Sunday 25 December 2022

01. आ. अनंत पुरोहित जी


मावस रात~

झिलमिल दीपों से

रौशन घाट।


दीप उत्सव~

दरवाजे लटका

धान की बाली।


गेंदा उद्यान~

ओस फैले घास पे

पग के चिह्न


जर्जर पुल~

नाक दाबे हाथ से

राह पे लोग।


पहाड़ी घाटी~

देवदार नोक पे

जमा तुषार


श्रावणी झड़ी~

प्रेमी गुनगुनाया 

राग ठुमरी


पूस की भोर~

ओस की बूँदें बनी

पैरा पे बर्फ 


मेघ गर्जना~

मयूर की चोंच से

छूटा भुजङ्ग 


रात में झंझा~

तापमापक पर

टपका आँसू 


श्रावण साँझ~

बैलगाड़ी का चक्का

गड्ढे में फँसा 


02. आ. अनुपमा अग्रवाल जी


जल फव्वारा

बालक के मुख से--

इंद्र धनुष।


तेल की रस्म~

बाग में हल्दी लिए

विधवा माता।


अंधे पुत्र का

हाथ पकड़े बाबा~

भीगी सड़क।


जल प्रपात~

अजगर मुख में

वानर ग्रीवा।


वट सावित्री ~

गणिका की मांग में 

भरा सिंदूर।


अर्ध यामिनी~

रुग्णवाहिनी स्वर

गली में गूंजा।


पहाड़ी पथ~

वायु वेग से बने

हिम के रोल


घनेरे मेघ~

महासागर फैले

बर्फ के पुष्प 


शीत मध्याह्न~

बरनी के धुएँ से

हींग सुगंध। 


सर्द फाल्गुन ~

युग्म इंद्रधनुष

अचल पीछे।


03. आ. अभिलाषा चौहान जी


हल्दी की रस्म~

विधवा के हाथ में

लाल चूनर...


द्वार पे ईख~

आंगन में चौक पे

सिंघाड़ा-कंद।


हिमस्खलन~

उत्तुंग श्रृंग पर

पर्वतारोही...


गोधूलि बेला --

प्रसूता के कक्ष से

लोबान गंध..


छत पे काग~

वृद्ध मां-बाप पोंछे

आंखों के कोर..


ग्रीष्म मध्याह्न~

शीश घट उठाए

रेत पे बाला।


मेघ गर्जना~

चावल ढेरी मध्य

सुई गाड़ी मां


बिल्ली का शव~

ज्योतिषी पोथी खोले

आंगन मध्य..


ओस की बूँदें 

विद्युत तार पर ~

कपोत झुंड...


बीहड़ वन~

बबूल के तने से

खुरची गोंद..


04. आ. अनुराधा चौहान जी


दाह संस्कार~

पति लिए हाथों में

मोगरा लड़ी।


अचार गंध~

बालिका के हाथ में

मिट्टी का घड़ा 


धान के खेत~

पत्नी की टोकरी से

मिष्ठान गंध।


विवाहोत्सव~

तोहफे में निकली

प्याज टोकरी।


अलकनंदा~

धार मध्य पकड़ी

भाई को बाला।


शरद साँझ~

माँ अलाव में डाले

नीम पत्तियाँ।


पौष मध्यान्ह~

दादी के पोटली से

सपड़ी गंध।


पौष मध्यान्ह~

आँगन में बनायी 

माँ तिल पट्टी।


चैत्र मध्यान्ह~

पलाश फुगनी पे

तितली झुंड/भ्रमर गूँज


पोळा-पिठोरा~

बैल सींग पे पुष्प

माला घुँघरू।


05. आ. अनिता मंदिलवार "सपना" जी


वर्षा की रात ~

मिट्टी का वो घरौंदा

है औंधा गिरा ।


अक्षय व्रत ~

वट पत्ता जूड़े व

माँग सिन्दूरी ।


हटे तिमिर ~

सपने जेहन में

दस्तक दिये ।


खुशबू तेरी

मुझ तक पहुँची ~

शीतल हवा ।


शुक्र का तारा ~

दादी निहारे नभ

त्रियामा काल ।


इत्र गुलाब 

महके उपवन ~

कृत्रिम पौधे ।


संक्रांति काल ~

तिल-गुड़ की गंध

गाँव गली में ।


झील में अख़्स

झिलमिल तुम्हारे ~

पुराने ख़त ।


भौंरा गुंजन

बसंत बगिया में ~

सहेली संग ।


फागुनी धूप

चमकाए चेहरे ~

नगाड़े धुन ।


06. आ. अनिता सुधीर जी


चांद का बिम्ब

झील पे झिलमिल~

नाव में प्रेमी।


नदी में कश्ती~

डूबते नाविक ने 

शाख पकड़ा


कुत्ते की रोटी

मुन्नी से छीने वृद्धा~

भ्रमण काल 


अस्ताचल में 

आसमान रक्तिम~

पत्नी द्वार पे


गोधूलि बेला~

सागर में रंगीन

सूर्य का बिम्ब 


जल प्रपात ~

चोंच में मीन रखे

ठूँठ पे वक 


पहाड़ी नदी ~

पत्थर पर खड़ी 

भीगी युवती 


झील में हंस ~

श्वेत कमल पर

मधुप दल


मध्याह्न तम

में दीप्त मृग नैन~

शेर गर्जन


बिमार पुत्र --

बालक की तरह

रोया उलूक


07. आ. अनीता सैनी जी


शीतलहर~

फटे पल्लू से मुख

निकाले शिशु।


संध्या लालिमा~

ग्वाले की बांसुरी से

गूंजी गौशाला।


कुहासा भोर -

पिता संग खेत में 

खींचती हल |


रक्तिम साँझ~

पगडंडी निहारे

बुजुर्ग माता।


वन में ठूँठ~

बरगद के नीचे

लकड़हारा।


मेघ गर्जन~

वृद्ध लिए हाथ में

फूस गट्ठर।


निर्जन गली ~

जर्ज़र हवेली से 

पायल ध्वनी |


संध्या लालिमा ~

कंधों पे लादे धान 

वृद्ध किसान 


ज्येष्ठ मध्यान्ह ~

तपती रेत पर 

ऊँट का शव |


कुहासा भोर ~

वृद्ध कृषक नोंचे 

गाजर घास |


08. आ. डाँ. अनीता रानी भारद्वाज जी


हिन्दी दिवस~~

करतल ध्वनि से

गूँजा कमरा ।


प्रथम ज्येष्ठ~~

चूल्हे में हाथ सेंके

वृद्ध युगल ।


जन्म दिवस~~

चाकू की नोंक पर

रक्त के धब्बे।


प्रेम दिवस~~

विधवा के हाथ में

गुलाब कली ।


विवाह रस्म ~~

जामुन की छाँव में

दूल्हा दुल्हन ।


प्रभात धुंध~~

बोरी ओढ़े बालक

फुटपाथ पे ।


श्मशानघाट~

नीम वृक्ष के नीचे

श्वेत गठरी ।


छाज में मूंग ~~

शटर पर बैठे

कपोत जोड़ा ।


सावन झड़ी~~

हाथ फैलाए खड़ी

आँगन मध्य ।


बिजली द्युति~~

डाकिया के हाथ में

रक्तिम खत ।


09. आ. अंकित सोमवंशी जी


होली दहन -

बिन जौ की बाल ले

खड़ा किसान।


होलिका पर्व~

रक्तिम हाथ लिये

खड़ा सैनिक।


श्वेत बादल -

सूर्य का प्रतिबिंब

पोखर मध्य।


पहाड़ी मार्ग -

बंदूक कांधे लिये

खड़ा जवान।


धान का खेत~

हिमकण ढेरी को

ताके कृषक


बारिश सांझ -

पेड़ टंगे नीड़ से

चिड़िया स्वर।


हिमालय में

उफनती गंगोत्री~

नीले पत्थर।


गहन वन~

झाड़ियों मध्य बाला

लिये कृपाण।


टूटी दीवारें 

और घरों में आग~

राह पे शव।


चाँदनी रात ~ 

लुटेरों का नायक

अंधी के घर।


10. आ. आभा खरे जी


नाव की सैर-

पत्थरों के काई से 

शुरु कहानी


जाड़े की छुट्टी-

दादी के कमरे में 

दवा का ढेर


घना कोहरा-

बूंदों के चित्रांकन

विंड स्क्रीन पे


बैठी तितली

प्रदर्शनी फूल में --

कैमरा फ्लैश


अधूरा गीत-

जन्म दे गुज़री माँ 

देखे फ़ोटो से 


जीर्ण घर की

छत से गिरे बूँद --

बर्तन ध्वनि


टूटा छप्पर --

बाबा की तस्वीर पे 

आभा के छाप


प्रभात सैर 

पर्वत के किनारे --

कुश झोपड़ी


टूटी ऐनक --

रिस रही दीवारें

बूढ़े घर की


माघी पवन --

अमवा के डाल से

झरी मंजरी


11. आ. आरती सिंह 'एकता' जी


लालिमा व्योम --

मेघों की टोली संग

उड़े विहंग


खिले कुसुम

कच्ची डगर में --

मैं और तुम


सूत में बंधे

सात फेरे लेकर --

कठपूतली


खुले बाजार

तन के मोल लगे --

प्रदोष काल


खेत की मिट्टी

किसान ने टटोला --

सावन झड़ी


हरसिंगार

बिछ गया जमीं पे --

राश पूर्णिमा


कजरी तीज --

व्रती मध्य झूला व

सात लोइयां


लौकी की बेल

कबेलु की छत में--

गेंद व बाला


चांद का बिम्ब 

थाली पर दमके-

ताख का दीया


दीवाली पर्व --

उदास बैठी लक्ष्मी

घर की बहू।


12. आ. आरती श्रीवास्तव जी


भोर की बेला--

गुलाब पंखुड़ी से

उड़ी तितली।


तारों की आभा--

प्रेमी प्रेमिका करे

जल विहार।


भोर लालिमा--

कलरव से गूंजा

फूलों का बाग।


वर्षा समाप्त ~~

बालक के हाथ में

कागजी कश्ती ।


स्कूल वाटिका--

योगारत बच्चे के

मुँह पे मास्क


संक्रांति पर्व--

मेरी पतंग लूटे

छत पे पत्नी।


हल्की फुहार--

शाक के ठेला लिए

दिव्यांग पुत्र।


बांस के पेड़--

झोपड़ी से उठती

बास्ता की गंध।


स्वर्ण पदक

चूमे दिव्यांग बाला--

खेल मैदान।


गन्ने का खेत--

शेर मुख में चाकू

घोंपी बालिका।



13. आ. आशा शुक्ला जी

रेत का टीला~~
हवा का झोंका लाया
सूखे पल्लव।

अभिसारिका
खड़ी द्युति पथ पे~ 
भादों की अमा।

हरित कुँज~
रक्तसिक्त हिरण
गुफा के द्वार।

विद्युतप्रभा~
घने वन में वृद्धा
लाठी टेक ली।

आकाशगंगा~
छत पे दूरबीन
झाँकता बच्चा....

