Saturday 11 January 2020

हाइकु: एक रोचक विधा .... अनंत पुरोहित 'अनंत'


*हाइकु: एक रोचक विधा

हाइकु साहित्य की एक नई विधा है जो दिन-प्रतिदिन लोकप्रिय होते जा रही है। अपने लघु स्वरूप के कारण आज की आपा-धापी और व्यस्त जीवनशैली में कविता की यह विधा बहुत ही प्रासंगिक है। ऐसा माना जाता है कि यह एक जापानी काव्य विधा है और जापानी कवि मात्सुओ बाशो ने इसे लोकप्रिय किया। परंतु हाइकु कविता भारत के लिए नई नहीं है। प्रश्नोपनिषद में अनेक संस्कृत हाइकु मिलते हैं। *जिससे पुनः इस बात की पुष्टि होती है कि वेदों और उपनिषदों से इतर संसार में अन्य कोई भी विचारधारा या विधा उत्पन्न नहीं हो सकी है।* इस संदर्भ में हिंदी हाइकु लोक के संपादक डाॅ. मिथिलेश दीक्षित ने भूमिका में प्रश्नोपनिषद का निम्नलिखित हाइकु उदाहरणार्थ लिखा है-

 *देवौ नामासि* 
 *वाह तंमः वितृष्णा* 
 *प्रथमा स्तवा*   

हिंदी साहित्य में छंदों का विशेष महत्व है और हाइकु भी दोहा, सोरठा, कवित्त, सवैया इत्यादि की तरह ही एक लघु छंद काव्य है। हाइकु वस्तुतः 5-7-5 क्रम का एक वर्णिक छंद है जिसकी तीन पँक्तियों में क्रमानुसार 5-7-5 वर्ण होते हैं, अर्ध वर्ण को अन्य वर्णिक छंदों की तरह ही नहीं गिना जाता। परंतु क्या सभी 5-7-5 को हाइकु माना जा सकता है? नहीं! 5-7-5 क्रम में वर्ण होना हाइकु की अनेक विशेषताओं में से एक है परंतु इसकी अन्य अनेक विशेषताएँ हैं जो इसे विशिष्ट बनाने के साथ-साथ रोचक और जटिल भी बनाती हैं। इन शर्तों को पूरा किए बिना 5-7-5 के वर्णक्रम को हाइकु नहीं कहा जा सकता। इसकी जटिलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि मात्सुओ बाशो ने कहा था यदि किसी ने अपने जीवन काल में तीन अच्छे हाइकु रच लिया तो वह श्रेष्ठ कवि है और यदि किसी ने दस रचनाएँ कर ली तो वह महाकवि है।

मूलतः प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करने वाली यह लघु कविता अपने आप में इसीलिए विशिष्ट है कि इसमें भावों को 'कहकर' बताना मान्य नहीं है। अर्थात लेखक अपने भावों को भावसूचक शब्दों से व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र नहीं है। लेखक को अपने भावों को पाठक तक पहुँचाने के लिए अपने शब्दों के माध्यम से वैसा ही दृश्य बिंब बनाना होगा और शब्दों का ऐसा चुनाव करना होगा कि कुछ भी कहा न जा रहा हो बल्कि एक दृश्य बिंब बन रहा हो। अतः कहा जा सकता है कि अपने एक पल के अनुभव को बिना भावसूचक शब्दों के दृश्य बिंब के माध्यम से पाठकों तक पहुँचाना ही हाइकु है। तीन पँक्तियों में दो पूर्ण और स्वतंत्र वाक्य में दो दृश्य बिंब बनने चाहिए जो आपस में एक दूसरे का स्पष्ट कारण फल न बनते हुए एक दूसरे से गहरा संबंध रखता हो और पाठक के लिए एक संदेश या आह या वाह का पल निर्मित करता हो। हाइकु की यह शर्त उसे विशिष्ट बनाने के साथ-साथ बहुत जटिल बना देता है।

दृश्य बिंब को पढ़ कर पाठक अपनी कल्पना करने के लिए स्वतंत्र है। पाठक को स्वतंत्रता देने वाली एकमात्र विधा है हाइकु जो कि किसी भी अन्य विधा में नहीं मिलता। साहित्य की अन्य विधाओं में लेखक अपने शब्दों और तर्कों के माध्यम से पाठक को वही सोचने पर बाध्य करता है जैसा कि वह स्वयं सोच रहा है। परंतु हाइकु इससे इतर पाठक को कल्पना करने की स्वतंत्रता देता है। इसमें कवि या लेखक का प्रयास केवल इतना ही होता है कि वह हुबहू वही दृश्य पाठक के सामने शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत करे। उसके शब्दों से उसका स्व अनुभव नहीं झलकना चाहिए वरन् वह अनुभव दृश्य बिंब बनकर पाठक को स्पष्ट होना चाहिए। भावों को भावसूचक शब्दों के बिना कहना टेढ़ी खीर है और यही इस विधा की सुंदरता है। 

