Friday 17 January 2020

हाइकु पर चर्चा...

हाइकु ?

शीत मध्यान्ह --
अपनी ओर पीठ
किये बैठी वो।

Anant Purohit g: यह दृश्य ऐसा लगता है कि कोई जुएँ बीन रहा है बैठ के, गाँव में शीत मध्याह्न में मैंने अकसर धूप में दो महिलाओं को इस मुद्रा में देखा है।
Abhilasha g: बालों में डाई भी करवा सकती हैं
Anant Purohit g: पर मैंने जो देखा है और जो दृश्य मुझे दिखा वह बताया
Abhilasha g: सर क्षमा...
मध्याह्न होता है दिन को अहन् कहते हैं आधा न ह् के  बाद आना चाहिए।
Anant Purohit g: हालाँकि जुएँ बीनने की मुद्रा इसमें नहीं दिखाया गया है
उसे मानसिक बोधगम्य पर छोड़ते हैं
Abhilasha g: वो भी सही है।
: अपनी ओर पीठ
किए बैठी वो

पत्नी भी हो सकती है रूठी हुई।

अपनी ओर से स्पष्ट नहीं कि स्त्रियां ही हैं
Anant Purohit g:

Anant Purohit g: पति जुएँ बीन रहा हो तो

हमारे राजाजी के लिए यह कौनसा असंभव है ?
: वैसे भी नाखून तो काटते ही हैं

यहाँ एक और संदेह भी जाहिर कर देता हूँ। मेरी पहली रचना 'वेणी' (कुण्डलियाँ) में मैंने चिह्न लिखा था। उसे त्रुटि कहकर आदरणीय विज्ञात सर ने सुझाव देते हुए चिन्ह लिखने कहा था परंतु शब्दकोश में भी चिह्न लिखा है

सही क्या है? 🤔

Abhilasha g: जी  उच्चारण कीजिए स्वत ही पता चल जाएगा कौन-सा वर्ण पहले आ रहा है
: वही सही है जो शब्द कोश में है
Anant Purohit g: नहीं हो रहा है स्पष्ट

ब्रह्म और ब्रम्ह में भी यह संदेह आता है

पर फिर विज्ञात सर ने उसे गलत क्यों कहा?
Anant Purohit g: मेरे हिसाब से

मध्याह्न
चिह्न

सही हैं
: ह् + न = ह्न
Abhilasha g: मैंने कई व्याकरण की पुस्तकों में चिह्न को ही शुद्ध शब्दों में पढ़ा है।
Anant Purohit g:
: ह् + म = ह्म
Abhilasha g: अक्सर उच्चारण के कारण ये गलतियां होती है । इनमें ह् की ध्वनि स्वर के अभाव में लुप्त सी हो जाती है।
Anupama Agrawal g: शायद दोनों सही होते हैं।
मसखरे जी: पहले चिह्न लिखा जाता था लेकिन अब के शिक्षाशास्त्री लोग चिन्ह लिखो कहते हैं,,,, जो बच्चों को भी स्पष्ट लगे, इसलिए दोनों सही

Anupama Agrawal g: सर! मेरे मंदमति अनुसार स्त्री दर्पण के सामने बैठी है....जो ऐसा भ्रम उत्पन्न कर रहा है कि वो अपनी ही ओर पीठ किये बैठी है
मसखरे जी: चिन्ह ,चिह्न ,,, दोनों सही है
Nirmal Jain g: चिह्न -सही है
Abhilasha g: दोनों सही नहीं है ये और बात है कि हम प्रयोग में लेते -लेते भूल गए हैं कि
किसे सही माने नेट-स्लेट ,बोर्ड  की परीक्षा तक में चिन्ह का शुद्ध रूप पूछा जा चुका है
Abhilasha g: यदि ऐसा है सर तो परीक्षाओं में बेचारे बच्चों को क्यों परेशान किया जाता है चिन्ह का शुद्ध रूप पूछ कर ,वो भी बोर्ड परीक्षा में।

Anupama Agrawal g: दूसरा एक भाव ये भी हो सकता है कि किसी जलस्त्रोत के निकट वो उल्टी पीठ करके बैठी हो।