गली में स्त्रियाँ~
जली रोटी की गंध
पाकशाला से।

नागपंचमी ~
दूध लिए बाला पे
सर्प का दंश ।

मोगरा गंध~
प्रियतम का चित्र
ताकती वधू ।

बंजर भूमि~
बालक के हाथ में
आम का पौधा।

गन्ने का खेत~
लाठी लिए वृद्ध पे
झपटा बाघ..

14. आ. डॉ. इन्दिरा गुप्ता यथार्थ जी

कचरा ढेरी --
भिनभिनाते मक्खी
हाथ के रोटी 

मिष्ठान गन्ध -
बुढ़िया के पत्तल 
बासी महकी

शिला का टापू ~
घड़ियाल के अण्डे
टूटी नाव में ।

तूफानी रात~
फुटपाथ पे गिरा
वृद्ध द्वियांग।

मृदंग थाप --
घुंघरू को पटकी
दिव्यांग बाला।

पश्चिमी सूर्य -
दीपक भरे ठेला
कुम्हार द्वार।

विरह गीत --
आश्रम में बाला की
कटि उभार।

राष्ट्रीय गीत --
एवरेस्ट चोटी पे 
दिव्यांग बाला।

प्रयागराज - 
संगम पे फिसला
लंगड़ा वृद्ध।

घुप अंधेरा - 
नीड़ में चमकते
जुगनू दल 

15. आ. इन्द्राणी साहू जी

चाँदनी रात ~
बाहों में बाहें डाले 
प्रेमी युगल ।

वट में सर्प ~
कोटर में चहके
कागा के बच्चे ।

नन्दन वन ~
कृषकाय तेंदुआ 
पिंजरबद्ध ।

निर्जन वन ~
हिरण को दबोचे 
भेड़िया झुंड ।

पुआल ढेरी ~
अन्न कण उठाया
वृद्ध दिव्यांग ।

बर्फीली झील ~
जलक्रीड़ा में रत
युगल पक्षी ।

शीत लहर~
घन उठाई स्त्री के
माथे पे स्वेद ।

तारों की आभा ~
परिरंभण हुआ
प्रेमिका संग।

पंक में फूल~
रक्तिम सूर्यरश्मि
अंबरांत में ।

कुहासा भोर~
पटरी के किनारे
विदीर्ण शव

16. आ. डॉ इंदु गुप्ता जी

पूनम रात्रि~
नौका विहार करे
प्रेमी युगल।

विटप वृंद-
आम से लदी डाली
झुकी धरा पे

प्रेम दिवस--
फुसफुसाया जोड़ा
वृक्ष आड़ में

निर्जन पथ~
खरगोश के पीछे
कुक्कुर झुंड।

बच्चों का झुण्ड~
लहर तट आए
सीप व घोंघे

अमावस्या में
राह ताकती माता~
द्वार पे दीप

निरभ्र नभ~
मछुआ फेंका जाल
तड़ाग मध्य

घन गर्जन--
मुख में अन्न लिये
चींटी कतार

प्रेम दिवस~
समाधि स्थल पर
सुमनार्पण/कुसुमाँजलि

 खनकी चूड़ी~
शयन कक्ष द्वार
पिया ने खोला

17. आ. उमेश मौर्य जी

डीजे की धुन -
मेकअप के बाद
हँसी दुल्हन

इन्द्र धनुष ~
बादलों से निर्मित
कलाकृतियाँ

पर्दे ओट से
झाँक रही युवती-
वर्षा की बूँदें

गृह प्रवेश -
कोने में मकड़ियाँ 
बुनती जाल

झील में चाँद-
प्रेयसी की प्रतीक्षा 
करते बैठा

वट का वृक्ष - 
बिछड़ो की याद में
थका पथिक

तारे की आभा-
आँगन में गिनती
रटता बच्चा

मेथी के दाने - 
डिबिया में बंद थी
नानी की यादें

चाय की पत्ती - 
बागान में गूँजता
आसामी गीत

भेड़ों का झुण्ड-
गड़रिये के गीत
गूँजा गाँव में

18. आ. ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश" जी

जाड़े की रात~
तस्वीर साथ रखे
सोती विधवा ।

बाल वाटिका~
लड़की को दबोचे
गुण्डा समूह ।

निर्जन गली~
माशुका के घर में
झांकता पति ।

नीम का वृक्ष~
दातुन लेकर माँ 
बेटे के पीछे।

घना कोहरा~
कार में दबी माँ का
मुख टटोला। 

झींगुर स्वर~
जलमग्न कुटी से
वृद्धा की खाँसी।

पकी फसल ~
लट्ठ से नील गाय
मारे किसान।

मुर्गे की बांग~
चक्की पर चावल
पीसती दादी।

बीन की धुन~
पत्थर लिए बच्चे
क्रीड़ांगन में।

शिशु रुदन~
गर्भिणी माँ के सिर
गिट्टी तगाड़ी।

19. आ. ऋतु कुशवाह "लेखनी" जी

घना कोहरा-
कुड़ेदान में सोए
माँ संग बिल्ली

कचरा पन्नी
सम्हाले नन्ही बच्ची-
स्कूल का द्वार

बेटी का चित्र
माँ छाती से लगाये-
शादी का घर

पुष्परहित 
पौधा प्रिया की भेंट-
लाल गुलाब

कंज का रस
संध्या मे पिए भृंग-
अर्ध पुष्पित

माँ छाया खोजे
शावक मुंह लिए-
ज्येष्ठ मध्यान्ह

आसमान में
पक्षियों संग बेटी-
पैरासेलिंग

बाढ़ का शोर-
सिक्के खोजे गङ्गा में
निर्वस्त्र बच्चा

शिशु को लिए
खेत जोते विधवा-
रबी फसल

खाली सड़क-
भिखारी के डिब्बे में 
बूंदों के स्वर'

