Friday, 24 July 2020

चर्चा सार में...

कोरोना काल--
कंटेन्मेंट जोन में 
घुसा विक्षिप्त

सुकमोती चौहान

आ. सौरभ प्रभात जी: कंटेन्मेंट जोन के लिये नियंत्रण क्षेत्र का प्रयोग किया जा सकता है शायद 

आ. निधि जी: मुझे कोरोना काल सही बिंब नही लगा कभी भी ..कोरोना महामारी है रोग है कोई काल नही है..
पहले भी बहुत सी महामारियां और भीषण दुर्घटनाएं हो चुकी ..लेकिन उनको काल नही लिखा गया..
जैसे ..
हैजा काल
भोपाल गैस कांड काल
उपहार सिनेमाहाल अग्निकांड काल 
विश्व युद्ध काल 
आदि
लेकिन बहुत सारी रचनाएं लिखी जा चुकी हैं कोरोना काल को बिंब बना कर
किन्तु मेरी मंदमतिनुसार ये बिंब गलत है 
सादर क्षमाप्रार्थी

आ. सुकमोती जी: जी दीदी आपका कहना सही है किन्तु *कोरोना काल*  महामारी के लम्बी समयावधि को दर्शाने के प्रयोग किया है 

आ. निधि जी: विश्व युद्ध तो कई वर्षों चला
हैजा महामारी भी बहुत समय तक फैली

आदरणीय सर के विश्लेषण की प्रतीक्षा है

आदरणीय जगत नरेश जी: आपके सटिक विचार और चोखी नजर को सादर नमन् आ. निधि जी

कृपया इस विषय सुझाव रखें कि इस काल को और किस तरह रखें कि वह एक पूर्ण बिम्ब हो, सादर निवेदन

आ. निधि जी: हार्दिक आभार आदरणीय सर ...मेरी कोई विशिष्टता नहीं है इसमें...आप सब के मार्गदर्शन और समीक्षा से ही सीख रहे हैं हम सब ...कोरोना काल वाली रचनाएं पढ़ी तो जो विचार आया वही साझा किया था

आ.जगत नरेश जी: मेरा मानना है कि हम जिसे दिखाने में सक्षम नहीं हो पाते या यूँ कहें कि जिसका दृश्य नहीं बन पाता तो उसके चरम शब्दों से कथ्य के माध्यम से उस बिम्ब को पाठक तक पहुँचा सकते हैं। पर जिसका दृश्य बनता हो उसका कथ्य बिम्ब शून्य मान्य न दें तो बेहतर।
     शेष आप सभी इस विषय में विचार के पश्चात् निश्चित करेंगे। आप सबके विचार सादर आमंत्रित हैं।

आ. सौरभ प्रभात जी: *कोरोना काल का बिंब रूप में निरूपण कितना सार्थक*


कई दिनों से पटल पर कोरोना काल को लेकर असमंजस की स्थिति उत्पन्न है, कि इसे बिंब के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है अथवा नहीं। इस परिचर्चा में मेरी समझ से एक छोटा सा विश्लेषण प्रस्तुत कर रहा हूँ।

*काल* शब्द स्वयं में काफी विस्तृत है। इसके उच्चारण मात्र से पाठक अथवा श्रोता को किसी खास समय का उसकी विशेषताओं के साथ भान हो जाता है। जैसे रामायण काल कहते ही मानस पटल पर राम, रावण, हनुमान, लंका, अयोध्या, इत्यादि के दृश्य चलायमान हो जाते हैं, ऐसा ही महाभारत काल की भी स्थिति है। मुगल काल हो या अंग्रेजी शासन काल, इन सब की कुछ खास ऐसी विशेषतायें है, जिसने एक बहुत बड़े भूखंड पर समान आचार, विचार व व्यवहार को प्रतिस्थापित किया।

 बाढ़ की आपदा, अकाल, हैजा महामारी, भोपाल गैस त्रासदी, या कोई अन्य प्राकृतिक जन्य आपदायें.... ये सभी भी अपने आप में महत्वपूर्ण हैं, परंतु इनका दायरा निश्चित होता है, या तो इनका फैलाव क्षेत्रीय स्तर पर हुआ या होता है अथवा इनकी पुनरावृति होती रहती है। पूरा विश्व कभी एक बार में ही इनकी चपेट में आया हो, ऐसा ज्ञान नहीं है मुझे। जहाँ तक बात है विश्वयुद्ध की, तो इससे पूरा विश्व प्रभावित तो हुआ परंतु अप्रत्यक्ष रूप से। प्रत्यक्ष रूप में इसका असर भी सीमावर्ती क्षेत्रों अथवा सेनाकर्मियों एवं शासनतंत्र तक सीमित रहा। इस अवधि में कोई ऐसा विशेष आचरण व्यवस्था भी रही हो, इसमें भी संदेह है। अतएव इन्हें काल की संज्ञा देना वैसे भी उचित प्रतीत नहीं होता।

