Friday, 5 September 2025

*गुंजन : एक अनोखा हाइकुसंग्रह*


 *गुंजन : एक अनोखा हाइकुसंग्रह*


हिन्दी भाषा में हाइकु विधा का कार्य निरंतर चल रहा है ౹ हाइकुकार तो हाइकु लिखते रहते है, लेकिन, इन हाइकुकारों को हाइकु प्रकाशित करने का माध्यम मिला तो, उन्हें हाइकु लिखने की शक्ति मिलती है౹ यह शक्ति प्रदान करने का काम सर्वप्रथम डाॅ. सत्यभूषण वर्मा ने 'हाइकु' पत्रिका प्रकाशित करके किया ౹ बाद में, खुद के हाइकु लिखते लिखते अनेक हाइकुकारोंने पत्रिकाएँ, वेबपटल, व्हाॅट्सअप, फेसबुक समूह एवं साझा संकलन द्वारा हाइकु प्रसिद्ध किये है౹ इनमें प्रमुख हैं, डाॅ. भगवतशरण अग्रवाल, डाॅ. जगदीश व्योम, कमलेश भट्ट कमल, विभा रानी श्रीवास्तव, प्रदीप कुमार दाश 'दीपक', कंचन अपराजिता आदि ౹ कुुछ साझा संकलनों का विभा रानी श्रीवास्तव ने संपादन किया, इसी संकलनों के जरिए मेरा हिन्दी हाइकु लेखन में प्रवेश हुआ ౹ मास्टरनी बहुत ही सक्त थी ౹ इन्हीं की वजह से हाइकु के तरफ देखने का मेरा नजरियाँ तय हुआ ౹ 


कुछ ऐसे ही 'सक्त नजरियें' वाले हाइकु इस 'गुंजन' पुस्तक में देखने को मिलते है ౹ 'गुंजन' प्रातिनिधिक हाइकुसंग्रह के प्रधान संपादक संजय कौशिक 'विज्ञात' अपनी 'सम्पादकीय कलम से' आलेख में कहते हैं,'हाइकु एक ठोस बिम्ब आधारित अनोखी और रोचक विधा है౹ हमारे इस गुंजन हाइकु साझा संकलन में सामान्य हाइकु, मात्र 17 वर्णी हाइकु और हाइकु कविता से भिन्न मूल हाइकु पर कार्य किया गया है౹ तीन वर्षों के लगातार सतत प्रयास से हमारे हाइकु विश्वविद्यालय ब्लॉग के मर्मज्ञों ने विचार मंथन करते हुए हाइकु की गहराई में उतर कर उसकी खूबसूरती को निखारने और पाठक तक सरलता से पहुँचाने का भागीरथी एवं सराहनीय कार्य किया हैं, इस कार्य में बिंब को निकट से देख कर उसके अनेक क्षणिक महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों को महसूस किया गया है౹


प्रधान संपादक का बयान सिद्ध करनेवाले ये हाइकु देखिए ౹ कितनी गहराई है इन हाइकुओं में!

पुराना घर / यादों से भरी हुई / फटी डायरी ( सरिता सिंह 'स्नेहा' )

मुख कैंसर / रजत के पात्र से / व्यंजन गंध ( श्रीमती साधना मिश्रा )

सूखा दरख्त / दीमक लगा रहे / मिट्टी का लेप ( विष्णु प्रिय पाठक )

वट की छाया / टूटे ब्लैक बोर्ड में / बारहखड़ी ( डाॅ. सुशील शर्मा )

गुलाब कली / ऊंगली से टपकी / खून की बूँद ( डाॅ. रूनू बरूवा 'रागिनी तेजस्वी' )


