Sunday 2 February 2020

आओ सीखें हाइकु...

        सर्वप्रथम मैं दीपिका पाण्डेय यहाँ पर उपस्थिति देने वाले सभी विद्वज्जन,मार्गदर्शकों एवम् सभी शिक्षार्थियों का हृदयतल से अभिनंदन करती हूँ और इसी के साथ आप सभी के स्नेहाशीष के साथ एक शिक्षार्थी होने के नाते मैंने जो साहित्य की एक अनूठी एवम् सर्वप्रिय विधा हाइकु सृजन शैली के बारे में सीखा व जाना उसी पर अपनी मंदमति अनुसार अपने विचार साझा करने जा रही हूँ।आशा करती हूँ कि मैं अपने हाइकु शैली के अनुभव को आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर सकूँगी।
                 
                  *'हाइकु'* 

       कहा जाता है कि हाइकु एक जापानी विधा है।हाइकु शैली को अनेक रचनाकारों/हाइकुकारों ने समय समय पर अपने ढंग से परिभाषित भी किया है।और ऐसा भी कहा जाता है कि जापानी संस्कृति, परंपरा एवम् विचारों को अल्प समय व अल्प सार्थक शब्दों मे उजागर करने हेतु यह विधा जापानी साहित्य में कारगर साबित हुई।जिसका प्रतिपादन मात्सुओ बाशो ने किया।उन्होंने जीवन दर्शन के अनेक पहलुओं को हाइकु में बखूबी उकेरा।
        कहा जाता है कि एक रचनाकार/साहित्यकार किसी नई साहित्य की विधा को देख आकर्षित हो जाता है और उसकी यही जिज्ञासा उसे बहुत कुछ नया सीखने में मदद करती है।इसी जिज्ञासावश मैंने हाइकु को एक बार पढ़ा और इसे सीखने हेतु प्रयासरत रही।मेरी समझ में हाइकु मात्र सत्रह वर्णों का महज एक खेल था जिसे 5-7-5 के वर्णों में बस पिरोना ही तो था।किंतु मेरी यह धारणा तब गलत साबित हुई जब मुझे बहुत से गुणीजनों एवम् बुद्धिजीवियों का साथ मिला और जिनके सान्निध्य में, मैंने हाइकु सृजन करना आरंभ किया व बहुत सी रोचक जानकारियाँ भी प्राप्त हुईं और तब मैंने जाना कि हाइकु विधा मेरी समझ से बहुत ऊपर है।यह महज 5-7-5 वर्णों का क्रमबद्ध खेल नहीं अपितु *यथार्थ पर आधारित पद्य* *साहित्य की अतुकांत लघु काव्य* *कृति है* ।
        यदि हम इसकी सूक्ष्मता को गहनता से अध्ययन करें तो पायेंगे कि *हाइकु कल्पना से परे हमारे* *आज के परिवेश का प्रकृति से* *संबंध दर्शाती एक यथार्थपरक* *एवम् बोधगम्य कृति है।* यह एक ऐसी अद्भुत कृति है जिसके माध्यम से हम अपने अनुभवों एवम् प्रकृति में घटने वाली घटना को मात्र सत्रह वर्णों के प्रयास से उकेर सकते हैं।अन्य शब्दों में.....
 *मात्र सत्रह वर्णों(5-7-5) के मेल* *से बनी यह हाइकु कृति* *उत्कृष्ट,मर्मस्पर्शी एवम् सटीक* *कृति है* ।
इस विधा की विशेषता जो मुझे आकर्षित करती है वो यह है कि हाइकु विधा दोनों तरह के व्यक्तित्व स्वभाव अंतर्मुखी(Introvert) और बहिर्मुखी(Extrovert) के लिये उपयुक्त विधा है। जिसके माध्यम से वे अपने भावों को पाठक तक रुचिकर ढंग से अल्प शब्दों में बखूबी पहुँचा सकते हैं।इसमें मात्र रचनाकार अपने भावों की अभिव्यक्ति करता है जिसका पाठक अपने अनुसार अर्थ भी ग्रहण कर सकते हैं।इसमें पाठक को दिये गये हाइकु से स्वयं के अनुसार अर्थ निकालने की पूरी स्वतंत्रता होती है।तो जैसा कि अब आप सभी को हाइकु के बारे में काफी कुछ समझ आ चुका होगा..... तो आईये अब हम एक दृष्टि हाइकु के नियमों पर डालते हैं।फिर हाइकु सृजन करने का प्रयास करतें है।

            *हाइकु के नियम* 
           –––––––––––
        हाइकु सृजन के कुछ सहज,सरल नियम जो मैंने गुणीजनों के सान्निध्य में सीखे,इस प्रकार हैं.....