अब बात करते हैं कोरोना की, एक दुःसाध्य रोग, जिसने एक छोटे से कस्बे से अपना स्वरूप पाया और देखते ही देखते वैश्विक रूप इख्तियार कर लिया। वैश्विक स्तर पर करोड़ों जनता को प्रभावित करता यह रोग अपने साथ कुछ खास आचार, नियम, व्यवहार लेकर आया, जो पूरी दुनिया में मान्य किये गये, जिसके कुछ उदाहरण हैं - मास्क, सैनेटाइजर, लॉकडाउन, सामाजिक दूरी इत्यादि। अभी तक के कालखंड में किसी भी बीमारी ने पूरे विश्व को एक ही तरह के नियम व्यवहार के दायरे में नहीं बाँधा था, (और ईश्वर से कामना है कि भविष्य में भी ऐसा न हो).... यदि फिर कभी ऐसा होता भी है, तो भी सर्वप्रथम तो सदा ही याद रखा जाता है। इसप्रकार यदि हम देखें तो पायेंगें कि कोरोना संक्रमण का ये दौर मानव जीवन की एक अमिट याद बनकर सदा ही रहने वाला है, जिसके नाम से ही बहुत से दृश्य यथा- मुख पर मास्क लगाये लोग, सैनेटाइजर का प्रयोग एवं गंध, पीपीई सूट, लॉकडाउन और उससे जुड़ी अनेकानेक परेशानियाँ इत्यादि मानसपटल पर स्वतः ही उभर आयेंगें। ऐसे में कोरोना संक्रमण का इस दौर को *कोरोना काल* की संज्ञा देना अतिशयोक्ति नहीं होगी और बिंब के रूप में इसका निरूपण भी मेरी समझ से सर्वोचित है।

आ.अनुपमा अग्रवाल जी: सहमत हूँ मैं भी आपके विचार से

आ. अभिलाषा जी: सहमत हूं भाई,कोरोना काल बिंब सशक्त है। इस काल में जो भी घटित हो रहा है,उसे जब हम दूसरे बिंब के रुप में लेते हैं तो वह दृश्य रूप में आह-वाह के पल निर्मित करता है,ऐसा कब हुआ इससे पहले की रुग्ण वाहिनी आई
और उसके बाद पूरे क्षेत्र को कन्टेंट मेंट क्षेत्र घोषित करके सेनेटाइज किया गया हो या किसी को अपने प्रिय का शव छूने न दिया गया हो या अतिथि के आने-जाने पर प्रतिबंध हो।मेरे ख्याल से इस बिंब से संबंधित हाइकु इस समय की घटना या दृश्य को मार्मिकता से चित्रित करते हैं।
काल कहने से लंबी समयावधि का बोध होता है पर उस काल में घटित घटना एक पल की अनुकृति होती है।जो उस कालखंड को सीमित कर देती है।मेरी मति के अनुसार।बाकी विद्वजन जैसा सोचे।

आ. अनुपमा अग्रवाल जी: बिलकुल सही कहा आपने दी👍👍

मेरा भी यही मानना है।आज तक ऐसा कुछ भी इससे पूर्व सुनने में नहीं आया  कि पूरे विश्व में लाॅकडाउन हुआ हो।क्या आज तक इतिहास में कभी मंदिर मस्जिद बंद हुए हैं?? और आज तक का इतिहास यदि उठाकर देखा जाये तो हवाई यात्रा, रेल यात्रा, बस कभी भी इस तरह से इतने दिनों के लिए बंद  नहीं हुए।मुंबई के लिये ये प्रसिद्ध है कि मुंबई कभी रुकती नहीं और यहाँ की लोकल रेल सेवा यहाँ की जीवन संचायिनी मानी जाती है जो हर वक्त दौड़ती ही रहती है।अबकी बार पहली बार इतने दिनों के लंबे समय के लिए बंद हुई है।न ही इससे पूर्व कभी इतनी बड़ी मात्रा में सैनेटाइज़र और मास्क का उपयोग वैश्विक स्तर पर देखने में आया।अतः मेरे विचार से भी ये एक सशक्त बिंब है जिसे पढ़ते ही आँखों के समक्ष इस पीड़ा से गुजर रही त्रासदी की याद ताज़ा हो जायेगी।

हाइकु विश्वविद्यालय

4 comments:

  1. बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक चर्चा
    कोरोना उस सीमित अवधि के लिए भी प्रयुक्त हो सकता जब जनजीवन थम गया था और जनता में
    अनजाना भय व्याप्त था।अब उतना प्रतिबंध नहीं है,जीवन सुचारु रुप से चल रहा है,बस सावधानी अपेक्षित है।सादर

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  2. कोरोना काल में जो भी घट रहा है उसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी। दौड़ती-भागती जिंदगी अचानक ठहर जाए पहले यह सब किताबी बातें थीं।अब जब हम इस महामारी के चलते इस परिस्थिती को जी रहे हैं तो मेरे ख्याल से इस हाइकु में कोरोना काल एक मजबूत बिम्ब प्रतीत होता है। बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति 👌👌👏👏👏👏

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  3. लाजवाब,सार्थक स्वस्थ चर्चा👌👌💐💐🙏🙏

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