20. आ. ऋतासिंह सर्जना जी

रक्तिम साँझ -
नदिया के उपर
उड़ता पक्षी

धूल से सनी
फागुनी हवा उड़ी-
महुवा गंध

डाली की फूल --
बगिया में युवती
का फोटोग्राफ

नदी का तट --
मछुवारे की जाल
फँसी मछली

झील में चाँद --
उसके मेरे साथ
के वो लमहें

टूटी डाली में
नीड़ विक्षत चूजे --
पक्षी समूह

वृक्षा रोपण --
फोटो के मुद्रा लिए
हाथ में पौधा

वर्षा के बाद
बादल छँट गए --
महके छोले

शिशु माँ बिन --
दूध भरा बोतल
झोंके से गिरा

काँटे की नोक
बची आखिरी बूँद --
सेल्फी में हम

21. आ. ऋतु असूजा ऋषिकेश जी

अक्षय तीज~
खिलौना पकड़ के
फेरे बालिका। 

शरद संध्या~
पंसारी के थैले में
सिक्के खनके।

कानन पथ~
वानर छीन लिया
हाथ से थैला।

श्रावणी भोर~
भाई के शव पर
राखी चढ़ायी।

सांझ लालिमा ~ 
तिकोनी आकृति में
खग समूह

मेघ गर्जना~
लोरी तान गूंजी 
दादी के कक्ष।

भोर लालिमा~
मधुशाला में झाँके
बुजुर्ग पिता ।

भोर लालिमा~
सरसीरुह मध्य 
मृत भँवरा।

पौष मध्यान्ह~
माँ दुशाला पे बुनी
बेल बूटियाँ।

माघ मध्यान्ह~
हाथ छड़ी लेकर
सुखाती बड़ी।

22. आ. कान्ता अग्रवाल जी

पूस की रात-
बर्फ़ से आच्छादित
पेड़ पहाड़ी।

पूनम रात्रि-
पिया के गालों पर
मली गुलाल ।

सरिता तट~
शिकारी का बंधक
कस्तूरी मृग 

कस्तूरी गंध~
हिरण की नाभि में
धँसी बरछी

बंजर खेत~
चटके जमीन पे
पीले अंकुर।

गंगा का घाट-
डोर बंधे पतंग 
बच्चों के हाथ

चाँदनी रात~
बोतल में जुगनू
बाल हस्त पे।

नीड़ में खग-
पीपल तने चुभे
टूटी कुल्हाड़ी

चौथ का चाँद -
लपटों बीच घिरी
वधू की चीख़ 

प्रेम दिवस—
पुष्प दिया वेदी पे
नवयुवक ।

23. आ. कुसुम कोठारी जी

भानुदय का
सरोवर में बिम्ब ~
कमल दल।

बुड्ढे ऋषभ~
किसान के हाथ में
लाठी व रस्सी।

बेला पे ओस --
पत्तों से शाखा छूती 
चन्द्र किरणें

पहाड़ी पे गौ~
तराई की झील में
नौका विहार।

सूरज रश्मि ~
ताल के फूल पर
बैठा भ्रमर।

सांझ के दीप~
नट रस्सी खिंचके
नचाता कपि

पेड़ पे बच्चा~
डाली पर लटके
किंग कोबरा 

जल प्रपात ~
पत्थर से गोरी का
पांव फिसला।

चौथ का व्रत~
तिरंगे में लिपटा
पिया का शव।

घुप्प अॅ॑धेरा~
कोर पे सौदामिनी
जलधर के 

24. आ. कुमकुम पुरोहित जी

गाँव की गली~
चाँदनी रजनी में
लेटे बुजुर्ग ।

ज्येष्ठ मध्याह्न ~
पति के चरणों में 
दीपाराधना।

खेल मैदान ~
बाल झुण्ड से उड़े 
धुएँ के छल्ले ।

भोर लालिमा ~
अलि स्वर से गूँजी
फूलों की घाटी ।

पावस भोर ~
फुदकते भेक के
पीछे बालक।

राह में पुष्प~
चुगता पंछी झुण्ड 
लाई का दाना।

रेत महल ~
खिलखिलाया बच्चा
सिंधु तट पे।

कार्तिक साँझ~
झोपड़ी छत पर
आकाश दीप ।

सूखे पत्तियाँ~
करधन पे खोंचे
पैसों का थैला

ज्येष्ठ मध्याह्न ~
दादा के फटे जूते
पहने बच्ची

25. आ. केवरा यदु "मीरा " जी

चाँदनी रात --
घुप्प अंधेरों में भी
पिया दीदार

टूटा ऐनक 
आँखों से हट गया-
मोतिया बिंद।

कटा  बिरवा -
मरघट में  पड़ा
पिया  का शव।

अंधेरी रात -
चोर के पीछे दौड़ा 
भौंकता कुत्ता ।

कुँवारी माँ ने 
कूड़े में रखी शिशु-
मिट्टी संस्कार ।

खौलता दूध 
आग बुझाने लगी-
टी.वी. में मग्न ।

केवड़ा गंध--
खुली संदूक तह
पुराना खत ।

नभ में बाज-
ठूंठ से लिपटाये
सर्प का जोड़ा।

रक्षाबंधन-
तिरंगा में लिपटा 
भाई का शव।

इत्र खुशबू --
बिखरे अल्फ़ाज़ों का
पुराना ख़त 

26. आ. केशरी सिंह रघुवंशी 'हंस' जी

मोगरा गंध~
वधू पहुँची द्वार 
अश्व आरुढ़

सांध्य लालिमा~
चौपाल पे मिश्रीत
रागिनी स्वर

ज्येष्ठ मध्याह्न~
आम्र बाग में गूँजे
बालक स्वर

नगाड़ा ध्वनि --
मुखिया के चौपाल
युवा मुंडन

सरसों खेत~
मधुमक्षिका दंश
बाल गाल पे

विविध पुष्प
फैले आँगन मध्य~
फाग पूनम

शराब गंध~
पति संग प्रेमिका
पत्नि द्वार पे

शीत यामिनी~
गर्भवती उठाई
कूड़े से रोटी

निर्जन पथ~
कांटा निकाले पुत्र
पिता पग से

फाग तेरस~
घुटे भांग धतूरा
आंगन मध्य

27. आ. क्रान्ति जी

बाल श्रमिक~
कोयले की खान में
चमका हीरा।

समुद्र तट~
पग चित्र बनाती
दिव्यांग बाला।

सघन वन-
वानरों के झुंड में
नन्हा हिरण।

घना कोहरा-
पहाड़ों में गूंजता
गज का स्वर।

गंगा का तट-
इंसानी लाशों पर
गिद्धों का झुंड।

आम्र मंजरी-
कोयल के स्वर से
गूंजित वन

रवि उदित-
गूंजता जंगल में
कुल्हाड़ी शोर।

छत पे कौआ-
डाकिया के हाथों में
शोक संदेश।

कुहासा भोर-
जंगल से उठता
सफेद धुंआ।

शय्यन कक्ष-
नवजात पे गिरा/गिरी
विषतूलिका।

28. आ. गीताँजली 'अनकही' जी

रक्तिम सांझ -
सागर तट पर 
आरंभ मेला 

बँसी की धुन -
बरगद के नीचे
मित्रों की टोली

पानी से भरी
टूट गई गागर -
लम्बी डगर 

ठण्डी रसोई -
कमरे में गूँजता
आर्त रुदन

सुप्त दुल्हन -
खिड़की के शीशे में 
चाँद का बिम्ब 

संगसितारा
गोताखोर के हाथ -
खंडित नौका 

हिना के पात --
दुल्हन के हाथ में
सगाई छल्ला

फटी पुस्तकें -
अंधेरी झोपड़ी में
दीप रोशन

गोली की गूँज -
गहरी घाटी बीच
भेड़ का झुंड

शीत पवन - 
वृक्ष की कोटर में 
मूँगफलियाँ 

29. आ. चमेली कुर्रे "सुवासित"