चूँकि भावाभिव्यक्ति दृश्य बिंब के माध्यम से है अतः दोनों बिंबों में स्पष्ट कारण-फल नहीं होना चाहिए। बिंबों में स्पष्ट कारण-फल पाठक को पुनः वही सोचने पर विवश करेगा जो कि प्रेक्षक/लेखक अनुभव कर रहा है और पाठक की स्वतंत्रता बाधित होगी। अतः लेखक को अपनी बात, संदेश या अनुभव दो दृश्य बिंबों के द्वारा बिना कारण-फल दोष के कहना है।

इसे एक उदाहरण (स्वरचित) से समझने का प्रयास करते हैं-

 *लीपे द्वार से* 
 *गोबर की महक~* 
 *मुर्गे की बाँग* 
*हाइकुकार - अनंत पुरोहित*
उपर्युक्त उदाहरण में *'लीपे द्वार से गोबर की महक'* एक ठोस बिंब पाठक के सामने रखा जा रहा है। यह दृश्य बिंब न होकर इंद्रिय बोधगम्य बिंब है। इंद्रिय बोधगम्य बिंब का अर्थ है ऐसा बिंब जो हमारे इंद्रियों द्वारा संभव हो। देखना चक्षुओं के द्वारा, कर्ण से सुनना, घ्राणेंद्रिय से सूँघना और त्वचा से स्पर्श यह सब इंद्रिय बोधगम्य के अंतर्गत स्वीकार्य हैं। अब पुनः उदाहरण की ओर दृष्टिपात करते हैं- गोबर से द्वार लीपा गया है। भारतीय सभ्यता संस्कृति में घर के सामने सुबह-सुबह ब्रह्म मुहूर्त में घर के सामने द्वार पर गोबर मिश्रित जल का छिड़काव किया जाता है या फिर लीपा जाता है। इस परंपरा को छरा-प्रहरा कहा जाता है। गोबर मिश्रित जल और मिट्टी से सौंधी-सौंधी सुगंध उठती है और यह कार्य ब्रह्म मुहूर्त में किया जाता है जिसका एक अन्य लक्षण है मुर्गे की बाँग। मुर्गा इसी समय बाँग देता है। दोनों बिंब एक दूसरे के कारण-फल नहीं हैं परंतु एक दूसरे के सहयोगी बनकर इस संदेश को पूर्ण कर रहे हैं कि ब्रह्म मुहूर्त में छरा प्रहरा किया गया है। सुंदर सौंधी खुशबू आ रही है जो कि एक वाह का पल निर्मित कर रहा है। साथ ही इसके पीछे एक आह का पल भी छुपा हुआ है कि किस प्रकार गृहस्वामिनी सुबह-सुबह उठकर छरा-प्रहरा करती है चाहे कैसा भी मौसम हो, सर्दी, गर्मी, बरसात कुछ भी हो। भारतीय संस्कृति और सभ्यता को आह और वाह के पलों के साथ निरूपित करता हुआ यह एक पूर्ण हाइकु है।

उदाहरण स्वरूप श्री संजय कौशिक 'विज्ञात' जी की रचना देखते हैं-

 *गंगा का तट-* 
 *ग्रहण मोक्ष पर* 
 *वस्त्र के ढेर* 
*हाइकुकार - संजय कौशिक 'विज्ञात'* 

बतौर समीक्षक श्री नरेश जगत जी इस रचना पर लिखते हैं- 
श्री नरेश जगत समीक्षा : 1

ध्यान रहे जहाँ देवी देवताओं या व्यक्ति विशेष का वर्णन हो, तब वह कृति सैर्न्यू कहलाती है।

मेरे विचार से उपरोक्त आपकी कृति एक ऐसी जटिल और कहें तो असामान्य कृति है।  जब कभी भी देखो और विचार करो तो विचार को भिन्न दिशा में ले जाती है, यह पाठक के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है कि वह किस तरह इस कृति को पाता है। माना कि सभी के दृष्टिकोण समान नहीं होते पर यह सृजन बहुत ही मर्मस्पर्शी संदेशात्मक कृति है। हम सबको भलीभाँती ज्ञात है कि हाइकु में प्रकृति की विशेष घटना जो एक पल के लिए अपने समक्ष पाए जाते हैं और दोबारा के लिए ललक छोड़ जाते है, ऐसी घटनाओं के साथ ऋतु, तीज-त्यौहार, प्रथा-परंपराओं अथवा प्रेरक शैलीयों का चित्रण किया जाता है। ठीक उसी प्रकार आपके उपरोक्त कृति में एक प्रथा के रुप में सूर्य ग्रहण काल की अंतिम दशा का वर्णन है जिसमें *गंगा का तट* प्रथम प्राकृतिक बिम्ब के रुप में आवश्यक तत्व समाहित किये हैं। जो एक ठोस दृश्य बिम्ब है। इससे सम्बंधित दूसरा बिम्ब *ग्रहण मोक्ष पर वस्त्र के ढेर* ग्रहण काल की चरम सीमा में होने वाली घटना का चित्रण, वस्त्र के ढेर के रुप में सदृश्य है जो एक मार्मिकता को दर्शा रही है, क्योंकि यहाँ स्नान के लिए उतरे वस्त्र नहीं बल्कि दान के लिए निकाले गये वस्त्रों का वर्णन हो सकता है। हाँ माना कि उस दान का स्पष्ट उलेख नहीं है, यहीँ इस कृति की कलात्मकता है। यदि उसका वर्णन स्पष्ट कर दिया जाए तो कारण फल बनकर हाइकु निर्मित नहीं हो पायेगी। 

अतः इस कृति में प्रथा को जीवंत दिखाते हुए आपके द्वारा पाठक को यह संदेश देने का प्रयास किया गया है तथा इस ग्रहण के मोक्ष काल में स्नान के बाद दान करना शुभ होता है। पाठकगण मेरे विचार से सहमति जताएँ ये सम्भव है उनके विचार पृथक भी हो सकते हैं........

