*हाइकु की यात्रा और मेरा दृष्टिकोण*
सर्वप्रथम प्रस्तुत है एक मनहरण घनाक्षरी जिसके माध्यम से हाइकु विधा को मैंने सरलता से समझा और पहचाना है। उन्हें नियमों के माध्यम से समझाने का प्रयास करती हूँ .....
*मनहरण रचना*
प्राकृतिक मूल विधा,
हाइकु निराली कही,
ठोस दृश्य देखकर,
बिम्ब में सजाइये।
तुकबंदी क्रियापद,
विशेषण व वर्तनी,
बिम्ब जो स्वतंत्र बने,
कथ्य से बचाइये।
पर्व, प्रथा,वर्तमान,
एकपल अनुकृति,
स्पष्ट तूलना से बचें,
यथार्थ दिखाइये।
कारण का फल दोष,
मानवीकरण छोड़,
योजक का चिन्ह लगा,
हाइकु बनाइये।
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
हाइकु कविता अनुभूति के चरम क्षण की कविता है। हाइकु के जानकारों का मानना है कि इस विधा के बीज प्राचीन काल में भारत की भूमि पर ही रोपे गए थे। पर हाइकु को काव्य-विधा के रूप में प्रतिष्ठा प्रदान की मात्सुओ बाशो (१६४४-१६९४) जापान ने। बाशो के हाथों सँवरकर हाइकु १७ वीं शताब्दी में कविता की युग-धारा के रूप में प्रस्फुटित हुआ। आज हाइकु जापानी साहित्य की सीमाओं को लाँघकर विश्व-साहित्य की निधि बन चुका है। कविवर रवीन्द्र नाथ ठाकुर जी द्वारा यह विधा भारत में हाइकु के नाम से लाई गई थी। आधुनिक काल में हिंदी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में 'हाइकु' एक अनोखी और नूतन विधा है। हिंदी में हाइकु खूब लिखे जा रहे हैं और अनेक संग्रह तथा पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हो रहे हैं। वर्तमान काल की सबसे अधिक चर्चित विधाओं में हाइकु अपने विशेष स्थान को मजबूती के साथ प्रकट कर रहा है।
हाइकु विधा को पढ़ने का प्रथम अवसर मुझे प्राप्त हुआ तब इस विधा के लघु स्वरूप के चमत्कृत आकर्षण ने अपनी ओर आकर्षित किया। यह बात उस समय की है जब हमने ब्लॉग जगत में पदार्पण किया था। तब गूगल प्लस पर अपनी कम्युनिटी में आदरणीया कुसुम कोठारी जी के हाइकु को पढ़ा। हाइकु बहुत सुंदर थे और उन्होंने लिखने के लिए प्रेरित भी किया। हमने भी सोचा यह तो दुनिया की सबसे आसान विधा है सिर्फ 3 पंक्ति और 17 वर्ण .... इतने ही तो लिखने है। संरचना को जानकर समझने के पश्चात स्वाभाविक है कि अब हाइकु को मेरी कलम से प्रथम बार प्रकट होना था सो हुआ भी .... प्रस्तुत है प्रथम हाइकु ....
सबसे अच्छा
एकतरफा प्यार~
जीत न हार
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
मन में हर्ष की अनुभूति थी, जीवन के प्रथम हाइकु से एक नई विधा और नई यात्रा का श्रीगणेश हो चुका था। परंतु बहुत ही जल्द पता चला कि यह विधा प्रत्येक कलमकार या रचनाकार के लिए इतनी सहज और सरल नहीं है। हमारे हाइकु नुमा रचनाओं की तरीफ तो बहुत हुई पर हमें संदेह रहा कि ये हाइकु नही है।तब इसी लिए हमने इस विधा को लिखने का विचार त्याग दिया था। पर आदरणीया पम्मी सिंह जी के माध्यम से मुझे हाइकु व्हाट्सएप्प ग्रुप " हाइकु की सुगंध" से जुड़ने का अवसर मिला तब पता चला कि यह विधा हमारी सोच से बहुत ज्यादा आकर्षक और आनंद की अनुभूति प्रदान करने वाली है। जो मेरे अच्छे समय ने आदरणीय जगत सर, विज्ञात सर, सनन सर और ऋतु जी के मार्गदर्शन में मुझे इस विधा की अन्य बारीकियां और गहराई को समझने का अवसर दिया। जिसका प्रभाव न सिर्फ इस विधा पर बल्कि हर विधा पर दिखा। हाइकु यह एक ऐसी विधा है जो कम शब्दों में ज्यादा बोलना सिखाती हैं। बिम्ब को देखने और समझने का एक अलग दृष्टिकोण देती है। अच्छे से अच्छा रचनाकार भी जब किसी नई विधा को सीखता है तो शुरू में समझने में कठिनाई अवश्य आती ही है लेकिन कहते हैं कि लगन सच्ची हो तो कुछ भी असम्भव नही .... हाइकु सीखना हमारे लिए ऐसा ही एक ज्वलंत उदाहरण रहा है l