चिंघाड़ ध्वनि ~
अधठूठे डालियाँ
झड़ाए पत्ते

महुआ गंध --
चौपाल पर बूढ़े 
खिलखिलाये

शीत लहर~
पहाड़ पे बर्फ में
सैलानी झुंड।

निशीथ काल~
झुरमुट के बीच
बालिका शव ।

निर्जन गली~ 
माँ के शव समीप
सिसकी स्वर।

इमली वृक्ष --
टूटे नीड़ में खग
तिनका रखे 

शीत मध्याह्न --
झील पर देखती
मुखमंडल 

भोर लालिमा --
कूड़े ढेर से पन्नी 
उठाई बाला। 

इन्द्रधनुष --
बच्चियों का समूह 
निहारे नभ

कुहासा भोर~
पक्का मार्ग किनारे
वृद्ध का झुंड

30. आ. जयश्री शर्मा "ज्योति" जी

आटे में घुन -
भूख से रोते बच्चे
पूस की रात

चिता की राख -
विधान दरमियाँ
मुक्ति का सौदा

नदी का तट -
सद्यस्नाता नारी
बाट निहारे

पारा खिसका -
नव अन्न स्वागत् में
बड़ा उत्सव

बिखरे फूल -
ज़नाज़ा सज रहा
काठ का बक्सा

कोहरा छँटा -
रेलवे ट्रेक पर
बच्चे का शव

भीषण गर्मी -
बूढ़ा रिक्शाचालक
सवारी ढोता

केले का पत्ता -
पूजन की बेला में
शंख निनाद

अर्ध भास्कर -
अर्ध्य देते श्रद्धालु
नदी के तट 

मुर्गे की बांग -
द्वार से टकराई
वधू उनींदी।

31. आ. जयश्री पंडा जी

चाँदनी रात~
समंदर किनारे
वृद्ध युगल

पौष की ऊषा~
छेरछेरा गीत व
अरसा गंध।

जलते दीप~
कार्तिक पूर्णिमा को
रौशन घाट।

संध्या लालिमा~
घंटी के स्वर संग
उड़ती धूल

ज्येष्ठ मध्यान्ह~
आम के बगीचे में
वंशी की धुन।

पूस की रात~
लोमड़ी की आवाज
गाँव किनारे

छत पे काँव--
व्यंजनों की सुगंध
पाकशाला से

घना जंगल~
दहाड़ से दुबका
मृग शावक

पुष्प वाटिका~
प्रेमी गुनगुनाया
राग भैरवी

रुदन स्वर~
बुजुर्ग के हाथ में
गाय की पूंछ

32. आ. जानकी जीवन प्रधान जी

पंक में धंसे
मजदूरों के पांव~
राग मल्हार 
 
फाग प्रदोष ~
बच्चों की टोली मध्य
दादा के गीत 

बसंत सांझ~
जहाज की छत पे
प्रेमी युगल

वट की जटा ~
खलबत्ते से आई
औषध गंध

श्रावणी भोर~
बया नीड़ से गूंजा 
चूजों का स्वर 

श्रावणी तीज~
विधवा  के हाथ में 
पिया का चित्र 

वीरान राह ~
लाल जोड़े में खड़ी
नवयौवना

कानन पथ~
वृद्धा के आंचल से 
आम की गंध

जीर्ण महल ~
बेटी का तन ढके 
दुशाला से मां
   
आषाढ़ साँझ~
मछुआरे के हस्त 
नन्ही पादुका 

33. आ. ज्योति बिष्ट "जिज्ञासा" जी

संध्या लालिमा ~
गोरैया की चोंच में 
सूखे तिनके

भोर की लाली ~
सरोवर के मध्य 
हंसों का जोड़ा 

प्रेम दिवस ~
पुल नीचे लाश पे 
युवती रोए 

सर्द प्रभात --
कुम्हार के हाथ से
लहु टपका 

गोधूलि बेला ~
पिता के गले लगी 
बालिका वधू। 

कृमि दिवस ~
देहरी पर बैठी 
रुग्ण बालिका। 

भोर लालिमा ~
मंजरी पे झूलती 
चींटी कतार। 

बर्फीली राह ~
भेड़ बकरी संग 
पहाड़ी बाला। 

बरखा भोर ~
नदी मध्य टीले पे
मृत शावक। 

रुदन स्वर~
दीपक प्रकाश में
वस्त्र सिले स्त्री। 

34. आ. डाँ. जितेन्द्र कुमार मिश्रा जी

माघ सवेरा --
मकर संक्रांति में
पतंग उड़ा

चांदनी रात--
प्रियतमा के गोद
प्रितम लेटा।

पूस की रात--
पुआल के घर में
सोता किसान।

कड़ाके ठंड --
रप्फु के कपड़ों में
लेटा मदारी।

विरह पल 
झींगुर की आवाज़ --
शरद ऋतु

क्रीड़ा मैदान–
आखरी गोल पर
माँ का चीत्कार

सुबह बेला--
वृद्ध पड़ा स्टैंड में
मरणासन्न।

पकी फसल--
बेटी की विदाई में
भीगे नयन।

घना कोहरा--
बिड़ी सुलगा रहा
बूढ़ा किसान।

वृक्षारोपण--
चलती बस छोड़े
दूषित हवा ।

35. आ. डीजेन्द्र कुर्रे जी

माँ ने पकायी
पालक आलू रोटी~~
दाल की गंध

सूर्य कांति का
प्रतिबिम्ब जल में ~
खिला कमल

गीली युवती
पानी की फुहार में ~
इंद्र धनुष

भ्रमर गूँज --
विधवा और बच्चा
कपास खेत 

रात रानी की
खुशबू कमरे में~
लोरी गाती माँ

पत्ते से गिरी
पानी बूँद झील में --
भेक की कूद

गन्ने का खेत~
बिल्ली के पंजे दबी
चूहा का बच्चा

अंत्येष्टी कर्म ~
साहिल में माता की
फोटो पे माला

चांदनी रात--
उसके स्मरण में
रात्रि पहरा

शीत की रात~
गुड़दाना व तिल
टेबल पर

36. आ. तेरस कैवर्त्य'आंसू' जी

पक्षियाँ झुंड
भूरी जमीन पर~~
दाने व जाल ।

केले के पत्ते
चार कोने लटके~~
अंतिम यात्री।

वन में ठूंठ~
कुल्हाड़ी की धार में
बैठी चिड़िया।

बच्चों की टोली
संकरी द्वार पर~
चौखाट गिरी।

आखिरी सांस --
बगुला की चोंच में
नन्ही मछली 

घर विरान~
शाख में बंदर व
मधु का छत्ता।

प्रेमी प्रेमिका
सुनसान गली में~
ठंड की रात।

बिहड़रण्य --
फाँसी पर लटके
प्रेमी युगल ।

धुँआ आरंभ~
बाड़ा पास भट्ठी में
बिल्ली के बच्चे

पेड़ की छांव
बीच चौराहे पर~
लाल सलाख।

37. आ. तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे जी

जलता शव
आॅनर किलींग का -
बाप लापता 

गीत अधूरा - 
कलम में आँसू की 
बूँद टपकी  

इत्र महक~
कागजी फूल पर
भ्रमर बैठा

कुहू बाग में -
पूले से पोंछती माँ 
स्वेद माथे का 

लालिमा नभ~
पोपट का समूह
सूखे दरख्त ।

फूल पे भौंरा- 
घुंघट की ओट से 
मुस्काई गोरी 

मुर्गे की बाँग- 
सखी ने सरकाई
सजन हाथ।

जलप्रपात- 
सूखी टहनी पर
बैठा विहंग।

विद्युत गुल- 
सिग्नल के निकट 
फूलों की गंध।

रइयाँ स्वर - 
आँखों में हाथ रखी
रोती औरत।

38. आ. तोषण धनगंइहा जी

पंक का फूल
सरोवर के मध्य --
चांद का बिम्ब

चाँदनी रात-
मैदान पर फैली
ओस की बूँदे।

अभयारण्य--
चहचहाते पक्षी
पंजर बंद।

अमा की रात--
टिमटिमाते तारे
नदी के मध्य।

श्रावणी संध्या - 
लिफाफे में राखी पे
भाई के आँसू

धान का खेत~
जाल में पंछियों की
चिचियाहट।

बंसी की तान~
बाम्ब वृक्ष को ताके
ग्रामीण युवा।

नर्सिंग होम~~
प्रसूति कुतिया के
रुदन स्वर ।

डोलची होली~~
नव वधू के सिर
जलता दीप ।

बाँस जंगल~~
बनशोर घर में
टोकरी छाज ।

39. आ. देव टिंकी होता जी

दीप प्रदीप्त --
कुम्हार की चक्की पे
दीमक लेप ।

प्राचीन गुफा --
पाषाण पे अंकित
हल व बैल ।

मीना बाजार~
गुब्बारे संग साँस
बेचता वृद्ध ।

वर्षा समाप्त~
धूल रहे दो दिल
शैल में छपे ।

चौथ का चाँद~~
वीडियो कॉलिंग पे
पति दर्शन।

तूफान थमा ~~
सलिल में हिलती
वृक्ष की छाया ।

धूप की गंध ~~
दीवार पे अंकित
हथेली छाप ।

मेंहंदी पर्ण ~~
हथेली संग धुले
पिया का नाम ।

सीमांत रेखा ~~
तिरंगे से लिपटा 
श्वान का शव ।

हरितालिका~~
कलाई पे खनकी
शंख चूड़ियाँ ।

शीत लहर~~
कृषक की रोटी पे
टपका स्वेद ।

पूस की रात~~
धान से वाष्प उड़े
आलिंजर के ।

मूँछों में ताव
देने लगा व्यापारी ~~
प्याज समाप्त ।

40. आ. दीपिका पाण्डेय जी

नजरबट्टू~
शिशु के कर बँधे
हाथी के दाँत।

फर्श पे बिच्छू~
चारपाई पे बैठी
दृष्टिहीन माँ।

सूर्य ग्रहण~
शुष्क तुलसी दल
बिलोके वृद्धा।

दावानल में
कंगारू का समूह~
शिशिर रात्रि।

बंदूक ध्वनि~
मुर्रे तट पे खड़ा
ऊँट का झुंड।

अन्नभूमि/कृषिभूम में
वज्रशल्क की हड्डी~
दीमक बांबी।

गेंदी मेले में
स्वाळ पक्वड़ गंध~
अंतिम सेख/पौष।

तोरणद्वार~
मृत सांड को घेरे
चूलो समूह।

चौका से फैली
सेठौरा की सुगंध~
शिशु देहान्त 

मृत चूहे की
पूँछ पकड़े शिशु/बाल~
द्वार पे बिल्ली।

41. आ. धर्मेंन्द्र सिंह "धर्मा" जी

मेघ गर्जना~
सुंदरी के हाथों में
सूरजमुखी

शुष्क धरती~
हाथों में हल लिये
वृद्ध कृषक

आर्द्र वसुधा~
पपीहों की आवाज़
खेतों में गूँजी

वैशाख भोर~
सुग्गा मुँह में लिये
गाजर अंश

पीली किरणें~
हिमालय चोटी पे
पर्वतारोही

सांध्य लालिमा~
परिजनों के बीच
हँसी-ठिठोली

शीत लहर~
खेत के मुहाने में
वृद्ध कृषक

श्रावण साँझ~
झूले पर सखियाँ
खिलखिलायीं

सरसों खेत~
हाथ से रोटी छिना
कृषक पुत्र

शांत निशिथ~
तिखाल में ढिबरी
टिमटिमाये

42. आ. निर्मल "नीर" जी

घना अरण्य~
फाँसी में लटकती
बिन ब्याही माँ

कुंभ का शोर~
जलती चिता पर
अघोरी पाँव

जुता किसान
बैल संग हल में~
शिशु रुदन

बर्फीली घाटी~
दरख़्तों पर लिखे
अधूरे खत

सघन वन~
वृक्ष में बाँधे गए
प्रेमी युगल

प्रदोष काल~
मतदान केंद्र पे
बमविस्फोट

जाड़े की रात~
खड़ी ट्रक के नीचे
सोया भिक्षुक

श्मशान घाट~
धूनी रमाये बैठा
अघोरी बाबा

अरूणोदय~
सूखे पत्ते से झरी
