नहीं कर पाते।और उसी अवसाद में डूबे पति की आँखों में लाली देखी जा सकती है।
          अब एक और भी अभिप्राय यहाँ हो सकता है----
          पत्नी की मृत्यु किन परिस्थितियों में हुयी?यह कृति में स्पष्ट नहीं है।अब यहाँ फिर पाठक स्वतंत्र है ये सोचने के लिए कि हो सकता है पत्नी के  साथ किसी ने कुकृत्य किया हो और परिणामस्वरूप पति की आँखें क्रोध से लाल हो गयी हैं।मानो आवेश से उसकी आँखों में खून उतर आया हो।
इस प्रकार, यदि हाइकु के नियमों के मापदंड पर इस हाइकु को परखा जाया तो ये हर तरह से एक श्रेष्ठ कृति है।

*आ० दीपिका पांडेय "क्षिर्जा" जी के शब्दों में इसी कृति की समीक्षा*

यदि हम इस कृति को देखें तो इसके अनुसार यहाँ आह और वाह पल दोनों ही दिखाई देते हैं जो इस हाइकु को अद्भुत बनाते है।
किंतु यहाँ 'श्वेत चादर' और 'आँखों में लाली' यदि इन शब्दों पर गौर किया जाए तो मैं यह पाती हूँ कि श्वेत चादर एक मानसिक बोधगम्य प्रश्न उकेरता है।कि सफेद चादर ही क्यों??जो इस हाइकु को सुदृढ़ बनाता है वहीं दूसरी ओर आँखों में लाली आह के पल को समेटते हुए नारी/पुरूष के क्रोध को दर्शाता है कि, वो यह इंगित करने का प्रयास करना चाह रही/रहा है कि आज भी नारी की पवित्रता और अस्मिता का उसे प्रमाण देना पड़ेगा??
किंतु यदि मैं इस कृति पर पुन: विचार करूँ तो यह पाती हूँ कि आँखों में लाली अर्थात सुखद अनुभव को दर्शाता है जो कि वाह के पल है।इससे कोई सरोकार नहीं कि चादर का रंग जो भी हो।अर्थात कुलमिलाकर कहा जा सकता है कि यह हाइकु बहुत कुछ बयां करता है।

*आ० अभिलाषा चौहान जी की दृष्टि से इस कृति की विशेषता*

प्रस्तुत हाइकु में रचनाकार ने भरपूर आह के पल प्रस्तुत किए हैं।मधुयामिनी अर्थात मधुर मिलन की बेला,जिसकी प्रतीक्षा हर नव युगल को होती है। लेकिन यहाँ पर श्वेत चादर बिछी हुई है,अर्थात कुछ अनिष्ट हो चुका है। खुशियों के स्थान पर दुख है, नेत्रों में लाली अर्थात रोने से
आँखें लाल है।यहाँ पर प्रथम बिंब सशक्त है और दूसरे बिंब के साथ मिलकर एक मार्मिक दृश्य उपस्थित कर रहा है, इसमें रचनाकार ने दृश्य के माध्यम से स्वयं कुछ न कहकर एक संपूर्ण बिंब नेत्रों के समक्ष ला दिया है।

लेखक - सौरभ प्रभात

Monday 2 March 2020

मनोरमा जैन 'पाखी' जी को पढ़ें हाइकु में...

"हाइकु" 

हाइकु  (बहुवचन हाइकू) एक बहुत छोटी जापानी कविता है. इसके तीन गुण है

-जिसे हाइकु की जान या मुख्य गुण कहा गया है वह "किरे" , कटाई है (अँग्रेज़िमे cut, जापानिमे kiru या kire) जो दो बिंबो को संमिधि में रखने का काम करता है.

जापानी मे एक kireji, यह जापानी हाइकु मे एक शब्द या मौखिक चिह्न के रूपमे होता है और जो दोनो बिंबोके बीच रहता है वह बिंब बदलने का संकेत देता है.

* पारंपरिक हाइकु  17 वर्ण (जापानी  में on या morea कहते है) का होता है जिसे तीन वाक्यांश में तीन पंक्तियों में 5 , 7 और 5 वर्ण में लिखा जाता है.