हमारी नजर में हाइकु उस शैतान ज़िद्दी बच्चे के जैसा है जिसे जरा सी भी कमी बर्दाश्त नही होती। जो हमसे अपनी हर बात अपनी शर्तों पर मनवाता है। और यही उसकी विशेषता भी है जो उसके मूल स्वभाव को बदलने नही देती l हमारे जैसे बातूनी इंसान के लिए 3 लाइन और 17 वर्णों में बड़ी बात कहना आसान काम नही था। सोने पर सुहागा प्राकृतिक बिंब ..... एक महीना तो हमारे हाइकु कथन और प्रकृतिक बिंब के अभाव में ही उलझ कर चयन से वंचित रहे l कभी कभी लगता था कि जितना समय हम इस विधा को दे रहे हैं उतने समय में तो न जाने कितनी कावितायें और कितनी गज़ल लिख चुके होते ... पर छुटकू से हार जायें ये भी तो सही नही थाl मेरे विचार से हाइकु अन्य विधाओं की अपेक्षा एक तो बालक ऊपर से मूक बधिर ....यह इस लिए क्योंकि हाइकु में कथन अमान्य है, शायद वो सुनता नही।हर बात दृश्य मतलब इशारे में बतानी पड़ती है अगर इशारा गलत हुआ तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है। अब पड़ोसी का बालक है तो क्या हुआ अब अपनी धरती पर है और अपनी भाषा ने अपनाया है तो उसका ध्यान तो रखना ही पड़ेगा। हमें ही इसे समझना था इस लिए बार बार नियम और चयनित हाइकु को पढ़ते और समझने की कोशिश करते की हमारे हाइकु में क्या कमी हैl फिर हमने विचारों पर जोर दिया .... हाइकु सही हो या ना हो पर वो विचार दमदार होना चाहिए जो हम कहना चाहते हैं। परिणाम यह निकला की उसके बाद तो रचनायें बहुत तेजी से चयनित हुई क्योंकि रचना में कुछ विशेष है। तो संशोधन करने में भी आनंद आता है। अच्छे परिष्कार के सुझाव मिलते भी हैं और गहन चर्चा के अवसर पर अच्छे विचार सूझते भी हैं।
17 नियमों में बंधकर तीन पंक्ति में 17 वर्ण लिखना वो भी ऐसे प्राकृतिक बिम्ब जिसमें आह या वाह का पल अनिवार्यता के साथ विशेष स्थान रखता हो ऐसा लिखना सरल नही था फिर भी अपनी समझ अनुसार हमने जो समझा है आपको समझाने का प्रयास करती हूँ.....
*1. दो वाक्य, दो स्पष्ट बिम्ब हो।*
वाक्य संयोजन ऐसा हो जो दो दृश्यों (बिम्ब) का निर्माण करे। दो स्वंत्रत बिम्बों के मिश्रण से ही एक पूर्ण दृश्य उभरता है।यदि 2 बिम्ब न हुए तो रचना कथन मात्र रह जायेगी और अपनी बात पाठक तक नही पहुंचा पाएगी। बिम्ब लिखते समय वचन दोष,लिंग दोष और शब्द बिखराव न हो इस बात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है।
*2. किसी एक बिम्ब में प्राकृतिक का होना अनिवार्य है।*
किसी भी दृश्य को पूर्ण करने के लिए स्थान,समय,वातावरण इनका होना आवश्यक है,इसी लिए हाइकु में प्राकृतिक बिम्ब का होना अनिवार्य है।बिना प्राकृतिक बिम्ब के रचना जीवंत नही लग सकती। जिस दृश्य को आप ने देखा उसे पाठक तक पहुंचने के लिए उस समय परिस्थितियां कैसी थी जिस वजह से यह दृश्य मार्मिक लगा यह बताना अनिवार्य। मौसम ,ध्वनि, प्रकृति में हो रहा परिवर्तन।
*3. दो वाक्य, 5 में विषय और 12 में बिम्ब वर्णन हो सकता है।*
इस नियम का इस्तेमाल ज्यादातर त्योहार या किसी विशेष अवसर को दिखाने के लिए किया जाता है। जिसमें 5 वाले भाग में विषय और 12 में वर्णन हो सकता है।शब्द संख्या कम होने के कारण यह नियम सबसे उपयोगी और सरल है जिसमें पर्व के प्रतीक की जगह सीधा पर्व का उल्लेख कर सकते हैं।
