हाइकु सत्रह वर्णों में लिखा जाने वाला सबसे छोटा छंद है।हाइकु अलंकारविहीन सहज अभिव्यक्ति की कविता है।इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में पाँच वर्ण दूसरी में सात और तीसरी में पाँच वर्ण रहते हैं।
हाइकु हमारी आत्मिक अनुभूति को दर्शाने वाली एक पल की अनुकृति है, और इस अनुभूति को हम ५/७/५ के क्रम में लिखकर "आह और वाह" के पल के साथ आप लोगों के दिल तक पहूँचाने में सफल होते हैं तो ये एक बेहतरीन हाइकु की श्रेणी में माना जाता है।
हाइकु को काव्य विधा के रूप में बाशो ने प्रतिष्ठा प्रदान की। हाइकु मात्सुओ बाशो के हाथों सँवरकर १७ वीं शताब्दी में जीवन के दर्शन से जुड़ कर जापानी कविता की युगधारा के रूप में प्रस्फुटित हुआ। आज हाइकु विश्व साहित्य की अनमोल निधि बन चुका है।
अनेक हाइकुकार एक ही वाक्य को 5-7-5 वर्ण क्रम में तोड़कर कुछ भी लिख देते हैं और उसे हाइकु कहने लगते हैं। यह सरासर गलत है, और हाइकु के नाम पर स्वयं को छलावे में रखना है।
पहले मुझे हाइकु के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। हाइकु सुगंध के आदरणीय जगत नरेश सर और आदरणीय विज्ञात जी के अद्भुत हाइकु पढ़ने के बाद मेरी रुचि बढ़ती गई। आदरणीय जगत सर, विज्ञात सर,देव सर,रितु जी, नीतू जी के सानिध्य में मुझे हाइकु की बारिकियाँ सीखने मिली। धीरे-धीरे मेरी जिज्ञासा बढ़ती गई।जो मैंने सीखा वही जानकारी आप सभी के साथ साझा करने की कोशिश कर रही हूँ।यह देखिए आदरणीय जगत सर का लिखा एक हाइकु है।
पूर्वाह्न काल --
बड़ी में घोंप दी माँ
सूखी मिरची।
यहाँ आदरणीय जगत सर ने पाँच वाले बिम्ब में पूर्वाह्न काल का दृश्य लिया है।पूर्वाह्न काल यहाँ एक मजबूत प्राकृतिक बिम्ब है।
बारहवें वाले दूसरे बिम्ब में एक पल की अनुकृति दर्शायी गयी है। माँ बड़ी लगा चुकी हैंं, उसके पश्चात् उसे नजर से बचाने के लिए उसमें सूखी लाल मिरची लगा दी।
जब घरों में महिलाएं दाल की बड़ी लगाती हैं तो अक्सर यह दृश्य देखने मिलता है। इसी दृश्य को आदरणीय जगत सर ने बड़ी ही खूबसूरती से अपने हाइकु में दिखाया है।
हाइकु दृश्य बिम्ब पर आधारित रचना है। हाइकु में हमें दो मजबूत बिम्ब चाहिए जो हाइकु के एक पल को फोटोक्लिक में बदल दे।उसमें वाह के पल लिए हुए यथार्थ दृश्य या कोई मार्मिक ध्वनि जो मानवीय संवेदना को प्रकट करती हो ।
हाइकु के पाँच वाले बिम्ब में "क्रिया,कथन का कोई स्थान नहीं होता।
उदाहरण के तौर पर:-
शरद साँझ~
माँ अलाव में डाले
नीम के पत्ती।
यह अपने आप में एक दृश्य आधारित हाइकु है।अगर हम इसके पाँचवे भाग में"साँझ को डाली,या साँझ की बेला" तो यह गलत हो जाएगा क्योंकि हम कह रहे हैं दिखा नहीं रहे।
हाइकु में हमें ठोस प्राकृतिक बिम्ब चाहिए होता है जो हाइकु की सुंदरता में चार चाँद लगाता है।
इसी हाइकु का बारहवाँ भाग,जो हमें पूर्ण दृश्य दिखा रहा है।माँ सर्दी में शाम के समय अलाव जलाकर बच्चों की ठंड भगाने की कोशिश कर रही है, साथ ही मच्छर भगाने के लिए नीम के पत्ते को अलाव में डाल रही है।
हाइकु यानी कम शब्दों में ज्यादा बात। हाइकु में दोहराव, अनावश्यक शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। हाइकु बहुत छोटी विधा है, अनावश्यक शब्द इस विधा की खूबसूरती को कम कर देते हैं।