Anupama Agrawal g: सर्दी का मौसम है और वो पानी में  जाने से घबरा रही हो अतः पीठ घुमाकर बैठ गयी।क्योंकि जितना सूर्य ऊपर चढ़ता है उतना ही पानी अधिक ठंडा होता जाता है।
मसखरे जी: सर्दी के मौसम में दोपहर को शीत   मध्यान्ह कह सकते हैं ....मुझे तो  अलग लगता है,,, बिना विशेषण सर्वनाम के शीत को ??
Anupama Agrawal g: जी आपका अभिप्राय नहीं समझी
Nidhi g: Khud ki taraf koi peethh kar ke kaise baithh saktaa hai ??
अनुराधा चौहान जी: अपनी और पीठ /या धूप की और पीठ??
अपनी और पीठ किये बैठी वो।
आईना??
आईने में ही खुद की तरफ पीठ कर सकते हैं
Anupama Agrawal g: आईना भी और पानी की तरफ यदि आप उल्टा मुँह करके बैठें तो पानी के अक्स की तरफ पीठ होगी

अनुराधा चौहान जी: जी अक्स तो दो में ही दिख सकता है
सर ऐसे हाइकु देते हैं समीक्षा के लिए सिर घूम जाता है

Anant Purohit g: दर्पण की ओर पीठ करेंगे तो पीठ पीठ आमने सामने होंगे

आप और पीठ नहीं
अनुराधा चौहान जी: सही कहा सखी अभी हम उतनी गहराई में नहीं उतर पाए।सर के हाइकु की समीक्षा कर ली तो पास हो गए समझो
Abhilasha g: कहीं धूप में उसकी परछाई तो ऐसी प्रतीत नहीं हो रही।
Anant Purohit g: बीवी रूठ गई है - अपनी ओर पीठ किए वो
Anupama Agrawal g: तो कृति में ये कहाँ लिखा है कि अपनी तरफ मुह करके बैठी??
Abhilasha g: दोपहर की धूप में बैठी हो और ऐसे की लगे कि वो अपनी और पीठ करके बैठी है।
Anant Purohit g: अपनी ओर बोले तो सामने की ओर ही तो होगा
अनुराधा चौहान: सर ने नींद भगाओ हाइकु दिया है।सोचो किसकी पीठ

शायद उसके बच्चे को कोई दृश्य दिखा रही है गोद में बैठाकर
Anupama Agrawal g: अपनी पीठ की ओर भी तो हो सकता है
Abhilasha g: मैंने तो पहले ही कहा पत्नी या प्रेमिका रूठ गई है इसलिए पीठ घुमा कर बैठी है अपनी शब्द पति या प्रेमी के लिए।
अनुराधा चौहान जी: शायद उसके बच्चे की पीठ अपनी और करके कोई दृश्य दिखा रही है गोद में बैठाकर
Anupama Agrawal g: पति के लिए अपनी???
बच्चे के लिए अपनी???
Abhilasha g: अपनी ओर पीठ
किए बैठी वो

वो पर ध्यान दें।
अनुराधा चौहान जी: *बच्चे की* अपनी और पीठ किये बैठी वो।
Anupama Agrawal g: हाँ तो वही ना....वो एक स्त्री ....
Anant Purohit g: ये साइकु बना के छोड़ेगा
अनुराधा चौहान जी: किसी की पीठ हो सकती है,पति,प्रेमी, बालिका,शिशु।
Abhilasha g: मुझे तो सौ प्रतिशत रूठी हुई लग रही है
Anupama Agrawal g: अनुराधा जी.....हो सकता है आप जो कह रही हैं  वो भी सही हो....पर मेरे ख्याल से ऐसा नहीं
Anant Purohit g: चूँकि हाइकु में हम अपना अनुभव बताते हैं अतः - अपनी का अर्थ अपन हुए
अनुराधा चौहान जी: सर ने किसी को गुस्सा कर दिया
: वैसे हमारे सर गुस्सा करना नहीं जानते।
Anant Purohit g: और गुस्से की गहन अनुभूति में एक पल की अनुभूति के रूप में हाइकु प्रफुटित हुआ
Anupama Agrawal g: इस बात में point है यहाँ कर्ता सर हो सकते हैं।फिर तो भाव स्पष्ट हैं।
Anant Purohit g: सर भुक्त भोगी हैं
: मैं समझ सकता हूँ
अनुराधा चौहान जी: अपन की ओर पीठ करली उसने अब किसकी पीठ है वो नहीं पता।
: अब बिंब स्पष्ट हो गया
Abhilasha g: या तो पत्नी,प्रेमिका या धूप में पड़ने वाली उसकी परछाई
Anupama Agrawal g: आखिर हम सबने मिलकर पहेली सुलझा ली
Anant Purohit: वैसे भी जो गुस्सा हुई है वो आज सर को सोने कहाँ देगी
बेचारे गुरूजी
Abhilasha g: चूंकि पीठ स्त्रीलिंग है इसलिए वो स्त्री की हो जरूरी नहीं और उसके पूर्व का शब्द भी स्त्रीलिंग ही होगा
अनुराधा चौहान जी: मेरा तो मानना है उसके बच्चे की पीठ है।जो गोद में बैठा कुछ देख रहा है।
Abhilasha g: अपनी और वो दो अलग लोग हैं पीठ वो की है
Anupama Agrawal g: पीठ तो स्त्री की ही होगी
अनुराधा चौहान जी: अपनी और पीठ कैसे कर सकती है??
Anupama Agrawal g: हाँ और वो स्त्रीलिंग है ....बैठी
अनुराधा चौहान जी: किसी और की पीठ अपनी और की होगी।
Anupama Agrawal g: इसकी संभावना कम है
Abhilasha g: अपनी ओर--?
पीठ किए बैठी वो
Anupama Agrawal g: यहाँ हाइकुकार ने जो दृश्य देखा वो उसे शब्दों में बयां कर रहा है