'गुंजन' संग्रह के सम्पादक नरेश कुमार जगत अपने तीस पृष्ठ के 'सम्पादकीय कलम से' लेख में हाइकु के बारे में व्यापक जानकारी देते है౹ वे कहते है, 'ज्ञातव्य हो कि हाइकु बिम्ब आधारित होते हैं, जिसमें इंद्रियबोधगम्य और मानसिक बोधगम्य मुख्य हैं౹ इनके तहत भावपूर्ण संवेदनशील संदेश, एक पल की अनुकृति में समाहित होते हैं౹ केवल तीन पंक्ति में वाक्य को तोड़ कर लिख देना या फिर अपनी कल्पना का प्रयोग करना हाइकु में वर्जित है౹ हाइकु यथार्थ लेखन की विधा है जिसमें कल्पना की स्वतंत्रता लेखक को नहीं है बल्कि यह स्वतंत्रता पाठक को है౹ मानसिक बोधगम्य का अर्थ वे विषय जो हम अपने बुद्धी से अनुभव कर जान सकें, परंतु इसका अर्थ कतई कल्पना नही है౹ कोई भी ऋतुसूचक शब्द हाइकु में मानसिक बोधगम्य का विषय है'౹ आइए, सम्पादकीय कलम को पुष्टी देनेवाले कुछ हाइकु देखे :

चने का खेत / घोड़े की पीठ पर / कुत्ते का बच्चा ( संजय कौशिक 'विज्ञात' ) 

मेघ गर्जना / मयूर की चोंच से / छूटा भुजंग  ( अनंत पुरोहित )

कड़ाके ठंड / रप्फु के कपड़ों में / लेटा मदारी ( डाॅ. जितेन्द्र मिश्रा 'जितेन्द्र' )

खेत में खड़ी / पकी हुई सरसों / ओला बारिस ( मनीष कुमार श्रीवास्तव )

हिम श्रृंखला / अस्थि कलश लिये / वायु सेनानी ( सुषमा शर्मा )

प्रक्षालक बू / दो हजार बीस की / लग्न पत्रिका ( क्षीरोद्र कुमार पुरोहित ) प्रक्षालक बू का मतलब है सैनीटाईजर गंध ౹ यह हाइकु कोरोना काल की याद दिलाता है౹


सम्पादकीय कलम में 'मानसिक बोधगम्य' जन्य बिम्ब बताया गया है, जो मन से जुड़ा हुआ है ౹ मन कल्पना ही तो है! इस से हाइकु अभ्यासक भ्रमित हो सकते है౹ बिम्ब समझने का आसान तरीका यही है कि, हाइकु बिम्ब अपनी पाँच ज्ञानेंद्रियों से ही उत्पन्न हो౹ यानी दृश्य, शब्द, गंध, रस और स्पर्श से जो बिम्ब ज्ञात हो सकते है, वो ही हाइकु बिम्ब है౹


'गुंजन' संग्रह में सभी तरह के विषय पर हाइकु लिखे गये है౹ पशू पंछियों पर लिखे हाइकु में वन्यजीव के अनेक रंग रूप दिखाई देते है౹ यह भाव मानवीय जीवन के विविध पहलू को स्पर्श करते हुए दिल को छू लेते है౹ देखेंगे कुछ हाइकु :

कुहाँसा भोर / कागा ने छीनी रोटी / बाला हाथ से ( रवीन्द्र सिंह यादव )

बारिश सांझ / पेड़ टंगे नीड़ से / चिड़िया स्वर ( अंकित सोमवंशी )

श्रृंगार पेटी / गौरैया शीशे पर / मारती चोंच ( सुकमोती परशु चौहान )

भोर का सूर्य / चहकती चिड़ियाँ / घोंसला छोड़ी ( सरोज दुबे )

रक्तिम साँझ / समुद्र के किनारे / पक्षी का शोर ( वेद प्रकाश प्रजापति )

शीत की शाम / चोंच छुपा सीने में / बैठा कपोत ( श्रीमती संगीता गोविल )

धान का खेत / जाल में पंछियों की / चिचियाहट ( श्री तोषण कुमार चुरेन्द्र 'धनगंइहा' )

बंजर भूमि / स्वान को चोंच मारे / टिटहरियाँ ( बाबू लाल शर्मा 'बौहरा' )

मूँगफल्लियाँ / गिलहरी खोदती / सूखी ज़मीन ( श्रीमती पूर्णिमा सरोज ) 

कानन पथ / वानर छीन लिया / हाथ से थैला ( ऋतु असूजा ऋषिकेश )

उमड़े गाड़ी / यातायात व्यस्त / गायों का झुंड ( ममता गिनोड़िया 'मुग्धा' )


