Sunday 2 February 2020

आइए जानें हाइकु को...

     आज हर किसी के पास समय की कमी है।हर व्यक्ति किसी न किसी चीज़ के पीछे भागता हुआ दिखाई  देता है।ऐसे में मानवीय संवेदनायें मृतप्राय हो चुकी हैं।किसी के पास किसी के लिए भी वक़्त नहीं है।सब बस अपनी ही दुनिया में रहना चाहते हैं इसी कारण अब संयुक्त परिवारों का चलन भी कम होता जा रहा है। अब विवाह आदि कार्यक्रम भी सब कम से कम लोगों के साथ और कम से कम समय में बस खानापूरी भर करते हैं।
ऐसे में लुप्तप्राय हो चुकी रस्मों को पुनः जीवंत करने का मेरा एक छोटा सा प्रयास है अपनी नन्ही कलम के माध्यम से .....

 देवउठनी~
 बाढ़ ढुकाई नेग
 लेती भगिनी।

हाइकुकार--

अनुपमा अग्रवाल

          इस रचना में  मैंने प्रथम बिंब लिया है ' *देव उठनी* ', जो एक समयसूचक बिंब है।ऐसे समयसूचक शब्दों को ' *कीगो* ' कहा जाता है और हाइकु में ऐसे शब्दों का प्रयोग हाइकु को श्रेष्ठता प्रदान करता है।
दूसरे बिंब में मैंने पुत्र के विवाह में निभायी जाने वाली एक रस्म *'बाढ़ ढुकाई* ' के विषय में बताने का प्रयास किया है।
         जब विवाहोपरांत नववधु के साथ पुत्र घर में प्रवेश करता है तो सभी बहिनें और बुआ मिलकर द्वार पर ही नव दंपत्ति को रोक कर नेग की माँग करती हैं।और फिर हास-परिहास के बाद  नेग लेकर ही वे भाई  भाभी को अंदर आने देती हैं।
         अब इस पंक्ति को पढ़ने के पश्चात् अनायास ही पाठक की आँखों के समक्ष घर परिवार में हुये विवाहोत्सव और उसमें होने वाले नेगचार और हँसी ठिठोली का दृश्य बनेगा।
यही हाइकु की सार्थकता है। 
         एक उत्तम हाइकु वही है जो पाठक की आँखों के सामने उस दृश्य को ले आये।यही हाइकुकार की सफलता है।
         हाइकु में दोनों बिंब में परस्पर संबंध होना अति अनिवार्य है।
         यहाँ मैंने *'देव उठनी* ' प्रथम बिंब इसलिए रखा है क्योंकि ये विवाह के लिए एक बहुत ही शुभ एवं अबूझ मुहूर्त माना जाता है।अर्थात् यदि किसी भी विवाह योग्य युगल के नाम से विवाह का मुहूर्त न निकल रहा हो तो देव उठनी एकादशी को उनका विवाह संपन्न करा दिया जाता है।अतः इस दिन बहुत विवाह संपन्न होते हैं। इस प्रकार दोनों बिंब में परस्पर गहरा संबंध दिखाई देता है।किंतु दोनों बिंब में परस्पर संबंध होने के साथ ही साथ हाइकु का एक और भी नियम है। वो है ' *कारण*फल दोष* '।
           हाइकु की इस शर्त पर भी यह हाइकु खरा उतरता है जिसके अंतर्गत एक बिंब का कारण फल दूसरे बिंब में न हो। यहाँ  प्रथम बिंब का दूसरे बिंब से संबंध तो है पर रचना कारण फल के दोष से मुक्त है। क्योंकि न तो मैंने यहाँ विवाहोत्सव बिंब रखा है जो कारण फल दोष रचना में उत्पन्न करे। और ऐसा भी नहीं है कि  सिर्फ़ देव उठनी एकादशी के ही दिन विवाह होते हों अतः यह रचना इस दोष से पूर्णतः मुक्त है।
            इस तरह से हाइकु के सभी मानकों पर खरी उतरती इस रचना को हम एक श्रेष्ठ हाइकु की श्रेणी में रख सकते हैं।

          हाइकु  एक प्रकृति आधारित विधा है।हमारे चारों ओर प्रकृति में एक से बढ़कर एक खूबसूरत नज़ारे जिधर भी दृष्टि उठाओ नज़र आ जायेंगे।और बस किसी भी ऐसे ही प्रकृति के नज़ारे पर अपनी कलम चलाईये और रच दीजिये एक अमर हाइकु......

 पहाड़ी पथ~
 वायु वेग से बने
 हिम के रोल।

हाइकुकार----

अनुपमा अग्रवाल

        मेरी यह कृति ऐसी ही प्रकृति की एक अविश्वसनीय घटना से प्रेरित कृति है।
इस कृति में मैंने पहला बिंब लिया है.....
' *पहाड़ी पथ* '
जो कि एक पूर्णतः प्राकृतिक बिंब है और पाठक को याद दिलाता है किसी भी पर्यटन स्थल की जहाँ खूबसूरत पहाड़ी मार्ग होते हैं।
        फिर दूसरा बिंब मैंने लिया है---
         वायु वेग से बने
         हिम के रोल।
जो कि प्रकृति की एक बहुत ही अद्भुत एवं अकल्पनीय घटना की ओर इंगित करता है।
       पहाड़ी स्थलों पर कभी-कभी हिमपात के पश्चात् पवन अपने पूरे वेग से बहती है।और तब पवन के वेग से स्वतः ही उस हिम के रोल जैसे बनकर तीव्र गति से ढलान पर लुढ़कने लगते हैं।
ये एक बहुत ही दुर्लभ दृश्य है। जो बमुश्किल ही दिखाई देता है। इस दृश्य को मैंने अपनी कलम रूपी कैमरे से आप सभी के समक्ष रखने का एक प्रयास किया है।
         हाइकु का एक और नियम है कि हाइकु के दोनों बिंब में परस्पर गूढ़ संबंध होना चाहिए, जो इस कृति में  स्पष्ट है कि पहाड़ी स्थल पर ही ऐसा अद्भुत दृश्य देखने को मिल सकता है और साथ ही साथ एक और नियम कारण फल का....
        यह रचना इस दोष से पूर्णतः मुक्त है।यदि मैं प्रथम बिंब में लिखती ' *ढलानी पथ*' तो निश्चित ही कारण फल होता क्योंकि ऐसा होना ढलान के कारण ही संभव है।परन्तु यहाँ  *'पहाड़ी पथ* ' लिखने से मेरी कृति कारण फल के दोष से बच गयी।
          हाइकु की एक और विशेषता है और वो ये कि हाइकु को पढ़ते ही मुख से एक ' *आह* ' या ' *वाह* ' निकल उठे,अर्थात् एक श्रेष्ठ हाइकु वही है जिसमें ' *आह* ' या ' *वाह* ' के भरपूर पल हों। इस हाइकु में प्रकृति की ऐसी खूबसूरत कलाकारी देखकर स्वतः ही मुख से ' *वाह'* निकल उठता है।
             
           अतः आपको भी यदि कहीं प्रकृति  का कोई ऐसा करिश्मा दिखाई दे जो आपके दिल को छू जाये तो बस फिर देरी किस बात की है....उठाईये कलम और लिख दीजिये एक यादगार.... *'हाइकु*'

अनुपमा अग्रवाल

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