*4. दो वाक्य, विरोधाभास भी हो सकते हैं।*
इस नियम के अंतर्गत दो दृश्यों के बीच का अंतर दिखा सकते हैं।
और इस से न तूलना होती है न कारण फल दोष दिखता है। पर विरोधाभास अलंकार का प्रयोग करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है कि बिम्ब कथन, कल्पना और मानवीकरण से बचे क्योंकि हाइकु सिर्फ यथार्थ और ठोस बिम्ब का ही समर्थन करता है।
*5. स्पष्ट तुलनात्मक न हो।*
यदि 2 बिम्बों के बीच तूलना की जाए तो उस से दोनों बिम्बों का प्रभाव नष्ट होकर मात्र तुलना ही रह जाती है और पाठक तक कोई ठोस बिम्ब नही पहुँचता। उपमा और उपमेय से भी बचना है।
*6. कल्पना व मानवीयकरण न हो ।*
हाइकु में सिर्फ यथार्थ ही लिखा जाता है। तो कल्पना और मानवीकरण का तो कोई स्थान ही नही है। यह बिम्ब को सत्य से दूर ले जाता है और बिम्ब में भ्रम उत्पन्न करता है जो हाइकु में मान्य नही।
*7. वर्तमान काल पर हो।*
एक पल की अनुकृति वर्तमान काल में ही संभव है। भविष्य और भूतकाल दोनों कल्पना कर के लिखे जाते है।अगर यथार्थ देखना है तो वर्तमान काल को ही देखना है।
*8. एक पल की अनुकृति, फोटोक्लिक हो।*
तस्वीर एक पल की ही ली जा सकती है। दूसरा पल आते ही वो वीडियो का दृश्य बन सकता है फ़ोटो नही।मन को छूने वाला वो एक पल ही दिखना चाहिए जो दृश्य का चरम बिंदू है।
*9. कटमार्क (दो वाक्यों का विभाजन) चिन्ह हो।*
बिम्ब को स्पष्ट करने के लिए कट मार्क अनिवार्य ताकि सही बिम्ब पाठक तक पहुँचे।गलत कट मार्क रचना का भाव बदल देता है। बिना कट मार्क पाठक बिम्ब को अपने हिसाब से विभाजित करेगा और शब्दों का अर्थ बदल जायेगा।
*10. दो वाक्य ऐसे रचे जाएँ जो एक दूसरे के पूरक न होकर कारण और फल न बने।*
दो बिम्बों के मध्य क्यों? लगाने से अगर एक बिम्ब का उत्तर दूसरा बिम्ब है तो कारण फल दोष है। हाइकु का उद्देश्य कारण फल या कुछ भी कह कर बताना नही बल्कि संकेत देकर समझने के लिए उकसाना है।
*11. रचना में बिम्ब या शब्दों का दोहराव न हो।*
वर्णो की संख्या बहुत कम है शब्द दोहराव रचना को कमजोर बनाते हैं। बिम्ब दोहराव से भी बचें क्योंकि एक एक शब्द मूल्यवान है अगर कम शब्दों में गहरी बात कहनी है। बिम्ब जितने नए और अर्थ पूर्ण होंगे उतना ही हाइकु को प्रभावी बनाएंगे।
*12. तुकबंदी से बचें।*
दो यथार्थ बिम्ब दिखाने है। दृश्य गीत नही जिसे सुर में गाया जाए।हाइकु तो मौन है बोलता नही तो गायेगा क्या।
*13. 5 वाले हिस्से में क्रिया/क्रियापद और विशेषण न हो।*
दृश्य मार्मिक है तो स्वयं विशेष है उसे विशेषण की क्या आवश्यकता। क्रिया एक पल में नही हो सकती इस लिए अमान्य है। हँसना,बोलना,चलना कथन की श्रेणी में आता है उसे दृश्य बिम्ब में लाना आवश्यक है जैसे रोना कहने के स्थान पर 'नैनों में नीर' लिखने से कथन दृश्य रूप में उभरता है।
*14. 12 वाले हिस्से में एक वाक्य हो।*
दो बिम्ब ही हैं तो 17 वर्ण 5 और 5+7 इसी तरह विभाजित होंगे अन्यथा 3 बिम्ब बनेंगे। दो दृश्य बनाने के लिए यह जरूरी है कि प्रथम बिम्ब 5 वर्ण का हो और 5 व 7 मिलकर एक वाक्य बने। पर ध्यान रहे कि कथन स्पष्ट हो और शब्दक्रम सटीक हो।
*15. बिना बिम्ब के केवल वर्तनी न हो।*
जो दृश्य कह कर बता रहें है उसे दिखाना चाहिए बिम्ब के माध्यम से अन्यथा कथन होगा बिम्ब नही।
*16. पंक्तियाँ स्वतंत्र न हों।*
सभी पंक्तियाँ स्वतंत्र होंगी तो 3 बिम्ब बनेंगे एक 5 का दूसरा 7 का तीसरा 5 का। सही भाव पाठक तक नही पहुँचेगा। 2 लोगों की बात आराम से सुनी जाती है पर 3 बोलें तो किसकी सुनें बस शोर होता है।