* ऋतु शब्द (जापानी में  किगो) का होना हाइकु में आवश्यक है यह शब्द एक संग्रह से ही लिया जाता है (जापानी में जिसे साइज की कहते है) हाइकु में प्रकृति मुख्य विषय होता है.

एक हाइकू के दो हिस्से होते हैं | पहले हिस्से में एक बिम्ब और दूसरे हिस्से में दूसरा बिम्ब | यह तीन पंक्तियों में व्यक्त किया जाता है 

दोनों हिस्सोंके बीच होता है चीरा जो चिह्न के रूप में होता है (किरेजी, kireji ) . पाठक भाव बदलने पर तुरंत समझ जाता है कि दूसरा बिम्ब शुरू हो रहा है

तीन पंक्तियों में से दो पंक्तियाँ जुड़ी हो और एक स्वतंत्र हो. कुल मिला के ऐसे दो हिस्से ५ +१२ या १२+ ५ शब्दांश में, कुल १७ वर्णों में हो. एक हाइकु के लिए किगो (Kigo) अर्थात "ऋतु शब्द" बहुत अहम होता है 

आधुनिक जापानी हाइकु ( गेंदेइ हाइकू )

गेंदेइ मे 17 वर्ण का उपयोग नहीं होता है पर छोटी / बड़ी / छोटी ऐसे तीन  पंक्तियाँ होती हैं,  पर दो बिंबोका दृश्यका संमिधि मे रखना (अँग्रेजी में juxtaposition) बहुत ही अनिवार्य है -- दोनो पारंपरिक और आधुनिक हाइकु में यह समानता है l
*जापानी में हाइकु ,केवल एक ही पंक्ति में छापा जाता है. हिंदी में तीन पंक्तियों में लिखे जाते हैंl

हिंदी हाइकु प्रणाली 

*पहले के हाइकु के ज्ञाताओं के अनुसार तीन पंक्ति, तीन भाव लेकिन  पारम्परिक ज्ञाताओं के अनुसार तीनों पंक्तियों में से कोई भी दो पंक्ति जुड़ी हुई होनी चाहिए जैसे पं 1 और पं 2 या फिर पं 2 और पं 3 जुड़ी हुई  रहनी चाहिए. जो पंक्ति जुड़ी नहीं है वहाँ kireji या चीरा का चिह्न (- या ; जिसे) से अलग किया जाता है ताकि हाइकु के दो हिस्से अलग से दिखे. हाइकु जो पहले हॉककू के नाम से जाना जाता था, उसे यह नाम मासाओके शिकिने 19वी सदी के अंत में दिया...

कीगो (Kigo )

की----एक ऋतू (तीन में से एक ऋतू )

गो-- शब्द 

कीगो--ऋतू शब्द 

कीगो  एक ऋतू निर्देश होता  है

 हाइकु के और दिशा निर्देश 

१. पारम्परिक हाइकु सिर्फ प्रकृतिके विषय परहोता है 

२. हाइकु में बयान या कथन नहीं होते हैं 

३ - लाइन १ लाइन २ और लाइन ३   अर्थाहट  पं १, पं  २, पं ३ ---पंक्ति क्रामक १ , २ और ३ 

४ .हाइकु में उपमा है अगर आप सन्निधि में चीरे (juxtaposition with kireji) के साथ दो बिम्ब अलग-अलग एक ही हाइकु में इन्हे शिल्प करें तो
यही अच्छे शिल्पकार हाइकु कवि की खूबी है
५. ५+ १२ या १२ +५ में ढलने से पहले दो दॄष्यों की 
रूप रेखा कर लें। ५ में एक दृश्य और १२ में दूसरा दृश्य 
ऐसे कुल मिलाकर दो दृश्य अलग-अलग लिख लें। फिर उन्हें सन्निधिमें (-)चिह्न द्वारा अलग कर साथ में लिख लें
५ वाला दृश्य वाक्यांश में हो पर १२ वाला वाक्य में भी हो सकता है।
१२ वर्ण का अर्थ यह होता है कि यह दो पंक्तियाँ स्वतंत्र नहीं है जुड़ी हुयी हैं। 
१२ वर्णोका हिस्सा जब लिखें तब ये ध्यान दें कि वह दो वाक्यांश न हो। एक ही वाक्यांश या तो वाक्य भी हो सकता है। 
५ + १२ का अर्थ है एक स्वतंत्र पंक्ति और दूसरी तीन में से दो पंक्तियाँ जुड़ी हुयी है। 
                 "कुल मिलाकर दो हिस्से"