1.दो वाक्य, दो स्पष्ट बिंब हो।
2.किसी एक बिंब में प्राकृतिक का होना अनिवार्य है।
3.दो वाक्य, पाँच में विषय और बारह में बिंब वर्णन हो सकता है।
4.स्पष्ट तुलनात्मक न हो।
5.कल्पना व मानवीयकरण न हो।
6.वर्तमान काल पर हो।
7.दो वाक्य,विरोधाभास भी हो सकते हैं।
8.एक पल की अनुकृति, फोटोक्लिक हो।
9.दो वाक्यों के विभाजन हेतु कटमार्क अनिवार्य है।
10.दो वाक्य ऐसे रचें जाये कि वे आपस में कारण/फल न बनें।
11.तुकबंदी से बचें।
12.पाँच वाले हिस्से में क्रिया/क्रियापद व विशेषण न हो
13.रचना में बिंब व शब्दों का दोहराव न हो।
14.बारह वाले हिस्से में एक पूर्ण वाक्य हो।
15.बिना बिंब के वर्तनी न हो।
16.पंक्तियां स्वतंत्र न हो।
17.अनावश्यक शब्दों से बचा जाए।
18.विधा प्रकृति मूलक है,यह किसी धर्म, व्यक्ति विशेष पर आधारित न हो।
19.हाइकु बनने के बाद हाइकु सृजन में आह या वाह के पल का समावेश अवश्य हो।
   अत:अब इन नियमों को ध्यान में रखते हुए हम हाइकु सृजन की सरल विधि जानेंगे।
        
        *हाइकु सृजन विधि* 
  ------------------------------------
               उपर्लिखित नियमों को ध्यान में रखते हुए अब हम हाइकु सृजन करते हैं।तो सबसे पहले हमें अपने आस पास किसी ऐसी घटना को देखना,पहचानना होगा जिसका संबंध प्रकृति से अवश्य हो। ताकि हमें पाँच वाले बिंब के लिये एक सटीक प्राकृतिक बिंब मिल सके ,जो कि हमारा नियम भी कहता है......

 *उदाहरण 1* .

            जैसा कि मैंने एक दृश्य यह देखा था कि एक घोड़ा द्वार पर खड़ा है और वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति चने का पौधा लगाने हेतु अंकुरित चने निकालता है।तो आपको यहाँ दो बातें देखने को मिलेंगी जो कि हाइकु के नियम के अनुसार उपयुक्त भी है।
1.घोड़ा(प्राकृतिक बिंब)द्वार पर है।
2.घोड़े के साथ चने का गहरा संबंध भी है।
          तो आइये अब हम (5-7-5)के नियम को अपनाते हुए हाइकु सृजन करते हैं।
👉द्वार पे अश्व(पाँच वर्ण)और एक वाक्य भी हो गया।तो अब हम इसमें कटमार्क भी लगा देते हैं।
 *द्वार पे अश्व~* 
         अब हम दूसरा वाक्य जिसमें अंकुरित चने का बीजारोपण होना है को बारह वर्णों की सहायता से बारह वाले बिंब में रखते हैं.....
 
द्वार पे अश्व~
अंकुरित चने का
 बीजारोपण ।

हाइकुकार-----

दीपिका पाण्डेय----

      तो देखा आपने हमारा हाइकु बन गया और साथ में हम इस हाइकु पर ध्यान दें तो पायेंगे कि यह वाह के पल को दिखा रहा है।क्योंकि जहाँ एक ओर घोड़ा खड़ा है तो वहीं उसके समक्ष चने का बीजारोपण हो रहा है।तो आप समझ सकते हैं कि स्थिति क्या मोड़ लेने वाली है। यहाँ मानव का पशु के प्रति प्रेेेम की भावना को रखने का प्रयास किया गया है। जो वाह के क्षण को मजबूती प्रदान कर रहा है।
        इसी प्रकार अब हम एक और सुंदर, सटीक व बोधगम्य हाइकु को देखते हैं।
             यह हाइकु, आदरणीय संजय कौशिक 'विज्ञात'जी द्वारा रचित है। जिसे हम समझने का प्रयास करते हैं।