नारी के जीवन पर आधारित हाइकु में सामाजिक अव्यवस्था के साथ साथ उसके उत्थान के भी हाइकु नजर आते है ౹ इसमें आयी अच्छाई एवं बुराई हाइकु के रूप में पढ़ना एक अलग ही अनुभव है౹ हर एक हायकू मेंआशय की गहराई है౹ हाइकुमें दर्शाये गये भाव पर पाठक ठीटक जाता है, सोचने पर मजबूर होता है౹ हाइकु देखिए :

वट सावित्री / गणिका की मांग में / भरा सिंदूर  ( अनुपमा सुरेश अग्रवाल )

भौंरा गुंजन / बसंत बगिया में / सहेली संग  ( अनीता मंदिलवार 'सपना' )

निर्जन पथ / फटे वस्त्र लिपटी / बेसुध नारी ( पंचानन- सामल )

पहाड़ी नदी / पत्थर पर खड़ी / भीगी युवती  ( अनीता सुधीर )

गीली युवती / पानी की फुहार में / इंद्रधनुष ( डीजेन्द्र कुमार कुर्रे 'कोहिनूर' )

दीवाली पर्व / उदास बैठी लक्ष्मी / घर की बहू ( आरती सिंह एकता )


माता के रूप में भी नारी जीवन यहाँ पर देखने को मिलता है౹ माता भी एक मानव है౹ उसके भी कुछ आरमान या स्वतंत्रता से जीने के सपने है౹ वह प्यार देने के साथ साथ प्यार लेना भी चाहती है౹ वो कोई यंत्र या देवी नही वो भी एक जीता जागता जीव है౹ ऐसे ही यथार्थ दर्शन कराते यह हाइकु : 

फूस झोपड़ी / लोरी गुनगुनाती / झूलाती मैय्या ( रश्मि शर्मा 'इंदु' )

शिशु रूदन / माता कान लगाये / ब्लू टूथ यंत्र ( निधि सहगल ) 

नींद में माता / बालक के पैर में / लिपटा सर्प ( रविबाला ठाकुर )

चौराहे पर / फटे वस्त्रों में बाला / मातृ दिवस ( पूजा शर्मा 'सुगन्ध' )

शाम आँधियाँ / चौखट पर बैठी / माँ ताके पथ ( पूनम दूबे )  

भीगे अक्षर / बाल कर्मी बेटे से / माँ मांगे पैसे  ( राजकांता राज )कोई 

अधूरा गीत / जन्म दे गुज़री माँ / देख फोटो से  ( आभा खरे )


बच्चों की क्रीडाओं पर भी अनेक हाइकु इस संग्रह में हैं ౹ वो अनजान जीव कभी छिपकली या कनखजूरा भी मूँह में डाल लेता है౹ कोई बालक दुर्भाग्य का शिकार बनकर बाल्यजीवन का आनंद भी ले नही पाते౹ इतना काम की वो पढ़ाई तो दूर की बात उनके भरपेट खाने के भी लाले पड़ जाते है౹ फिर भी, वो आगे बढ़ने की उम्मीद नही हरते, इस हाइकु में ऐसे ही कुछ भाव है, देखिए :

शीतलहर / फटे पल्लू से मुख / निकाले शिशु ( अनीता सैनी )

बाढ़ का शोर / सिक्के खोजे गंगा में / निर्वस्त्र बच्चा ( ऋतु कुशवाह 'लेखनी' )

पेड़ पे बच्चा / डाली पर लटके / किंग कोबरा ( कुसुम कोठारी )

ज्येष्ठ मध्यान्ह / मुख में शिशु डाले / मृत भित्तिका ( वंदना सोलंकी ) = छिपकली 

सौंधी महक / शिशु रखे मुख में / कनखजूरा ( सौरभ प्रभात ) = गोम 

रेत महल / खिलखिलाया बच्चा / सिंधु तट पे ( श्रीमती कुमकुम पुरोहित )

तारों की आभा / पुस्तक लिए बच्चा / कंदील नीचे ( निधि सिंघल )

चाँदनी रात / पुस्तक देख रहा / बाल श्रमिक  ( श्रीमती सविता बरई 'वीणा' )

मुर्गे की बाँग / जूठे कप समेटता / बाल श्रमिक  ( श्वेता सिन्हा ) 

ज्येष्ठ की संध्या / ढाबा से बाग ताके / बाल श्रमिक ( सरोज साव 'कमल' )

प्रभात धुंध / बोरी ओढ़े बालक / फुटपाथ पे ( डाॅ. अनीता रानी भारद्वाज 'अर्णव' )