ओंस की बूंद

खुला मैदान~
रेत पर उकेरी
मानव कृति

43. आ. नीतू ठाकुर जी

पग आहट...
डायरी में छुपाया 
अधूरा  गीत

लकड़हारे
वृक्ष की पनाह में-
रिक्त बावड़ी

बीहड़ वन-
पत्नी के कंधों पर
दिव्यांग पति।

शराब गंध~
दूल्हे के गाल पर
हाथ का छाप

बिजली गुल-
कटोरी में घूमते
मक्के के दाने

रात रानी की
गंध फैली बाग में --
पायल ध्वनि।

अजान ध्वनि-
मजार की चादर
ओढ़े भिक्षुक

खाली पालना  
चूमता वृद्ध जोडा -
बाल दिवस

छेनी की नोंक
अधूरी मूर्ति पर-
हथौड़ा नाद

रंग पंचमी /धरा पे रंग-
खिड़की से झांकती
विधवा बहू

44. आ. निधि सिंघल जी

चंद्र रजनी~
पिया संग ‍खेलती
चौपड़ पासा

ज्येष्ठ मध्यान्ह --
कुएँ पर पहरा
जमींदार का

विटप छांव~
दादा की पीठ पर 
बच्ची मुस्काती।

स्कूल वाटिका~
पत्तों से अधढँका
विक्षत शिशु।

श्मशान घाट~
बेटी की चिता संग
पिता की सेल्फी

खेत मचान~
प्रणय क्रीड़ा रत 
शशा युगल

हरीरा गंध~
पिता द्वार ले आए
शिशु का शव

दसरा पर्व~
नीलकंठ का शव
आंगन मध्य

तारों की आभा~
पुस्तक लिए बच्चा
कंदील नीचे 

रंग द्वितीया~
बहन के मुख पे
तेजाब छींटे

45. आ. निधि सहगल जी

वनोन्मूलन-
क्षत डाल पे बैठी
कोयल मूक।

मावस रात्रि-
चमकते झाड़ी में
जुगनू झुंड।

शरद भोर-
तंदूरी रोटी संग
आम अचार।

अक्षय तीज~
टूटे शीशा समक्ष
बाल विधवा

फुटपाथ पे 
वृद्ध के हाथ झाडू~
पीक का स्वर

ज्येष्ठ मध्याह्न~
पुदीना की महक
गन्ने रस से

शुष्क धरती~
कृषक मुख पड़ी
वर्षा की बूंदें

46. आ. पम्मी सिंह "तृप्ति" जी

सब्जी बेचते
पटरियों पे लोग --
रेल की सीटी

डाल पात पे
बूंदों की थिरकन-
राग मल्हार

नदी किनारे
बाट जोहती गोरी-
बाढ़ में शव

हाथ में फोन --
किताब कचरे में
दीमक लगे

आँखों में ख्वाब
पिया की सज रही-
मेंहदी रस्म।

चौकड़ी जमी 
आम के बगान में- 
कजरी राग।

प्राची में उषा --
निकलता कोहरा
खपड़े छत

सोंधी खूशबू --
बिजली तारों पर 
लटकी बूंदें

खिली धूप में
वर्षा की रुन झुन -
ड्योढ़ी पे गोरी।

धूंध को चीर
गुज़र रही रेल-
स्याह बादल।

47. आ. पल्लवी गोयल जी

धुम्र बादल ~
ताल जगमगाये 
दीप अवली 

शीत यामिनी ~
डोलती लौ के पास
बूढ़े दम्पत्ति।

सर्द गोधूलि~
बाल वृंद के माथे
स्वेद व धूल

घन सघन ~
पत्ते पे डोले कीट 
छोर पकड़े

मातृ दिवस  ~
आश्रम पर वृद्धा
गठरी थामे।

ग्रीष्म मध्यान्ह ~
पीली दरार पर 
जल फुहार।

शीत का सूर्य ~
हिमकण टपका
जलप्रपात ।

अश्विन भोर~
द्वार पे रंग भरे
गुलदाउदी। 

ग्रीष्म मध्यान्ह  ~
तवे की रोटी लिया
कपि ने मुँह । 

जल प्रपात  ~
बहे लट्ठे पे  बैठा
सुग्गे का बच्चा ।

48. आ. डाँ. पुष्पा सिंह "प्रेरणा" जी

शिला का टापू--
नवयौवना बैठी
गालों पे हाथ।

यम द्वितीया--
करती सैनिक का
रक्त तिलक।

चैत की धूप~
रस्सी पर चलती
नट बालिका।

मृग शावक~
घनी झाड़ियों से
सिंह की चाप।

पीपल पेड़~
बगुलों संग लटके
चमगादड़।

मंगलवार~
नून राई से औंछे
रुग्ण शिशु को।

सूर्य की लाली~
शहद के अंजन
लगाती दादी।

कर्पूर गंध~
वृद्धा के बिछौने में
नीम के पत्ते।

ग्रीष्म मध्यान्ह~
मवेशी पिएं पानी
एक घाट पे।

मधुयामिनी~
बिखरे फूल संग
टूटी चूड़ियाँ

49. आ. पूर्णिमा सरोज जी

रेतीला खेत~
मेड़ पर मूर्छित
युवा किसान

रास पूर्णिमा~
कत्थक अंतिम का
सेल्फी ली बाला।

मूँगफल्लियाँ ~
गिलहरी खोदती
सूखी ज़मीन।

बास्ता की गंध ~
अजगर लिपटा
बांस कोपल।

कुहासा भोर ~
लकड़ी सिर पे ली
गांव की बाला।

गिद्धों का झुंड
मंडराता नभ में~
बिगुल ध्वनि।

वृक्ष छाँव में
लकड़हारा सोया~
अग्नि लपटें।

उड़ते पंछी~
भोर के सूरज का
चित्र भीत में।

घृत कुमारी~
दग्ध रुप झाँकती
शीशे में अश्रु।

पहाड़ी पर
निर्झर की फुहार~
टिफिन खुला।

50. आ. पूनम दुबे जी

तुलसी पत्ता --
आंगन में महकी
आम्र मंजरी।

सांझ फुहार--
चहचहाये चूजे
नीड़ डाल पे

घंटी स्वर से
गूँजती पगडंडी --
माँ संग बाला।

शाम आँधियाँ--
चौखट पर बैठी
मां ताके पथ।

मंद समीर --
घर आंगन पड़े
वर्षा के छींटें

ओस की धुंध
उद्यान में सघन--
भोर किरण

कुहासा धुँध --
घने वृक्षों को छूते
जमीं पे घाम

प्रदोष अंत--
घास पे चमकती
ओस की बूंदें

सौंधी महक--
झाड़ियों बीच मोर
पंख पसारे।

गरजे मेघ--
खिड़की में फुदके
कपोत जोड़ा

51. आ. पूजा शर्मा "सुगन्ध" जी

चैत्र अष्टमी~
नवजात बालिका
कूड़ेदान में।

अनाथालय
द्वार पे शिशु रुदन~
अर्द्ध यामिनी

शरद साँझ~
जुगनू का प्रकाश
बाल हस्त पे

चौराहे पर
फटे वस्त्रों में बाला~
मातृ दिवस

हरितालिका ~
श्वेत वस्त्र ऊपर
बिखरी चूड़ी

उपवन में 
पायल की छनक~
अर्ध यामिनी

अर्ध यामिनी~
श्वान उठाया शिशु
कूड़े के ढेर से 

भृत्या हाथ में 
रक्तरंजित छुरी~
अर्धयामिनी

ज्येष्ठ मध्याह्न~
गोद बालक लिये
कन्या रस्सी पे

निर्जन स्थल~
वस्त्राच्छादित शिशु
कण्डोल मध्य

52. आ. पंचानन सामल जी

तेंदु का वृक्ष~
बाला बस्ते में रखी
बीड़ी बंडल।

पहाड़ी पथ~
धान गठ्ठा सिर पे
लिए युवक

घना कोहरा~
बीच चौराहे पर
पार्थिव तन

निर्जन पथ~
फटे वस्त्र लिपटी
बेसुध नारी

वट में मौली~
विधवा के गाल पे
आंसू की धार

शहद गंध~
कीलाल कीट काटी
कपोल पर

ज्येष्ठ मध्याह्न~
खजूर वृक्ष पर
लटका हंडी 

वनरक्षक ~
युवा के कांवड़ से
करील गंध

ज्येष्ठ मध्यान्ह~
अन्धकूप में गिरा
मृग शावक

भोर लालिमा~
अधजले दोने की
ताल में ढेरी

53. आ. बंदना पंचाल जी

छठ का पर्व -
अर्ध्य देती माताएँ
अस्त रवि को

बम धमाका~
सेल्फी लिया डॉक्टर
घायलों संग ।

मन्द समीर -
सोता बालक लिया
हल्की मुस्कान।

पिता का श्राद्ध -
मुरझाए  कुसुम
तस्वीर पर।

कन्या विदाई -
गिन चुका सामान
वर के पिता।

पूस की भोर --
बरतन मांजती
गृह सेविका।

बर्फीली वादी -
जवानों के रक्त से
लोहित धरा।

सांझ की बेला -
चौपाल पे आरंभ
आल्हा की गाथा।

बाढ़ का पानी -
फसल निहारता
बूढ़ा किसान।

इगास पर्व -
उड़द के पकोड़े
बनाती माता

54. आ. बाबूलाल शर्मा, बौहरा जी

फाल्गुनी संध्या~
चने लिए बच्चे के
पीछे किसान

कच्ची सड़क~
ठंठा नीर पिलाए 
पथी को वृद्धा

नीम की छाँव~
बुढ़िया के हाथ में 
रोटी चटनी

शहरी पथ ~
नग्न बाल निहारे
वस्त्रों में स्वान

गोधूलि वेला~
धागे में फँसा शुक 
निहारे नभ

अभयारण्य~
छटपटाया मृग
बाघ सम्मुख

उद्यान पथ~
लात मारे छात्र को
बाला समूह

होली दहन~
रक्त सने हाथ में 
जौ की बालियाँ

चैत्र की भोर~
हरे कपोत मुख
पीपल फल
हरे कपोत---हरियल

बंजर भूमि ~
स्वान को चोंच मारे
टिटहरियाँ

55. आ. मनोरमा जैन "पाखी" जी

फाल्गुन पुनो ~
घर वापिस आया
प्रवासी पति

गुलाब गंध ~
रखा अलमारी में
पुराना ख़त

साँझ ढलते 
माँ जलाती दीपक~
तुलसी चौरा ।

नव विधवा 
पड़े आँखों तस्वीर ~
व्यतीत लम्हें।

बाल अरुण 
बादलों की ओट में~
जल तर्पण 

अलमारी में
चमके स्मृति चिह्न ~
तैलीय गंध 

कटोरा ले के
भीख माँगता बच्चा ~
पंगु पालक

हिन्दी दिवस ~
डाल पर बोलते 
प्रवासी पक्षी 

बैसाखी पर्व ~
लोहडी की मिठाई
वृद्धाश्रम में 

लाकडाउन ~
आजाद हुये पक्षी 
चहचहाते

56. आ. ममता गिनोड़िया "सजग" जी

रात की रानी ~
कुमुदिनी के दल
चाँदनी छूती

बेर की झाड़ी
फलों से लदी हुई --
पंछी बसेरा

लाल कलश
चावल भरा हुआ ~
कैरोसिन बू

सूखी पत्तियाँ --
दवात में दबे हैं
पुराने पन्ने

पेड़ की डाली
झूल रहे पक्षियाँ --
बौराया आम

उमड़े गाड़ी
यातायात व्यस्त --
गायों का झुंड

संगीतमय
गले बँधी घंटियाँ ~
कृषक हाँक 

ज्वलित दीप --
आहूति से सुगन्ध
घीव की फैली

माघ की रात --
चमकने लगी है
मैदानी घास

करवाचौथ~
रात्रि में छत पर
आँख बहाती।

57. आ. मधु सिंघी जी

निसर्ग ओज
बिखरे चारों ओर --
नीर सरोज

भोर की बेला-
सुवर्ण से मंडित
हिम शिखर

हिम पर्वत
अटकायी निगाहें --
प्रथमा दीप्ति

साँझ की बेला--
गंगा मझधार में
जलता दीप

तैरे तैराक
गहरे सागर में--
व्हेल का झुंड

टूटता तारा--
अनाथ बालिका की
पलकें बंद

नदी ऊफान--
पुलिस के काँधे पे