*इसी रचना को ही आदरणीया ऋतु कुशवाह जी कुछ इस तरह से देखती हैं* 

*ऋतु कुशवाह समीक्षा -2*

1. प्रथम बिम्ब:
मोक्षदायिनी गंगा जी का तट
2. द्वितीय बिम्ब:
*ग्रहण मोक्ष पर वस्त्र का ढेर*
'ग्रहण मोक्ष: ग्रहण का समाप्ति काल"
ग्रहण समाप्त होने पर नदी पर स्नान करने गए लोग दुख, दरिद्र, कष्ट, रोग से पीछा छूटे ऐसी धारणा से पुराने वस्त्र घाट पर छोड़ आते हैं। इसी दृश्य को दिखाया गया है।
*विशेष टिप्पणी*: यह एक प्रकार की रीति है। रीतियां धर्म से संबंधित होती है। अतः इसे आप धार्मिक तो देख सकते है। किन्तु ककी इसमे कही भी स्वयं भगवान का या पूजा पाठ का जिक्र नही है अतः यह सेनेर्यू की श्रेणी में नहीं हाइकु की ही श्रेणी में आता है।

*ठोस प्राकृतिक बिम्ब*: गंगा का तट
क्षमा प्राथी हूँ, किन्तु इसमे साफ साफ वर्णन है कि वस्त्रो का ढेर है तट पर यह वस्त्र दान के लिए नही होते अपितु स्नान करते समय पहने हुए गीले वस्त्र होते है, जो लोग तट पर छोड़ कर जाते है।
कारण फल का दोष इसलिए नहीं है क्योंकि ग्रहण और वस्त्रो के ढेर दोनो का वर्णन एक ही भाग में हुआ है। यदि दोनों में से किसी भी एक का वर्णन 12 वाले भाग में और दूसरे का वर्णन 7 वाले भाग में होता तो यह कारण फल होता क्योंकि निश्चित ही दान भी होते उस समय परंतु तट पर वस्त्रो का ढेर वो भी मोक्ष के समय तो मुझे सर्वाधिक निकट छोड़े गए वस्त्र ही लगते हैं। परंतु दान बहुत होता है, मैं इससे भी सहमत हूँ।*

इन दो उदाहरणों से एवं अलग-अलग पाठक की दृष्टिकोण  पढ़ने पर हाइकु का एक खाका स्पष्ट दिख जाता है कि पाठक अपने दृष्टिकोण से देखने लिए स्वतंत्र है। बस दोनों पाठकों में एक बात समान है कि श्री विज्ञात जी की रचना ने दोनों ही पाठकों के मन की संवेदनाओं को छुआ। बिना इसके कोई भी रचना सार्थक नहीं हो सकती।

इस प्रकार अंत में निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अनुभूति के चरम को विभिन्न नियमों के ताप में तपाकर जब रचना निकलती है तो उससे शुद्ध सोने की सी स्वर्णाभ चहुँ ओर व्याप्त हो जाएगी।

*लेखक* -
*अनंत पुरोहित*

14 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  3. बहुत सुंदर उदाहरण और जानकारी ...शानदार लेख 👌👌👌ढेर सारी शुभकामनाएं 💐💐💐💐

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  4. वाह!!!
    बहुत सुन्दर, ज्ञानवर्धक।

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  5. रोचक किन्तु बेहद गूढ़ रचना (हाइकु)....

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  6. सार्थक एवं ज्ञानवर्धक लेख ।

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  7. यह लेख नए रचनाकारों के लिए मार्गदर्शिका है।

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  8. कितना सुंदर, ज्ञानवर्धक, सार्थक, हाइकु को समझाता आपका लेख है हमें भी काफी कुछ सीखने को मिला

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  9. बहुत ही सुन्दर लेख है,वास्तव में हाइकु क्या है ? मैं इसे पढ़ने के बाद जाना हुं।

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  10. अत्यंत प्रभावशाली लेख अनंत

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  11. बहुत सुन्दर विवेचना👌👌👌👌 👌👌👌👌👌हाइकु लेखन को जटिल समझने वालों के लिये अत्यंत काम का लेख👏👏👏👏👏👏

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  12. इस लेग को पढ़ने वाले का एक बार तो अवश्य ये दिल करेगा कि मैं भी एक बार हाइकु लिखकर तो देखूँ।बहुत ही सार्थक और सुन्दर लेख👌👌👌👌👌👌

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