सर्दी की रात / अखबार के नीचे / सोता बच्चा ( मंजु शर्मा )


प्रेमी युगल पर भी कुछ हाइकु अच्छे है, किंंतु समाज का भयानक रूप दिखाते है ౹ अमीर गरीब और जातपात के चक्कर में दो प्रेमी जीव को कितनी कठीनाई झेलनी पड़ती है, इसका इतिहास गवाह है౹ सारी परंपरायें भूल कर जो प्यार करते है, इनमें से कुछ सफल होते है, कुछ असफल! यही कहानी बताते है, यह हाइकु :

प्रेम दिवस / पुल नीचे लाश पे / युवती रोए ( ज्योति बिष्ट 'जिज्ञासा' ) 

बिहड़रण्य / फाँसी पर लटके / प्रेमी युगल ( तेरस कैवर्त्य 'आँसू' )

जलता शव / ऑनर किलींग का / बाप लापता  ( तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे )

स्कार्फ लगाए / बैठे प्रेमी युगल / शहरी पार्क ( राजेश त्रिपाठी 'राज' )

प्रेमी के साथ / वधू रफुचक्कर / सून्न आँगन ( डाॅ. मुकेश भद्रावले )


शादी - ब्याह रचाकर कुछ घर बस जाते है౹ वैसे तो हर घर की एक कहानी बन सकती है, पर कोई बताते नही౹ कितना भी दुख हो, जिसका उसको ही सह लेना है౹ इस घरेलू मामलों में दूसरों की दखल ख़तरनाक साबीत हो सकती है౹ सुख दुख तो आता जाता है, पर इसकी भी लुभावनी कहानी बन जाती है౹ देखिए कुछ हाइकु :

खनकी चूड़ी / शयन कक्ष द्वार / पिया ने खोला ( डाॅ. इन्दु गुप्ता )

पन्नों के बीच / सूखा लाल गुलाब / बिसरी यादें  ( नरेश कुमार जगत )

दाह संस्कार / पति लिए हाथों में / मोगरा लड़ी ( अनुराधा नरेन्द्र चौहान )

केवड़ा गंध / खुली संदूक तह / पुराना खत ( श्रीमती केवरा यदु 'मीरा' )

चौथ का चाँद / वीडियो काॅलिंग पे / पति दर्शन ( देव टिंकी होता )

मधुयामिनी / बिखरे फूल संग / टूटी चूड़ियाँ ( डाॅ. पुष्पा सिंह 'प्रेरणा' )

प्रेम दिवस / गुलाब पर गिरी / अश्रु के बूँद ( रोजालिन पुरोहित )


वैवाहिक जीवन में सबकुछ ठीकठाक चलते हुए एकाएक समस्या उत्पन्न होती है౹ दीप बुझकर अँधेरा छा जाता है౹ नारी के इस एकाकीपन को उजास दिखानेवाले भी कई हाइकु 'गुंजन' संग्रह में संग्रहीत है౹ सिर्फ तीन हाइकु देखिए :

जाड़े की रात / तस्वीर साथ रखे / सोती विधवा ( ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' )

अक्षय तीज / कचहरी में शादी / विधवा संग ( विनोद कुमार जैन 'वाग्वर' )

उमड़े मेघ / विधवा के अंगना / गाए पपीहा ( संजय सनन ) 


मानव का दिव्यांगपन भी कभी कभार अच्छी खासी चलती हुई गाड़ी को रोक लगा देता है౹ ऐसी हालत में आदमी एकदम टूट जाता है౹ दूसरों के सहारे रहते हुए जीना बोझ सा लगता है౹ लेकिन, दिव्यांग रहते हुए भी कार्य को अंजाम देनेवाली नारी इस संग्रह में देखने को मिलती है౹

स्वर्ण पदक / चूमे दिव्यांग बाला / खेल मैदान ( आरती श्रीवास्तव )

राष्ट्रीय गीत / एवरेस्ट चोटी पे / दिव्यांग बाला  ( डाॅ. इन्दिरा गुप्ता 'यथार्थ' )