वृद्ध की लाश

दीवाली दीप--
माँ विदेशी पूत की
देखती फोटो

भरी नदिया--
टूटे हुए बाँस का 
झूलता पुल

खुले आकाश
पेंच लड़ाते बाल --
कटी पतंग

58. आ. मनीष कुमार श्रीवास्तव जी

गर्म हवा से
पथिक तन पोंछा--
पेड़ की छाँव

लू थपेड़े में
वो महुआ के नीचे--
सत्तू भोजन

वृक्ष विलुप्त --
कांक्रीट महल से
पक्की सड़क

छिपा हिरण
झुरमुट के पीछे-
सिंह गर्जन

होली के रंग
धरा पर बिखरे -
टेसू के फूल

धुंध मण्डल
आसमान की ओर --
प्रपात ध्वनि।

दस्ता प्रवेश 
परीक्षा भवन में -
बाग में शोर 

भुजंग डेरा
ईंट के चट्टों पर-
बच्चों का घेरा

खेत में खड़ी
पकी हुई सरसों-
ओला बारिस

आँवला नीचे
पारण करती माँ~
द्वादसी भोर

59. आ. माधुरी डड़सेना जी

आम्र मंजरी-
कौए के घोसले में
झाँके कोयल

काले बादल -
उड़ती फुफुंदी को
छूता बालक।

भोर की बेला-
फोन से बज रहा
कुकडुक कूँ

वर्षा की बुँदें
गालों पे चिन्हांकित --
होंठों की लाली

वन उत्सव-
गमलों में सजाये
प्लास्टिक फूल

हवा के झोंके-
पुस्तक में मिला
अधूरा ख़त

ठुमका-ताली
बृहनल्ला की दुआ --
सोहर राग

नौतपा की लू-
नल पास चिड़िया
पड़ी है मृत

कुएँ की खोल
घोसले पास जगा
पीपल पेड़

पूर्ण चन्द्रमा -
प्रेमिका के माथे पे 
प्रेमी का होंट

60. आ. मीना भारद्वाज जी

विटप ठूंठ ~
हड्डियों के टुकड़े 
झील किनारे।

उपल वृष्टि~
दादी ने चूस लिया
बर्फ का गोला ।

संध्या लालिमा~
नन्ही चोंच में दाना
डाली चिरैया ।

भोर का तारा~
पाकशाला से आई
चाय  सुगंध।

भोर लालिमा~
नदी तट पे थामे
अस्थि  कलश ।

फागुन सांझ~
अतिथि के हाथ में
मिष्ठान पात्र।

कानन पथ~
विक्षत शव पर
गिद्ध का झुंड।

भोर किरण~
अमराई में गूंजा
कोकिल स्वर 

नदी का तट~
मांझी की झोपड़ी से
मछली गंध ।

निरभ्र नभ~
क्षितिज छोर पर  
पूनम चाँद ।

कच्ची सड़क~
पेड़ पे चश्मा लिये
वानर शिशु।

शिशु रुदन~
माता कान लगाये
ब्लू टूथ यंत्र

शरद भोर~
माँ का पैर दबाता
नन्हा बालक

61. आ. डाॅ.मुकेश भद्रावले जी

मातृ दिवस --
मना के आश्रम से 
ले आया पोता

सावन भोर --
झूल रही बिटिया
आम्र डाल में

नदिया पार 
आलाप दादरा के --
ढोल पे थाप

नदी में बाढ़ --
करता इंतज़ार
बस स्टाप में

मूसलाधार --
बैठा वर्षों के बाद
बच्चों के पास

प्रेमी के साथ 
वधू रफूचक्कर-
सून्न आँगन

रोगी की मृत्यु --
चिकित्सक बिदाई
पार्टी में व्यस्त

रस्सी पे डाले
गिले कपड़े सारे-
छाए बादल

सूर्य उदय-
मधुशाला में लगी 
लम्बी कतार

चांदनी रात-
आँगन में दादी की
कहानी शुरु

62. आ. मंजू शर्मा जी

बिमार वृद्ध 
रिश्तेदारों से घिरा --
गिद्ध उवाच

निशीथ काल --
गूँजी चक्की धुन में
दुल्हन गाती

आतिशबाजी 
नव वर्ष उत्सव में --
सुलगा चूल्हा 

वर्षा आरंभ --
छत टंगे वस्रों पे 
धूसर चित्र

सजल नैन --
फटी आँचल लगे
स्वर्ण मेडल 

चाँदनी रात --
रेत टीलों के मध्य 
जल लहरें 

सर्दी की रात -
अखबार के नीचे 
सोता बच्चा

शीत काल में
शाल हाट लटके -
नग्न भिखारी 

घर में जश्न -
दादा अकेले तापें 
गली अलाव

वसंत भोर -
कलरव बारी पे 
केलि कपोत

63. आ. यशवंत"यश"सूर्यवंशी जी

उजड़ा बाग~~
घर के द्वार पर 
रंगोली फूल।

पिया मिलन~~
चकोर ताक रहा 
नभ में चाँद ।

धुप सुगंध ~~
माता जला रही हैं
घर में दीप।

रुई के खेत~~
मचान पर बैठा
तोंदक वृद्ध ।

कस्तूरी गंध~~
बच्चे के बदन में
तीव्र गरमी

कचरा डिब्बा ~
खरगोश प्रतिमा 
बाग की शोभा ।

नभ में चाँद ~
युवती के साथ वो
सेल्फी में कैद।

ब्योम में चाँद~~
बालक पानी पड़े
पकड़े छाया ।

बीन की धुन ~~
संग्रहालय रखे
तक्षक नाग।

बिखरी कली 
पड़े झाड़ी के नीचे ~
शिशु के अंश।

64. आ. रश्मि शर्मा "इंदु" जी

शैशव लौ व
कलरव बाग में~
गोदी पे पोता

मद्धिम सूर्य~
चहकते परिंदे
नीड़ पेड़ में

रेशमी धागा
तस्वीर में बाँधती ~
सुमन गुच्छ ।

गोधूलि बेला~
चरवाहे की बंशी
कटिबंध में

झूले पड़े हैं
अमवा की डाल पे ~
सखी और मैं

चौथ का व्रत~
चाँद का प्रतिबिंब
पिया नैन में ।

फूस झोपड़ी~
लोरी गुनगुनाती
झूलाती मैय्या

बरखा संग
बयार थम गयी ~
झील पे पत्ते

आँसू की बूंदें
लुढ़कती गालों पर ~
निर्जन निशा

रास पूर्णिमा~
महका मधुबन
परफ्यूम से

65. आ. रविबाला ठाकुर जी

नदी का तट-
बगुले की चोंच में 
तड़पे मीन।

नदी में बाढ़-
सेल्फी लेते फिसले
प्रेमी युगल।

बच्चों की टोली~
कबड्डी मैदान में
बिजली गिरी।

वकों की टोली
बरगद शाख में --
पटाखा फटा

सरिता तट-
सेल्फी खिंचती बाला
नक्र मुख में।

दीपों की पंक्ति-
बाल्य हाथ में फूटा
एटमबम।

छत में दाना-
बया की टोली पर
बिल्ली झपटी।

नींद में माता-
बालक के पैर में
लिपटा सर्प।

भोर लालिमा ~
वट फुनगी पर
वक युगल

कुहासा भोर~
राजिम तट पर
जन समूह

66. आ. रवीन्द्र सिंह यादव जी

मेघ गर्जन ~ 
चोंच में दाना लिये 
चूजा चिड़िया |

चाँदनी रात ~
सितार की झंकार 
नदी के तट

अर्द्ध-यामिनी~
झरोखे से चाँद को 
निहार रही

सिंदूरी साँझ~
किले की छत पर
वृद्ध दंपत्ति।

नभ में चील~
साँप के पीछे मोर 
नदी किनारे |

बसंत-साँझ-
चिड़िया ने झुकायी 
आम्र-मंजरी |

धान का खेत~
सारस की चोंच में 
दबा केंचुआ |

कुहाँसा भोर~
कागा ने छीनी रोटी 
बाला हाथ से |

फूलों की घाटी~
चीड़ की छाँव तले 
नाचता मोर |

सर्दी की धूप~
रोटी ले बैठा कागा 
मुंडेर पर |

67. आ. राधा तिवारी "राधेगोपाल" जी

चाँदनी रात --
दादा दादी के संग
लुडो का लुत्फ

चंचला द्युति -
वर्षा दरमियान
चाय पकोड़े

नदी का तट~
शहीद कफन में
सुर्ख गुलाब ।

खुला आसमाँ-
मच्छरदानी लगा
सोई बूढ़ी माँ

बिगुल बजा-
जरठ दीर्घदर्शी
शव में बैठा

नदी में कश्ती-
गोताखोर बचाता
डूबती नार

शीत की रात-
गुड़ व मूंगफली
टेबल पर

वन में आग~~
नील गाय का पैर
ग्राह मुख में ।

गमछा ओढ़े
पौधा लगाता वृद्ध-
चटक धूप

ज्येष्ठ मध्यान्ह~
सूर्य को अर्घ्य देते
मां और बेटी

68. आ. राजकांता राज जी

सावन झूला-
सहेलियां मिलके 
गावे कजरी ।

अमावस को
चलता राहगीर -
बत्तियां गुल।

तुलसी पेड़ 
आँगन में महकी -
दवा पुड़िया ।

भीगे अक्षर -
बाल कर्मी बेटे से
मां मांगे पैसे।

रक्षा बंधन-
छत पर रो रहा 
बाल श्रमिक ।

शीतल वायु -
पंजों में दबा उड़ी 
बाज सर्प को।

कमल खिला -
बीच तालाब पर
बच्चे का पंजा

पितर पक्ष --
भोज चुगते कौए
छत पे झूमे

खाना संग्रह-
बेजान कीड़ा हिला 
चीटियों बीच।

बर्षा बौछार-
खेत में बैठे किसान 
भीगे पलकें ।

69. आ. राजेश त्रिपाठी "राज" जी

स्कार्फ लगाए
बैठे प्रेमी युगल ~~
शहरी पार्क ।

दीपमालिका~~
कैंडल लिए बाला
कब्र सम्मुख ।

गोधन जश्न~~
गाय की प्रतिमा में
तिलक भोग।

स्वाती आरंभ ~
चकोर चोंच मध्य
जूगनू आभा ।

सीमांत रेखा~~
पीपल की छाल पे
गोली के चिन्ह ।

कार्तिक अंत ~~
आग से अधढंका
शकरकंद । 

त्रिवेणी स्थल ~~
गोताखोर बच्चे के 
हाथ में अस्थि ।

काष्ठ मूर्ति से 
कुतरन की ध्वनि~
धूप की गंध ।

अरुणोदय ~
स्नानागार में फैली
चमेली गंध ।

पराग दाग
कागजी सुमन पे ~
मर्मर पंछी।

70. आ. राजकुमार मसखरे जी

रुकी बारीश -
बाला की हथेली में 
लटका साँप।

सोहर गाते
आँगन में किन्नर~
मिठाई गन्ध ।

स्वच्छता बोर्ड ~~
कचरे थम गये 
नदी किनारे।

ईद का जश्न~
जय घोष तिरंगा
शर्बत संग 

श्मशान घाट--
बँधा है वृक्ष पर
रेशम डोर।

बिजली गिरी ~
बकरी चरवाहा
वृक्ष के नीचे ।

ओले की वृष्टि ~
किसान पंचायत
गाँव गुड़ी में ।

वृद्धा झुलसे
आग की लपटों से~
शीत लहर ।

इमली खाते
बच्चे बैठे सामने ~
बाँसुरी तान ।

अनेक ठूठ
उजड़े चमन में~
बसन्ती राग ।

71. आ. डाँ. रुनू बरुवा "रागिनी तेजस्वी" जी

करवा चौथ-
एलबम देखती
बेवा युवती

हल चलाता
बैलों संग किसान-
मेड़ में बच्चा ।

पुच्छल तारा --
करबद्ध खड़े हैं
प्रेमी युगल ।

श्मशान घाट~
छिप के जन्म देती
अधेड़ बेवा

चाय बागान ~
श्रमिक करम में
झुमूर नाचे

मल्हार राग~
सूखे खेत में हल
चलाए नर

करवा चौथ~
पति की मौत पर