६. हाइकु में मानवीकरण और कल्पना नहीं होती, वास्तविकता होता है। पर वास्तविकता को ५ इन्द्रियों द्वारा एक क्षण की अनुभिति ही ३ पंक्तियों की यह रचना कराता है। 
धरती चाँद नभ सूर्य धारा आदि अगर मानव की तरह कुछ करते दिखेंगे या कोई भी निर्जीव वास्तु या मूक जानवर कोई मानव की तरह कार्य करे और उसे जैसी कल्पना को रचना में दिखाना मानवीकरण होता है। 

७ . हाइकु / सेनर्यु में विशेषण और क्रियाविशेषण से क्यों दूर रहना है या उपयोग टालना है? 
पहले ३ पंक्तियाँ और १७ वर्ण सबसे बड़ी चुनौती है तो बिम्ब और भाव को अक्षत रख कर विशेषण और क्रियाविशेषणको हटाये जा सकते है जो बिन जरूरी हो। 
दूसरा और महत्त्वपूर्ण बिंदु, इनके उपयोगसे देखा गया है कि रचना कहने लगती है दिखती नहीं है। 
अगर विशेषण और क्रियाविशेषण रचना के लिए बहुत ही जरूरी है, तब ही इसका उपयोग करना है। अगर रचना के बिम्ब या भाव इनके बगैर बहुत बदल जाते हैं या इनका उपयोग अनिवार्य है तब ही इनका उपयोग उचित होगा।
जैसे :-
01.जीतेन्द्र उपाध्याय अद्वैतजोगिआ 
मंगल  लग्न -
पगड़ी की दुहाई 
दे रहा बापू |
02.शरद श्रीवास्तव 
लेकर आया
पत्र पेटी से खत़-
इत्र का फाहा।
03.कैलाश कल्ला 
घने बादल -
विडिओ कॉल देख
पूजती चाँद |


मनोरमा जैन पाखी

अनुराधा जी के विचार, हाइकु के प्रति...

करीब सात-आठ महीने पहले आदरणीय नरेश कुमार जगत सर के हाइकु सुगंध समूह से जुड़ी थी।
पहले सोचा हाइकु क्या है? बस पाँच-सात-पाँच के क्रम में अपनी बात कह देना।
पर यहाँ आकर पता चला! नहीं मैं ग़लत थी!यह विधा उतनी आसान नहीं थी जितना आसान मैं समझ रही थी। 
यहाँ नियम भी बहुत अलग थे।दो स्वतंत्र बिम्ब, दोहराव नहीं और शब्दों का बिखराव नहीं, एक पल की अनुकृति होना चाहिए। हाइकु में प्राकृतिक बिम्ब अनिवार्य है। इसके बिना रचना अधूरी है। मौसम में बदलाव,ध्वनि या समय को दिखाते हुए 'आह' व 'वाह' के दृश्य बनाकर अपनी बात कहना।
तुलना, मानवीयकरण,से बचते हुए यथार्थ पर ठोस बिम्ब का निर्माण करना। उपमा का कोई स्थान नहीं, वर्तमान पर हाइकु लेखन करना। दोनों बिम्ब के विभाजन के लिए कटमार्क (~) का प्रयोग करना। कारण फल से बचना।आपके दोनों बिम्ब के बीच 'क्या और क्यों' कारण फल पैदा कर सकता है।विशेषण मान्य नहीं, हाइकु में कथन की भी कोई जगह नहीं है। हमें बिम्ब के जरिए दृश्य दिखाना रहता है।
हाइकु!कम शब्दों में बड़ी बात कहना!यानि गागर में सागर भरने जैसा है।
हाइकु लेखन देखने में बहुत छोटी विधा है मगर कम शब्दों में बड़ी बात कह जाती है।
यहाँ आदरणीय संजय कौशिक'विज्ञात'जी के बारे में बताने जा रही हूँ!