वृद्धों के जीवन पर तो बहुत सारा लेखन हो चुका है౹ वृद्धपन में कुछ अच्छाई के साथ बुराई भी है౹ पर यह अवस्था सभी के जीवन में आ जाती है౹ आदमी जो भी हाल में है, वो पल सुखशांती से गुजारना है౹ जीवन की सद्यस्थिती महत्त्वपूर्ण है, यह अभी का जीना ही हर्ष से व्यतीत करना है౹ इसका पूर्णतया आनंद लेना है౹ इस वृद्ध जीवन पर आधारित कुछ हाइकु देखिए :

शुष्क धरती / हाथों में हल लिये / वृद्ध कृषक ( धर्मेंन्द्र सिंह 'धर्मा' )

भीषण गर्मी / बूढ़ा रिक्शाचालक / सवारी ढोता ( जयश्री शर्मा 'ज्योति' )

चाँदनी रात / समंदर किनारे / वृद्ध युगल ( जयश्री पंडा ) 

पुरानी पेटी / दादी के वस्त्र पर / चढ़े दीमक ( सरोजनी सिंह राजपूत 'सरोजनी' )

खुला आसमाँ / मच्छरदानी लगा / सोई बूढ़ी माँ ( राधा तिवारी 'राधेगोपाल' )

तारों की आभा / दादी किस्से शुरू की / छत पे बैठी ( सरला झा )

छत पे काग / वृद्ध माँ - बाप पोंछे / आँखों के कोर  ( अभिलाषा चौहान )

फर्श पे बिच्छू / चारपाई पे बैठी / दृष्टिहीन माँ ( दीपिका पाण्डेय 'क्षिर्जा' )

मातृ दिवस / आश्रम पर वृद्धा / गठरी थामे ( पल्लवी गोयल )

दीवाली दीप / माँ विदेशी पूत की / देखती फोटो ( मधु राजेन्द्र सिंघी )

कच्चे चूल्हे पे / रोटी सेंकती बूढ़ी / धुंध घर में ( शेख़ शहज़ाद उस्मानी )


कभी कभी आदमी अपने पैरों पर खूद कुल्हाड़ी मार लेता है౹ वो तो स्वयं डूब जाता है, परिजनों को भी दुख के खाई में धकेल देता है౹ कोई दुख या संकट का मुकाबला करना छोड़के इन्सान शराब के नशे में दुख भुलना चाहता है, लेकिन वो और भी बढ़ता है౹ पार्टी या जश्न मनाने तक ठीक है, पर अकेले अकेले हर दिन शराब में डूबे रहना स्वयं का जीवन नष्ट करना है౹ शराब की लत से बेकार हुये लोगों पर भी कुछ हाइकु इस संग्रह में है౹ 

शराब गंध / दूल्हे के गाल पर / हाथ का छाप ( नीतू रजनीश ठाकुर 'विदुषी' )

शराब गंध / पति संग प्रेमिका / पत्नी द्वार पे ( केशरी सिंह रघुवंशी 'हंस' )

मदिरा गंध / नाली में गिरा वृद्ध / कुत्ते निकट ( चमेली कुर्रे 'सुवासिता' )

भोर लालिमा / वृद्ध मुख लगाये / ताँबे का लोटा ( स्नेहलता टोप्पो )

साँझ की बेला / पैसे गिने भिखारी / मधुशाला में ( शकुन्तला अग्रवाल 'शकुन' )


स्वार्थ से सराबोर दूसरों को दुख में साथ देने का तो दूर उनकी हँसी उडानेवाले संवेदनाहीन लोगों की दुनिया में कमी नही౹ 'मूँह में राम, बगल में छूरी' इस कहावत के अनुसार लोग बर्ताव करते दिखाई देते है౹ भोले भाले लोग जिनकी कथनी और करनी एक जैसी होती है, वो मिठे बोल सूनकर फँस जाते है౹ और वो मूट्ठी भर लोग कहाँ से कहाँ पहूँच जाते है౹ लेकिन, कोई जानकार तो रहते ही है, उनका कुकर्म उजागर करते है౹ कोई कितना भी छुपाये,अंदरूनी भाव देखनेवाले देख ही लेते है, ऐसेही कुछ हाइकु :

स्वच्छता बोर्ड / कचरे थम गये / नदी किनारे ( राजकुमार मसखरे )

बम धमाका / सेल्फी लिया डाॅक्टर / घायलों संग ( बंदना पंचाल )