 ओले की वृष्टि~
 बजायी माँ चिमटा
 उल्टे तव्वे पे।
 
      हाइकुकार--

  संजय कौशिक 'विज्ञात'
 
          आप देखेंगे कि ओले की वृष्टि यहाँ एक मजबूत प्राकृतिक बिंब है।और यही हाइकु का आधार तत्व भी है जिसे सहर्ष स्वीकारा जा सकता है।
        अब बारह वाला बिंब ऐसा बनाना है जिसका पाँच वाले बिंब *'ओलेकी वृष्टि* ' से घनिष्ठ संबंध हो।इसलिए इससे संबंधित दूसरा बिंब इस प्रकार रखा गया....
 बजायी माँ चिमटा
 उल्टे तव्वे पे।
 
                      यदि अब हम इस बिंब को देखें तो पायेंगे कि इसका पहले वाले बिंब से घनिष्ठ संबंध है।यहाँ पर प्राकृतिक आपदा को दर्शाने का प्रयास किया गया है।तवे को उल्टा रखना अपशकुन या कहीं कहीं परम्परा में मृत्यु का सूचक भी माना जाता है।जो कि *आह के क्षण* दिखाता है।और कहीं कहीं यह भी माना जाता है कि तवे को उल्टा रखने से उपलवृष्टि थम जाती है या फिर छाए बादल को सूचना देना कि हमें हमारी गलती के लिये क्षमा किया जाए और इस उपलवृष्टि को रोका जाये।तो जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि पाठक इस दृश्य को अपनी समझ अनुसार भी अर्थ ग्रहण कर सकता है।जिससे हमें हाइकु को समझने में और भी मदद मिलेगी।और यही हाइकु की सुंदरता भी है।
        तो आईये इस हाइकु को समझने के बाद अब हम एक अन्य हाइकु जो कि स्वरचित है,को समझने का प्रयास करते हैं......

 कार्तिक सांझ~
 गंडक तट पर
 मतंग/कुंजर झुंड।

हाइकुकार---

दीपिका पाण्डेय----

                        यहाँ  प्रथम पाँच वाले बिंब में एक *समयसूचक* शब्द जिसे *ऋतुसूचक* शब्द भी कहा जाता है और इसी को ' *कीगो* ' भी कहा जाता है,को देख रहें है।यह एक मज़बूत प्राकृतिक बिंब है जो कि हाइकु में  सर्वदा मान्य है।साथ ही यह एक फोटोक्लिक भी है अर्थात् यह गतिशील दृश्य नहीं है।इसका बारह वाले बिंब से संबंध यह दर्शाता है कि बिहार में एक गंडक नदी बहती है जहाँ सोनपुर का मेला कार्तिक मास में आयोजित किया जाता है, उसको दर्शाया गया है।यहाँ पशुओं, विशेषकर हाथी की प्रदर्शनी लगाई जाती है जबकि बहुत पहले इस अवसर पर पशुओं को इस मेले में बेचा भी जाता था लेकिन अब इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। तो यह दृश्य पाठक को काफी कुछ सोचने को मजबूर कर सकता है और पाठक अपनी समझ अनुसार इसका अर्थ ग्रहण कर सकता है।
 
         *नोट :*             
                      कार्तिक मास एक महीना है इसलिए हाइकु नियमानुसार दोहराव से बचने हेतु मैंने कार्तिक मास की जगह *कार्तिक सांझ* शब्द का प्रयोग किया।और यह भी स्मरण रहे कि गंडक नदी का प्रयोग मैंने इसलिए ही प्रयोग किया क्योंकि यह मेला वहीं आयोजित किया जाता है।
          हालाँकि इसका धार्मिक महत्व भी है।लेकिन मैंने इसे हाइकु के नियमानुसार धार्मिक से परे रखकर सृजन किया है।