Anant Purohit g:
शीत मध्याह्न~
अपनी ओर पीठ
किए बैठी वो

*अपनी ओर पीठ किए बैठी वो*
यह एक पल की अनुकृति है। इसमें पाठक के लिए अपार संभावनाएँ हैं कि वह हाइकु को अपने दृष्टिकोण से देखे। पाठक के मनोदशा और उम्र के हिसाब से इस हाइकु का अलग अलग अर्थ निकलेगा।

अतः यह एक पूर्ण हाइकु है। परंतु अभी एक चीज अस्पष्ट है कि इसका शीत मध्याह्न से संबंध क्या है?

यह हाइकु मानसिक बोधगम्य हाइकु की श्रेणी में आता है।
Anupama Agrawal g: बाप रे!!!कमाल की समीक्षा
अनुराधा चौहान जी: ठंड में ठिठुर के भी बैठेगी तो भी वही बात हुई??
Anupama Agrawal g: पर भी हम लोगों से और दिमागी कसरत करवाने के मूड में हैं सर
अनुराधा चौहान जी: हाँ पता है पल-पल की खबर है सर को।पर सही जवाब एक भी नहीं
: जब तक पहेली हल नहीं हो जाती सर यूँ ही चुपचाप सब देखते रहेंगे
Anant Purohit g: अब और नहीं
फाइनल यह है कि बीवी रूठ गई है। बेलन लेके बैठी है। पीटने को तैयार
Anupama Agrawal g: अरे!!!!एक चीज और हो सकती है
अनुराधा चौहान: क्या
Anupama Agrawal g: Double mirror ho
: जैसे पार्लर में होता है तब ये फील होता है कि अपनी ओर पीठ है
Anant Purohit g: सैलून का जिक्र तो किया था आदरणीया अभिलाषा जी ने
: बाल कटाते समय भी यह हो सकता है
Anupama Agrawal g: शीत मध्याह्न से संबंध ये कि सर्दियों में शादियाँ बहुत होती हैं
Anant Purohit g: शीत मध्याह्न से संबंध है
Anupama Agrawal g: और ladies afternoon में ही free होती हैं
अनुराधा चौहान जी: शॉल में किसी को छुपाकर बैठा रखा है ठंड न लगे
Anupama Agrawal g: अब picture clear है
Wandana Solanki g: क्या,,बताओ
Anupama Agrawal g: बताया तो ऊपर
Anupama Agrawal g: गर्मी में मेकअप खराब हो जाता है पसीने से

Jagat Naresh g: उपरोक्त मेरी कृति को रखने का एक उद्देश्य है। अब इसके बारे में भी आगामी दिनों शब्द उजागर करेंगे... नतीजा कुछ भी हो, आप सबने अपना बहुमूल्य समय मेरी कृति को दिए। हृदयतल से आभारी हूँ
        हाइकु में इससे भी गंभीर और रोचक कृतियाँ आयेंगे ये तो निश्चित है।
       आज तो खूब चीरफाड़ हुए... समीक्षा सराहनीय रहा। आप सबको बधाई 💐💐💐


Anant Purohit g:
शीत मध्याह्न~
अपनी ओर पीठ
किए बैठी वो

वाह!! अप्रतिम रचना!!