वृक्षा रोपण / फोटो के मुद्रा लिए / हाथ में पौधा ( रीता सिंह 'सर्जना' )

वन उत्सव / गमलों में सजाये / प्लास्टिक फूल ( माधुरी डड़सेना )

उजड़ा बाग / घर के द्वार पर / रंगोली फूल ( यशवंत 'यश' सूर्यवंशी )

प्रदोष काल / मतदान केंद्र पे / बमविस्फोट ( निर्मल कुमार जैन 'नीर' )

अँधेरी गली / नोटों की गड्डी लिया / हवलदार ( सुधा सिंह 'व्याघ्र' )

होटल बाजू / उठ रही दुर्गंध / अन्न गोदाम ( सुशीला जोशी )

कुहासा भोर / पटरी के किनारे / विदीर्ण शव ( इन्द्राणी साहू 'साँची' )

कुहासा भोर / जंगल से उठता / सफेद धुंआ ( श्रीमती क्रान्ति )


आँख बंद करके परंपरा का अनुपालन करनेवाले अंधश्रद्धा के अधीन रहनेवाले, जीने की शर्त में दिनरात मेहनत करनेवाले, रोजमर्रा की जिन्दगी बितानेवालों पर भी कुछ हाइकु इस 'गुंजन' संग्रह में है౹ मिसाल के तौर पर यह हाइकु :

आषाढ़ साँझ / मछुआरे के हस्त / नन्ही पादुका ( जानकी जीवन प्रधान )

सरिता तट / शिकारी का बंधक / कस्तूरी मृग ( कान्ता अग्रवाल )

नदी का तट / मांझी की झोपड़ी से / मछली गंध ( मीना भारद्वाज ) 

फटी पुस्तकें / अंधेरी झोपड़ी में / दीप रोशन ( गीतांजली 'अनकही' )

हाथ में फोन / किताब कचरे में / दीमक लगे ( पम्मी सिंह 'तृप्ति' )

गृह प्रवेश / कोने में मकड़ियाँ / बुनती जाल  ( उमेश मौर्य )

नागपंचमी / दूध लिए बाला पे / सर्प का दंश  ( आशा शुक्ला )

गृह प्रवेश / दरवाजे पे टंगी / नींबू मिरची ( सुधा देवरानी )


'गुंजन' हाइकुसंग्रह के हाइकु का चुनाव करने को तीन साल लगे౹ हरएक हाइकु कड़ी मेहनत से लिखवाकर लिया गया है౹ यूँही पढ़कर भूल जानेवाले यह हाइकु नही है౹ हर हाइकु में गहरा आशय छुपा हुआ मिलेगा౹ हाइकु के सभी आवश्यक गुण इन हाइकु में दिखाई देते है౹ मैंने सिर्फ आपके सामने रसास्वाद रखा है, हाइकु का आशय नही बताया౹ इसका कारण यह है कि, इन हाइकु का विशिष्ट आशय नही है౹ पाठक अपनी अनुभूति से हाइकु का अर्थ निकाल सकता है౹ यहीं खासियत 'गुंजन' संग्रह के हाइकु की है౹ इस अनुठी उपलब्धि के लिए प्रधान संपादक संजय कौशिक 'विज्ञात' और संपादक नरेश कुमार जगत अभिनंदन के पात्र है౹ इस संग्रह में सहयोग देनेवाले हाइकुकार भी अव्वल दर्जे के है౹ पूरे हाइकुओं का आनंद लेने के लिए आपको यह संग्रह पढ़ लेना बेहद जरूरी है౹ इस संग्रह के प्रकाशक रवीना प्रकाशन, दिल्ली है౹


     - *तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे*

       परभणी - 431 401 ( महाराष्ट्र )

       मोबाईल: 8830599675

3 comments:

  1. लाजवाब संग्रह की बहुत ही शानदार समीक्षा 👌 हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ 💐

    ReplyDelete
  2. ह्रदयतल से आभार आदरणीया जी ౹

    ReplyDelete

*गुंजन : एक अनोखा हाइकुसंग्रह*

 *गुंजन : एक अनोखा हाइकुसंग्रह* हिन्दी भाषा में हाइकु विधा का कार्य निरंतर चल रहा है ౹ हाइकुकार तो हाइकु लिखते रहते है, लेकिन, इन हाइकुकारों...