           तो आशा करती हूँ कि अब आपको काफी हद तक हाइकु सीखने में मदद मिली होगी।
     इसी प्रकार आप भी प्रदत्त नियमों को ध्यान में रखते हुए हाइकु सृजन करें।
         उपरोक्त हाइकु के नियम व विधि समझने के बाद एक शिक्षार्थी होने के नाते एक प्रश्न मन में आना स्वाभाविक है कि क्या हाइकु एक जापानी विधा ही है?क्या इस विधा को भारतीय साहित्य की अनमोल विधा में नहीं देखा गया?ऐसे अनेक प्रश्न हो सकते हैं जो मन को उद्वेलित करतें है तो इसको समझने के लिये यदि हम आज भारतीय  साहित्य के वार्णिक छंद पर प्रकाश डालें तो पायेंगे कि शिखरिणी व मन्दाक्रांता छंद एक ऐसी भारतीय साहित्य विधा है जिसकी प्रत्येक पंक्ति मात्र सत्रह वर्ण में लिखी गई है जबकि संपूर्ण हाइकु सत्रह वर्ण में निहित है।और वहीं मशहूर विधा 'कह मुकरी' में भी दो बिंबों को देखा जा सकता है।हालाँकि हाइकु में पाठक स्वतंत्र है अर्थ के विचार पर लेकिन 'कह मुकरी' में स्पष्ट कर दिया जाता है कि किस विषय को लेकर बात कही गई है।और यह गूढ़ जानकारी मुझे हाइकुकार आदरणीय संजय कौशिक 'विज्ञात' जी की कृतियों से मिली।जिसमें उन्होंने जापानी हाइकु को भारतीय विधा में देखने का बखूबी प्रयास किया है।अतः यह कहा जा सकता है कि यदि हम भारतीय साहित्य की अनछुई विधा जिसमें मात्रिक/वार्णिक/मुक्त छंद भी शामिल हैं, को देखें तो हम खुद को हाइकु के उद्भव में  असमंजस में  ही पायेंगे।ऐसी अनेक संस्कृत साहित्य की कृति भी देखने को मिल सकती हैं जो हाइकु की परिचायक हों।

                  हालाँकि हाइकु की लोकप्रियता को देखते हुए हाइकु पहेली का भी प्रचलन शुरू हो गया है ताकि इसकी रोचकता को शिष्टता के साथ बरकरार रखा जाये।       अतः कुल मिलाकर यह कहना तर्कसंगत होगा कि, *हाइकु यथार्थ पर आधारित सहज,सटीक व पर्यावरण से खुद को जोड़ने का सुअवसर प्रदान करती है।* और अंत में जिज्ञासावश एक प्रश्न आप सबके समक्ष रखना चाहूँगी कि क्या भारतीय साहित्य विधा में कोई ऐसी विधा आप जानते हैं जो हाइकु की परिचायक है?
        आप सभी के स्नेहाशीष के साथ  यह लेख मैं प्रदत्त प्रश्न के साथ यहीं समाप्त करती हूँ।

धन्यवाद...
शिक्षार्थी
दीपिका पाण्डेय।

6 comments:

  1. वाह बेहतरीन, दीपिका आपकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है। हाइकु के विषय में बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी दी, आपके सुंदर और सार्थक सृजन ने इस विधा को और भी रोचक बना दिया। बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐💐💐

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  2. कमाल का लेखन है आपका दीपिका👌👌👌👌👌👌नवांकुरों के लिए आपने इस विधा को बहुत ही सहजता से ग्राह्य बना दिया है।और प्राचीन हिन्दी साहित्य से जोड़ कर हिन्दी साहित्य के महत्व को भी खूबसूरती के साथ बता दिया।शानदार लेख👏👏👏👏👏👏👏👏

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  3. बहुत ही सुंदर लेख दीपिका जी 👌 उदाहरण भी बहुत अच्छे चुने....बहुत कम समय में इस विधा को बहुत बारीकी से समझा आपने उसके लिए निश्चित ही आप बधाई की पात्र हैं 💐💐💐 आपका यह लेख नवांकुरों के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होगा 👌 ढेर सारी शुभकामनाएं 💐💐💐💐

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  4. बहुत सुंदर लेख, सुंदर जानकारी हाइकु पाठकों तक पहुँच रही है। दीपिका जी आपका प्रयास सार्थक रहा है। उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास भी है कि हाइकु लेखन में आपकी कलम बहुत शानदार चली है। जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। जितनी सरलता से आपने हाइकु को समझा है, पहचाना है, उतनी ही सरलता से आपने सृजन भी कर दिखाया है। आपके माध्यम से हाइकु सृजन की भविष्य में भी अपार संभावनाएं देखी जा रही हैं, हाइकु लेखन को लेकर अग्रिम बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐💐💐

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  5. बेहद उम्दा विश्लेषण बहन.... बहुत ही आसान तरीके से आपने हाइकु के गूढ़ नियमों को परिभाषित किया है, नवागतों के लिये काफी ज्ञानवर्धक लेख... शुभकामनायें

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