कल एक बात पूरी तरह से स्पष्ट थी कि बिना शीत मध्याह्न के इस हाइकु का कोई मतलब नहीं है।

गहन चिंतन मनन करने पश्चात यह पाया कि कोई (नर हो या नारी या बच्चा) भी जब धूप सेवन करने के लिए सूर्य की ओर पीठ करके बैठेगा तो उसकी छाया उसकी ओर पीठ करके बैठेगी।

होने को तो ऐसा किसी भी मध्याह्न पर संभव है यदि कोई बैठे धूप में तो। परंतु गर्मी मध्याह्न में कोई बैठेगा नहीं।

बिना शीत मध्याह्न के इसका कोई औचित्य नहीं।

वाह!! लाजवाब रचना।
अनुराधा चौहान जी: पर बीच दिवस जब सूरज ठीक सिर के ऊपर होता है। तो परछाई का आकार बहुत छोटा होता है। ऐसा दृश्य तो चार बजे के आस-पास की धूप में दिखाई देगा।

एक जिज्ञासा
Anant Purohit g: जी!! यह तो प्रेक्षक बता रहा है अपना अनुभव न कि जिसकी छाया बन रही है।

मध्याह्न मतलब 12 बजे 3 बजे तक का समय। प्रेक्षक को इस बीच किसी भी समय पर यह दिख सकता है।

अनुराधा चौहान जी: जी सही है। सर हमारे दिमाग के पुर्जो को समय-समय पर झटके देते हैं।
: जल्दी ही कोई नया झटका मिलेगा

Jagat Naresh g: शीत काल में सूरज सीधा नहीं होता। ग्रीष्म में होता है
           विगत रात्रि पता चला कि बिम्ब की पकड़ काफी मजबूत हो चुकी है जिससे साबित होता है कि हाइकु के गुण तत्व आप सबसे अनछुआ नहीं रहा। गर्व का विषय है कि हम विधा के करीब हैं। आप सबको हार्दिक बधाई 💐🌸🌹🌷👏👏👏
Anupama Agrawal g: वाह!!!!बात वही ठीक रही जो अभिलाषा जी ने कही थी।सुन्दर विवेचना 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻

            उपरोक्त कृति के दोनों बिम्बों के सामंजस्य में तरह-तरह के विचार पढ़ने को मिले, जिससे स्पष्ट होता है कि यह कृति मानसिक बोधगम्य बिम्ब के अंतर्गत प्रयोग सफल रहा। कृति को जब-जब हम देखेंगे और उस पर चिन्तन करेंगे, तब-तब इनमें भिन्नता पाते हैं। बाल्य, युवा, प्रौढ़ तीनों के विचार इस कृति में भिन्न पाये गये हैं। बाल्यावस्था पाता है कि धूप सेंकने के लिए कोई बैठी हो। युवावस्था पाता है कि उसकी प्रेमिका या पत्नी उससे नाराज होकर बैठ गयी हो।
           इस प्रकार यह कृति पाठक की अवस्था और परिस्थिति पर निर्भर करता है कि वह किस तरह इसे देख पा रहा है, अर्थ में भिन्नता पायी जा सकती है। अर्थात् मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है कि रचना में क्या है। इसलिए यह कृति मानसिक बोधगम्य बिम्ब आधारित मान्य है।

संचालक
हाइकु विश्वविद्यालय
नरेश कुमार जगत

9 comments:

  1. वाह!! आपने सभी के विचार और दृष्टिकोण के माध्यम से हाइकु के एक भिन्न रूप को उजागर किया कि यह पाठक को स्वतंत्रता देनी वाली विधा है। हाइकु को पाठक अपने दृष्टिकोण से समझता है और हमेशा जब भी वह पढ़ता है तो स्वंय को उसका हिस्सा समझकर पढ़ता है। यदि हाइकु पाठक को अपना हिस्सा बनाने में सफल हुई तो वह सफल हाइकु है।

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    1. जी, यही बिम्ब युक्त हाइकु की खासियत है। खासकर मानसिक बोधगम्य बिम्ब में।

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  2. वाह 👌👌 पढ़कर मज़ा आ गया आदरणीय 🙏 इतना तो चीर-फाड़ करते समय भी नहीं आया था।
    निस्संदेह उत्तम कृति👌👌

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  3. शानदार चर्चा 👌👌👌

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  4. वाहहह बेहतरीन

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  5. मानसिक बोधगम्य बिंब की विशेषताओं पर खरी उतरती एक बेहतरीन कृति पर सुन्दर चर्चा 👌👌👌👌👌

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  6. आप सबने सराहा... हार्दिक आभार 🙏🌷

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