चिता में कूदी

लोबान गंध ~
कब्रिस्तान में पिता
कोफिन साथ

जलती चिता~
बरसात में खड़ी
विधवा माता

गुलाब कली~
ऊंगली से टपकी
खून की बूंद

72. आ. रोजालिन पुरोहित जी

करील गंध~
कड़ाही पर डाले
जीरे की छौंक 

धनिया गंध~
मूली की क्यारी पर
पानी फुहार 

प्रेम दिवस~
गुलाब पर गिरी
अश्रु के बूँद 

इंद्रधनुष~
गाँव की वीथिका पे
सौंधी महक

रँभाना स्वर~
पैरा कुट्टी यंत्र पे
उँगली कटी

राहर छाँव~
पतीले से महकी
पसिया प्याज

चौथ की भोर~
उलूक स्वर सुन
छूटी डिबिया

ज्येष्ठ मध्यान्ह~
हवा के गेंद पर
साधा गुलेल

राग भैरवी~
मधुकर की गूँज
सरोवर पे

आषाढ़ साँझ~
मृदंग थाप संग
कस्ताल स्वर

73. आ. वंदना सोलंकी जी

गोधन पर्व~
पशु व मानव की
गोबर मूर्ति।

जल का पात्र~
काक गौरैया सङ्ग
स्नान करते

युवा दर्ज़ी के 
स्पर्श से होंठ मोड़ी --
प्रेस की गंध।

कार्बन गैस~
तंदूर की राख में
क्षत हड्डियाँ

ब्रह्म महूर्त~
माँ घर में घूम के 
सूप बजाए।

ग्रीष्म मध्यान्ह~
आम्र के बागान में
मिरिंडा गंध।

संकष्टी चौथ~
माता तिल गुड़ से
बकरा बनाये

ढोलक स्वर~
मधु से ओम लिखा
शिशु जिव्हा पे

मावस निशा~
मच्छरदानी मध्य
दीप्त जुगनू

ज्येष्ठ मन्ध्यान्ह~
मुख में शिशु डाले
मृत भित्तिका 

74. आ. विभा रानी श्रीवास्तव जी

दादा व पोते
खेल रहे लागोरी
बाल दिवस ।

दीपकोत्सव-
दादी ने माँ को सौंपी
थाती का तोड़ा।

भड़भुजनी
भणसार जलाती-
धुंध में रवि ।

उसी कक्षा में
दादी का नामांकन–
बाल दिवस।

दीपकोत्सव-
स्याह अँधेरा फैले
साझे दर पै।

मधुयामिनी - 
संकेतक रौशनी
पर्दे के पास |

रास पूर्णिमा-
चौपड़ पर पड़ी
साले की घड़ी।

विजयोत्सव-
सिंदूर की रंगोली
कुर्ते(शर्ट) पै सजी।

पथ पै गड्ढ़े-
तम में बाँह खींचे
गुरु भुवेश ।

चाल में सर्प
श्रृंग से भू पे जल-
सद्यस्नाता स्त्री।

75. आ. विष्णुप्रिय पाठक जी

राग केदार ~
बिस्तर पे लड़ते
युगल भ्राता ।

अंडे के संग
निकली पिपीलिका~
प्रथम वर्षा

होठ की छाप~
नही धूला मैं कभी
कांच की प्लेट

जल की बूंद
डिंपल में लुढ़की~
आद्रा नक्षत्र ।

पुस्तैनी पत्र~
गूगल के बाहर
पुरानी लिपि।

सूखा दरख्त~
दीमक लगा रहे
 मिट्टी का लेप।

नन्ही गौरैया
आंगन में फुदके~
राग भैरवी।

राग बसंत ~
खड़खड़ाते उड़े
सूखे पल्लव।

गोधूलि बेला~
कलम टटोलते
आँख के वैद्य।

ताजमहल~
गुम्बद से लटका
बया का नीड़।

76. आ. वेद प्रकाश प्रजापति 'वेद' जी

मेघ आहट --
दिन की रानी बीच
मोर का नृत्य

चोंच में दबे
तिनके का टुकड़ा --
अधूरा घर 

स्तब्ध बालक --
परात के जल में
चांद का बिम्ब

साँझ की बेला --
विपक्षी लहरों को
चीरती कश्ती

बया का नीड़ --
लूता फंदा में कीट
झाड़ी के बीच

गौ टीले पर~
चरवाहे की टेर
पेड़ के नीचे

झुंडों में पक्षी --
लिपटा विषधर
नदी किनारे

वन में ठूंठ --
प्रहरी के गले में
चोट निशान

हल का बैल~
किसान की संतान
मेड़ में पड़ा

रक्तिम साँझ~
समुद्र के किनारे
पक्षी का शोर

77. आ. विनोद कुमार जैन "वाग्वर" जी

घना कोहरा ~
खाई के मुहाने पे
गाड़ी पंक्चर

घना कुहासा~
चमका क्षण भर 
गली में बल्ब ।

स्वच्छता बोर्ड~
गली के झोपड़े में 
शौच दुर्गंध

शरद संध्या~
बाला की फटी जीन्स
ताके भिक्षुक

 बासन्ती भोर ~
सजन की याद में
भीगी पलकें

श्रावणी मेघ ~
प्रेमी उपवन में
अधर धरे ।

 घंटी की ध्वनि~
फैक्टरी के सेवक 
सडक पर ।

अक्षय तीज ~
कचहरी में शादी
विधवा सङ्ग ।

आम सड़क ~
दिव्यांग बाला का 
चीर हरण ।

हरित धरा~
कँटीले ठूंठ झुंड 
सड़क तीर

78. आ. शकुन्तला अग्रवाल "शकुन" जी

खेत विभक्त --
वसीयत के लिए
लड़ते भाई

इंद्रधनुषी
रँग कैनवास पे~
नील गगन

जेठ के भोर
तप रही वसुधा~
मीन रेत पे

सूखा गुलाब~
किताबों के बीच में
पिया की फोटो

अनाथाश्रम~
फल फूल रहा है
बूढ़ा दरख्त

शिशु कोख में
लेकर माँगे भीख~
गंगा का घाट

खलिहान पे
ठिठुरता किसान ~
जुताए बैल

शंपा व बाढ़ ~
गांव पे मंडराए
गिद्धों का झुंड

श्वेत साड़ी पे
टँग गया मैडल ~
विरह राग

साँझ की बेला~
पैसे गिने भिखारी
मधुशाला में

79. आ. शेख़ शहजाद उस्मानी जी

आम्र मंजरी
फोन की स्क्रीन पर-
हाथ-मेंहदी

दूज चाँद पे
आधी बात रात में-
अधूरा ख़त

फसल बीच
खड़ा हुआ बिजूका-
कृषक-पुत्री

कच्चे चूल्हे पे
रोटी सेंकती बूढ़ी -
धुंध में घर

तेज़ हवा से
घोंसला झूल रहा -
झुग्गी में बच्चे

सूनी सड़क
नौतपा दिवस में -
शिकंजी वाला

हाथ ठेले में
पुत्री-शव लिये स्त्री -
नौतपा-रवि

बच्चों की चीखें
ऊपरी मंज़िल पे -
बिग्रेड भोंपू

कदली स्तंभ
पतित धरा पर ~
अर्थी पे शव

तितली फुर्र --
गजरे से ज़मीं में
पंखुड़ी गिरी

80. आ. श्वेता सिन्हा जी

रक्तिम साँझ~
समुंदर किनारे
जाल के ढेर

झील में चाँद
निहारे प्रेमी जोड़ा~
नौका विहार

इंद्रधनुष~
सफ़र को तैयार
पर्वतारोही

नाचता मोर
झड़े पत्तियों पर~
बूंदों का शोर ।

करवा चौथ --
नीम फुनगी पिछे
चांद निकला

ताल में सर्प~
कौओं की आवाज से
रुका सपेरा

पुष्प में भौंरा~
चित्रांकन करती
नन्ही लड़की

प्रेम दिवस --
पाखी की चोंच दबे
गुलाब फूल

पंक का फूल
मालिन के हाथ में~
रिक्त टोकरी ।

मुर्गे की बाँग~
जूठे कप समेटता
बाल श्रमिक

81. आ. संजय सनन जी

हवा में घुली
आयोडेक्स की गंध...
सेवा निवृत्त

अधूरा चित्र ~~
बारिश में भीगती
नई दुल्हन

मिल का भोंपू ~~
हड़बड़ा के उठा
सेवानिवृत्त

उमड़े मेघ ~~
विधवा के अंगना
गाए पपीहा

भोर की सैर --
धुंध चीर निकली
ग्वाले की घंटी

शव की यात्रा ~~
सामने आ के गिरी
कटी पतंग

कोमा मे सास --
बहू उतार रही
पुश्तैनी हार

मां की बरसी...
पिता मुस्कुरा रहे
फोटो फ्रेम में

पिता की अर्थी...
बेटी की विश लिस्ट
बंद मुट्ठी में

चल बसी माँ --
डाल दी दवाईयाँ
ड्राप बाक्स मे

82. आ. सरोजनी सिंह राजपूत जी

वृद्ध करता
तेंदूपत्ता एकत्र--
ओले की वर्षा ।

पुरानी पेटी--
दादी के वस्त्र पर
चढ़े दीमक ।

पुर्वाह्न काल-- 
नीड़ में चोंच मिले
चुजे पक्षी के ।

चांँदनी रात--
मैकेनिक इंजिन
खोल के बैठा ।

भौंरा गुंजन--
बना रहा है माली
फूलों की माला ।

मेघ गर्जन--
गोद में बच्चा लिए
चाक घुमाती

संदूक खोल
देखे पिया के खत--
करवाचौथ ।

वटसावित्री--
संदुक पर रखा 
लाल चुनरी ।

रक्षा बंधन--
बहन की याद में 
आँसु की धारा ।

नाग पंचमी--
खलिहान पे मृत 
सर्पों का जोड़ा।

83. आ. सविता बरई "वीणा" जी

काले बादल~
किसान डाल रहा
खेत में बीज।

मावस रात~
जुगनूओं के संग
तारे चमके।

धुँधला चाँद-
खलिहान में बैठा
वृद्ध किसान।

चाँदनी रात-
पुस्तक देख रहा
बाल श्रमिक।

नारी दिवस-
झाड़ी बीच बालिका
लहुलूहान।

नभ में बाज -
नदी के तट पड़ा
अधूरा खत।

फसल पर्व-
खलिहान के पास
कृषक शव।

पहली वर्षा-
घर में अंडे लाते
चीटीं के झुंड।

सूखा पल्लव
वृक्ष के नीचे पड़ा-
मृत शरीर।

चांदनी रात-
पति संग सेविका
खींचती सेल्फी।

मृदंग थाप-
किन्नर की गोद में
उचका लाल।

धनिया गंध~
सिलबट्टा उठाती
नन्ही बिटिया

कुहासा भोर~
विडियो बना रही
वैशाखी पे माँ

84. आ. सरिता सिंह "स्नेहा" जी

छोटी सी नाव --
सागर के किनारे
ऊंची लहरे

शरद ऋतु__
पत्ता पर लटकी
ओस की बूंद

धान का खेत ---
पंछी फड़फड़ाती
जाल में फंसी।

नील गगन --
लहरों के ऊपर
उड़ता पंछी।

राग मल्हार---
बहाव विपरीत
बहती नाव ।

पुराना घर ----
यादों से भरी हुई
फटी डायरी।

चैत्र की संध्या --
खिल गयी द्वार में
रजनीगंधा

तेज बहाव --
छप्पर के ऊपर 
लोगों का शोर ।

पुस्तकालय--
दीवार में दीमक
चित्र उकेरी।

बन्दूक ताने
सीमा पर सैनिक---
नम कोहरा।

85. आ. सरोज दुबे जी

गेहूँ की बाली --
सरसों प्रसून में
ओस की बूँद

बसंत काल --
भौंरा गुनगुनाता
कुसुम मध्य

रात की रानी
खुशबू बिखेर दी --
साँझ चौपाल

वट का वृक्ष --
बुजुर्ग चौपाल में
चिथड़े टेण्ट

डाली में फूल -
पंखुड़ी बीच बैठी
तितली उड़ी

नागपंचमीं --
स्वतः ही हिल गया
साँप की बाम्बी

भोर का सूर्य --
चहकती चिड़िया
घोसला छोड़ी