अभी यह दूसरा हाइकु देखिए।यहाँ मैंने लिखा है।
संगम घाट~
उकेरा रेत पर
प्रेमी का नाम।
अब यहाँ मैं यह लिखती, प्रेमिका ने उकेरा प्रेमी का नाम।तो यहाँ प्रेमिका अनावश्यक है,प्रेमी का नाम तो प्रेमिका ही लिखेगी।तो हमें हाइकु में अपने भावों को व्यक्त करने के लिए दो बिंब चाहिए होते हैं।पाँचवे भाग में मजबूत प्राकृतिक दृश्य बिम्ब होना चाहिए,कथन और कारण फल का हाइकु में कोई स्थान नहीं है। हाइकु में हमारा प्रयास केवल इतना ही होता है कि वह हुबहू वही दृश्य पाठक के सामने शब्दों के माध्यम से पहुँचा सकें।और कम शब्दों में एक पूर्ण दृश्य का निर्माण कर सकें।
***अनुराधा चौहान***
बहुत ही सुंदर ज्ञानवर्धक लेख आदरणीया अनुराधा जी 👌👌👌 बहुत बहुत बधाई ...इसी तरह मार्गदर्शन करती रहें 🙏🙏🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteवाह, हाइकु का सरल सहज शब्दों में विवेचन।उत्तम
ReplyDeleteधन्यवाद दी
Deleteप्रभावशाली ढंग व उदाहरणों के माध्यम से आपने हाइकु को समझाया है। इस लेख से आगे के रचनाकारों को बहुत अधिक लाभ मिलेगा। उत्कृष्ट लेख 👌
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteबेहद उपयोगी व ज्ञानवर्धधक लेख ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteबहुत ही ज्ञानवर्धक उत्कृष्ट सृजन
ReplyDeleteवाह!!!
हार्दिक आभार सखी
Deleteवाह !बेहतरीन सखी 👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteबहुत ही सरल शब्दों में सुन्दर विवेचना सखी👌👌👌👌👌
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteसरल भाषा में आपने बहुत सुन्दर ढंग से समझा दिया!
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी
Deleteमैं हमेशा से हाइकु को बहुत आसान समझती थी लेकिन आज आपके लेख को पढ़ा और उदाहरण देखे तो समझ में आया कि यह विद्या अपने| आप में बहुत खास है यह आसान कहीं से भी नहीं है आपके इतनी सरल भाषा में आपने उदाहरण के साथ समझाया ......इस मार्गदर्शन के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और अगर समय मिले तो मुझे जरूर हाइकु सीखने में मदद कीजिएगा
ReplyDeleteधन्यवाद सखी
Deleteमेरे जैसे बिल्कुल अनभिज्ञ जनों केलिए आश्चर्यचकित करने वाली जानकारी , सादर नमन।
ReplyDeleteधन्यवाद शशि भाई
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत बढिया जानकारी दी आपने अनुराधा जी। मन तो करता है ,ऐसी, विधाओंको सीख लूँ , पर अभी समय नहीं है। आपका हार्दिक आभार इस सुंदर जानकारी के लिए 🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी 🌹
Deleteबहुत ही ज्ञानवर्धक लेख सखी । हृदय से आभार ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteवाह बहुत ही सुंदर और सरल तरीके से आपने हाइकु की पृष्ठभूमि हमारे सामने रखी जो काफी ज्ञानवर्धक है।
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार
धन्यवाद राधा जी
Delete��✍️बहुत सुंदर जानकारी दी है आपने हाईकों के बारे में..
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteआपके हाइकु भी बहुत ही सुंदर है..
ReplyDeleteजी आभार
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति एवम् ज्ञानवर्धक जानकारी
ReplyDeleteहार्दिक आभार ऋतु जी
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