गुड़ का कोल्हू~
आँच पे कड़ाही में
गन्ने का रस।

यहाँ विज्ञात जी की रचना का पहला बिम्ब है। *गुड़ का कोल्हू*  बिना कैमिकल के हाथ से बने गुड़ के बारे में बताया गया है।जिसे बनाते समय लगातार गोल-गोल घुमाना पड़ता है। ठीक वैसे ही जैसे रस निकालते समय कोल्हू गोल-गोल घुमता रहता है।
*आँच पे कड़ाही में*
*गन्ने का रस।*
दूसरे बिम्ब में गन्ने के रस को आँच पर पकाते समय का दृश्य दिखाया जा रहा है।किस प्रकार गन्ने के रस को आँच पर पकाकर शुद्ध देसी गुड़ बनाया जा रहा है। आदरणीय विज्ञात सर का यह हाइकु बहुत सुंदर है।

आदरणीय संजय कौशिक'विज्ञात' जी का ही एक और हाइकु है।

मक्खन पिंडी ~~ 
हाथ में नेती पैर 
मटकी पर 
 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

*मक्खन पिंड़ी* आपने अक्सर देखा होगा,जब मक्खन निकाला जाता है तो माँ उससे मट्ठे की एक-एक बूँद निकालने के लिए उसे हाथ में घुमा-घुमाकर पिंडी का आकार देती रहती है।

*हाथ में नेती पैर*
*मटकी पर।*

जब मक्खन निकाला जाता है तो मटकी में रखे दही को ताकत से मथने के लिए महिलाएं मटके को पैर लगाकर रखती है ताकि वो अपनी जगह से न हिले। और वे हाथों में पकड़े रस्सी से उसे जोर-जोर से मथ सकें। आदरणीय विज्ञात जी ने यही दृश्य अपने हाइकु के माध्यम से बताने का प्रयास किया है।

हाइकु में हम अपने आस-पास घटती घटनाओं को कम शब्दों में बयां करके अपने पाठकों तक पहुँचा सकते हैं। हाइकु में जो भी सीखा वो आपके सामने है। अभी भी सीख ही रही हूँ।बस यही कहूँगी!

कारण फल से दूर हो,हाइकु का यह सार।
कल्पना बिना सीखिए,करके सोच विचार।
करके सोच विचार,कथन से दूरी रखना।
आह के पल अपार,वाह का फल भी चखना।
कहती अनु सुन बात,वर्ण सत्तरह उच्चारण।
अनुकृति हो पल एक, बिम्ब रचना बिन कारण।

बस यही सारी बातों को ध्यान रखकर हमें हाइकु लेखन को और भी दिलचस्प बना सकते हैं।

एक और देखते हैं...

रात में झंझा~
तापमापक पर
टपका आँसू।
हाइकुकार--अनंत पुरोहित जी

यहाँ रचनाकार ने अपने हाइकु के माध्यम से रात्रि प्रहर में घटी घटना का चित्रण किया है।
*रात में झंझा~*
पूर्णतः प्राकृतिक बिम्ब है। इस बिम्ब के जरिए हाइकुकार ने  *रात में आई भीषण आँधी का ज़िक्र किया है।*  जिसमें किसी का भी बाहर निकल पाना मुश्किल होता है।
फिर दूसरा बिम्ब लिया है।
*तापमापक पर*
*टपका आँसू।*
अब आप सोचेंगे.. तापमापक पर आँसू..? इसमें ख़ास बात क्या है।अब यहाँ हाइकुकार ने तापमापक (थर्मामीटर) का ज़िक्र किया है।तो कुछ तो ख़ास होगा। *इस हाइकु में हमें मानसिक बोधगम्य की झलक देखने को मिलती है* वो यह कि रात्रि प्रहर में घर का कोई सदस्य का बदन तेज बुखार से तप रहा है। तीव्र आँधी की वजह से उसे चिकित्सकीय लाभ नहीं मिल पा रहा है।इस कारण तापमापक में बुखार की तीव्रता देखकर,आँख में आँसू छलककर तापमापक पर टपक गया।इसी मानसिक पीड़ा को हाइकुकार ने अपने हाइकु में दिखाकर भरपूर *आह* के क्षण भरे हैं।यह हाइकु अपने आप में एक बेहतरीन हाइकु है ।हाइकुकार अपने भाव को दिखाने में पूर्णतः सक्षम हुए हैं।

रचनाकार-अनुराधा चौहान

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