वट का वृक्ष --
कच्चा सुत कातते
माँ और बच्चा

रेत का टीला -
सागर तट फोटो
खीचे सैलानी

कार्तिक साँझ --
रंगोली के ऊपर  
जलता दीप।

86. आ. सरला झा जी

कुहासा भोर-
कानन कंदरा में 
दहाड़ गूँजा।

भोर की सैर --
छाती को थामकर
कराहे वृद्ध ।

कुहांसा भोर --
हाथों में हाथ डाले
नव दंपत्ति ।

भोर लालिमा-
सरोवर में खिला
श्वेत कमल ।

रक्तिम साँझ-
पगडण्डी धूल में
गौ पदचिह्न।

ग्रीष्म की साँझ~
वीथिका में धूल से
सना पथिक ।

तवा पे चीला--
सिलबट्टा से धन्नी
पुदीना गंध ।

तारों की आभा--
दादी किस्से शुरु की
छत पे बैठी।

भोर लालिमा--
पगडण्डी पे गूँजी
बैलों की घण्टी

शरद भोर--
अम्मा मली जोड़ों में 
राई का तेल

87. आ. सरोज साव जी

रेत के टीले~
चमगादड़ नोचे
बालक शव ।

नीलकमल~
रश्मियों से तालाब 
जगमगाता।

निरभ्र भोर~
इंद्रधनुषी छटा
हिम गिरि में।

बच्चों की टोली~
झरबेरी सुगंध
उपवन में।

अर्ध्दयामिनी~
मुँह फुलाए वधू
झरोखे पास।

ज्येष्ठ की संध्या ~
ढाबा से बाग ताके
बाल श्रमिक।

हिम श्रृंखला~
यात्रियों भरी बस 
खाई में गिरी।

ज्येष्ठ मध्याह्न~
पंछी चोंच डूबोयी
झील कीच में 

शरद संध्या~
मोटर के कुत्ते को 
निहारे बच्ची।

शरद भोर~
कमल फूल सह 
तैरे सारस।

88. आ. साधना मिश्रा जी

गुजरे कल --
किताब बीच दबी
सूखी पँखुरी

पितर-पक्ष~
एकाक्षी ताक रहा
दुधिया भात।

पितर-पक्ष~
बिमार माता-पिता
वृद्धाश्रम में।

करवाचौथ~
पिय के नयनों में
चंद्र-दर्शन।

कार्तिक साँझ~
मीनार पे झुलता
आकाश दीप।

चाँदनी रात~
छत की मुँडेर पे
प्रेमी युगल।

पाकशाला से
मछली की सुगंध~
द्वार पे कुत्ता।

बासंती साँझ~
सेल्फी लेते युगल
सरसों बीच।

आधी रात को
घुँघरू की झंकार-
सूनी हवेली।

मुख कैंसर--
रजत के पात्र से
व्यंजन गंध।

89. आ. सुकमोती चौहान "रुचि" जी

सौंधी महक~
तन मन समाये
नम हवायें।

चने खेत में
चमक रहे ओस~
प्रभात काल।

वर्षा समाप्त-
जाल बुने मकड़ी
धान पौधे में।

श्रृंगार पेटी-
गौरैया शीशे पर
मारती चोंच।

पीपल पात- 
बकरी झुँड पर
वृक का वार

अंधेरा कक्ष-
रवि रश्मि झिरी से
दर्पण पर

मध्यान्ह काल--
लुहार के आवे में
सुस्की की गंध

कुहू के स्वर--
आम की केरी पर
नमक मिर्ची

ग्रीष्म की साँझ--
माँ गोखरू निकाले
अजा पूँछ से

माघ में मेघ-
कमरे से आ रही
खट्टाई गंध

90. आ. स्नेहलता "स्नेह" जी

कूड़े का ढ़ेर~
नवजात शव को
घूरे कुकुर

घोड़ी पे दूल्हा~
सड़क मध्य पड़ा
कुत्ते का शव

वानर झुंड~
केले के छिलके पे
फिसला युवा

हिना सुगंध~
जूड़े में स्त्री लगाये
रजनीगंधा

भोर लालिमा~
वृद्ध मुख लगाये
ताँबे का लोटा

किरासन बू~
बुजुर्ग के काँधे से
फिसली बोरी

नदी का तट~
रूमाल से नासिका
ढाँके युवक

प्रेम दिवस~
दैनंदिनी से गिरा
सूखा गुलाब

गाँजा महक~
लोहे की भट्टी पर
गिरा युवक

प्रसूति कक्ष~
ताली आवाज संग
नयन नीर

91. आ. डाँ. सुशील शर्मा जी

धान की बाली-
बिजली खम्बे पर
युगल तोता।

रक्तिम साँझ --
धूल उड़ाती गायें
पगडंडी में

इंद्रधनुष --
नदी किनारे दोस्त
खींचता फोटो

ठूंठ की छाप--
आरी की आवाज से
गूँजता वन ।

लोहित साँझ--
बालक के होंठो से
बाँसुरी धुन।

कागजी कश्ती--
तिनके पर बैठे
टिड्डा व चींटा

पीत आकाश--
मकई के खेत में
हारिल चुगें।

सुर्ख गुलाब--
मुन्नी की चोटियों में
तिरंगे फीते।

फूलों की माला--
सैनिक शव पर
 बिलखती माँ।

वट की छाया--
टूटे ब्लैक बोर्ड में
बारहखड़ी।

92. आ. सुशीला जोशी जी

लौकी की बेल
बिटौड़े पर फैली--
लटके तुम्बी।

भू-स्खलन से
लुढ़क गयी शिला--
घाटी में गाड़ी।

बादल देख
किसान मुस्कुराया--
ओलों की वृष्टि।

सूरज लगा
समंदर किनारे--
नाव अटकी

मीन उछली--
झील सतह पर
खिला कमल।

गिरि के पीछे
उग रहा सूरज--
सुर्ख आकाश।

होटल बाजू
उठ रही दुर्गंध--
अन्न गोदाम।

बसन्ती वर्षा
चैरी के फूलों पर--
पवन शोर।

श्याम नभ में
कड़कती बिजली--
तूफान थमा।

खेत मुहाना--
बदन में उभरे
स्वेदों की बूँदें।

93. आ. सुधा देवरानी जी

ठूंठ झंखाड़~
झरोखे में चिड़िया
तिनका दाबे

मावठ भोर~
फटी बंडी की जेब
टटोले वृद्ध।

ज्येष्ठ मध्याह्न~
गन्ने लादे नारी के
नंगे कदम।

कर स्पर्श से
लाजवंती सिकुड़ी~
गाँव की राह।

गोश्त की गंध~
बालिका की गोद में
लेटा मेमना।

 श्रावण सांझ~
दलदल में फंसा 
हाथी का बच्चा

गृह प्रवेश~
दरवाजे पे टंगी
नींबू मिरची

 चारणभूमि~
महिषी की पीठ पे
बैठा बगुला

चैत्र मध्याह्न~
बेटी के सासरे में
कलेवा भेंट

हरीरा गंध ~
बीमा पत्रक पर 
पुत्री का नाम

94. आ. सुधा सिंह 'व्याघ्र' जी

प्रेमी दिवस~
सूनी डगर ताके
नवयौवना।

जेष्ठ मध्याह्न-
खलिहान से उठी
लपटें धुआँ

चैत्र अष्टमी --
स्त्री का जला पार्थिव
पुल के नीचे

अँधेरी गली
नोटों की गड्डी लिया
हवलदार

साँझ कुहासा~
झींगुर आवाज से
गूँजा जंगल

संक्रांति भोर-
घायल पक्षी गिरा
वधु अंक पे

चैत्र नवमी~
कन्या किलक पर
प्रसूता रोई

सूनी सड़क~
शिकारी के सामने
मृगशावक

गुरु पूर्णिमा-
दारोगा के सामने
शिक्षक छात्र

पितर पक्ष-
लेटे श्वान के आँसू
समाधि पर

95. आ. सुषमा शर्मा जी

मांँस लोथड़ा
कुक्कर जबड़े में -
दहाड़ स्वर।

पछुआ हवा -
तूफानी लहरों में
फंँसा नाविक।

चैत्र पूर्वाह्न -
सरसों फसल पे
झुण्ड में चैंपा।

माघ चतुर्थी~
बाजरे की टिक्की से
गुड़ सुगंध।

दीप प्रकाश -
छिपकली मुख में
दबा मच्छर।

मार्च आरंभ~
लिये हाथ लेखनी 
सिर पे काॅपी

केला फसल -
युगल पात बीच
गौरैया नीड़।

ग्रीष्म मध्याह्न -
मटके के निकट
चिड़िया स्वर।

सांध्य लालिमा -
जहाज आकृति में
चिड़िया झुण्ड।

हिम श्रृंखला  -
अस्थि कलश लिये
वायु सेनानी ।

96. आ. सुमिधाहेम सिदार जी

कपास खेत-
बंजर में पुष्पित
कास के फूल।

दरार भूमि-
खेत मेड़ हरित 
नागफनी से

गाल गुलाबी --
महुआ गंध संग
नगाड़े स्वर

तूफानी वर्षा --
मछुआरे का नाव
हिलकोर में ।

नदिया तीर 
शीतल मंद बयार --
राही नींद में

पतीले पर
महकती चाशनी --
मक्खी का झुंड

रक्त के धब्बे --
प्लेट में अधकटे
प्याज टुकड़े

बंगला पत्ती --
आँगन में रंगोली
विविध पुष्प

इमली पुष्प --
नन्हा पक्षी लटके
उलटे पैर

दूध का झाग --
कोयले में बदला
चूल्हे अंगार

97. आ. सौरभ प्रभात जी

पौष पूर्वाह्न~
दुबका व्याघ्र शिशु
गाय के पास।

अंतिम पौष~
चावल की पीठी से
गुड़ की गंध।

माघ की भोर~
कोलम बनाती स्त्री
तोरण तले।

हिम की घाटी~
अस्थि अवशेष पे
बैठा आरोही

फाल्गुन भोर~
सप्त धान्य पे रखा
ताम्र कलश

सौंधी महक~
शिशु रखे मुख में
कनखजूरा

चौदह जून~
झूले पे स्त्री के हाथ
चाकुली पीठा

स्वालु सुगंध~
दूर्वा अक्षोर देते
वृद्धा को बच्चे

मधुयामिनी~
श्वेत चादर देख
आँखों में लाली

वैशाख भोर~
कनि कोन्ना दिखाता
बच्चे को वृद्ध

98. आ. संगीता गोविल जी

मयूर पंख ~
किताब में रखती
प्रमाण पत्र ।

दीप माला से
रोशनमय गली  ~
तम में झुग्गी।

धुंध में छिपे
मकान और वृक्ष ~
खाली डगर ।

राह में कीट
टकराया शीशे से ~
वर्षा का झोंका ।

शीत की शाम--
चोंच छुपा सीने में 
बैठा कपोत

पके गहूँम~
थाली में रोटी देती
अचार संग।

आँधी से टूटी
डाल और छप्पर ~
रेत का राज।

टूटी सड़क ~
दौड़कर पकड़ा
माता का हाथ ।

ढँके चूजों को
पक्षी बैठे नीड़ में ~
ओले की वर्षा।

गवाक्ष पर
बालक लिखा नाम~
शीशे में ओस।

99. आ. क्षीरोद्र कुमार पुरोहित जी

चंद्र उदय ~
घुंघराले जुल्फों में
गोरी का मुख

दसरा पर्व~
नीलकंठ का चित्र 
देखते लोग 

दीप उत्सव ~
देहरी की रंगोली
वर्षा से धूली।

कार्तिक रैन ~
पलंग में महकी 
हरसिंगार

घुड़का स्वर~
सिर को गाड़कर 
खड़ा आदमी

बिच्छू का डंक~
साँस के संग रुका
मंत्रोच्चारण

मावस रात्रि ~
नींबू मिर्ची की माला
गृह द्वार पे

चीता की दौड़~
मृगछौना की चीख
वन में गूँजी

मातृ नवमी~
दीवार पर हल्दी
हस्त की छाप 

प्रक्षालक बू ~
दो हजार बीस की
लग्न पत्रिका 

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