*17. विधा प्रकृति मूलक है, किसी धर्म या व्यक्ति विशेष न हो।*
हाइकु का उद्देश्य बहुत व्यापक है। व्यक्ति विशेष उसमें नही आते। किसी को आहत करना या उँगली उठाना इन सभी विवादों से दूर की विधा है। जिसका एक स्वच्छ और सार्थक उद्देश्य है। भावनाओं को जागृत करना विचार करने के लिए उकसाना।यथार्थ दिखाना।
एक उदाहरण :-
वन में पड़े
बदन के टुकड़े-
सेल्फी की होड़
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
इस हाइकु के माध्यम से मैने मिट रही मानवीय संवेदनाओं को दिखाने का प्रयास किया है। आधुनिक युग में मनुष्य आभासी दुनिया से इस तरह जुड़ा है कि यथार्थ में घटित होने वाली किसी भी घटना से विचलित नही होता। बड़ी से बड़ी दुर्घटना क्षणिक दुःख भले दे पर दूसरे ही क्षण वह पूर्ववत हो जाता है। अपने सुख-दुःख स्वजनों के साथ बाँटने से ज्यादा महत्वपूर्ण सोशल मीडिया में साझा करने में लगा रहता है। मरने वाले के प्रति दुःख जताने के बजाय उसकी फोटो और वीडियो बनाने की जो होड़ दिखती है उसने मुझे इस हाइकु को लिखने के लिए प्रेरित किया। प्रयास कितना सफल रहा यह तो आप बताएंगे क्योंकि हाइकु ऐसी विधा है जिसे लिखता हाइकुकार है पर पूर्ण पाठक करता है।
हाइकु हर व्यक्ति नही लिख सकता क्योंकि उसे लिखने के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। पर यह भी उतना ही बड़ा सत्य है कि है कि हाइकु को समझने के लिए पाठक के पास भी बिम्ब समझने की क्षमता होनी अनिवार्य है। अन्यथा उसे इन 17 वर्णों में शब्द संयोजन से अधिक कुछ नजर नही आएगा।
मुझे लगता है हाइकु की रचना प्रकृति की सुंदरता और उसमें हो रहे परिवर्तन के चित्रण को दिखाने के लिए हुई होगी। प्रकृति के मूल स्वभाव की समझ का होना और उसमें हो रहे परिवर्तन के क्षणों की अनुभूतियों को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना उद्देश्य रहा होगा। हम भाग्यशाली हैं जो इतनी गंभीर और गूढ़ विधा को सीखने का अवसर मिला इसके लिए मैं 'हाइकु की सुगंध' पटल का आभार व्यक्त करती हूँ। इस मंच ने ज्ञान के साथ साथ अनुराधा जी, अभिलाषा जी, अनुपमा जी, निधि जी, पाखी जी, वंदना जी, दीपिका जी, अनिता जी जैसी सखियाँ दी। कुसुमजी, अनकही जी, इन्दिरा जी, श्वेता जी इन्होंने भी समय समय पर मार्गदर्शन किया इनका भी आभार। आदरणीय विज्ञात सर जिन्होंने इस मंच को बनाया, जगत सर जिन्होंने इस मंच को सजाया और संवारा, सनन सर, ऋतु कुशवाह जी, देव टिंकी होता सर, पुरोहित सर जिन्होंने निखारा इनका विशेष आभार। हमने क्या पाया शब्दों में बताना मुश्किल है पर उसके बदले में धन्यवाद बहुत छोटा शब्द है।
एक उदाहरण और देखें आदरणीय बाबूलाल शर्मा बौहरा' जी का एक हाइकु मेरी दृष्टि से .....
बँधा युवक
ग्राम्य चौपाल पर~
नँगाड़ा ध्वनि
बाबूलाल शर्मा 'बौहरा'
*बँधा युवक*
*ग्राम्य चौपाल पर~*
यह एक बहुत ही मार्मिक दृश्य है जिसमें भरपूर आह के पल हैं। दृश्य से स्पष्ट है कि युवक को अपराधी की तरह बांधा गया है जो कि सामाजिक कुरीतियों का प्रतीक है। न्याय व्यवस्था के होते हुए भी इस तरह का दृश्य वर्तमान परिस्थितियों में भी देखने को मिलता है ....बहुत ही सार्थक बिम्ब 👌👌👌
*नँगाड़ा ध्वनि*
17 नियमों के अंतर्गत सुंदर सटीक पूर्ण बिम्ब है।इस बिम्ब में उन्होंने इन्द्रिय बोध गम्य बिम्ब का सुंदर प्रयोग किया है।
प्रथम बिम्ब तो मार्मिक था ही पर द्वितीय बिम्ब ने उसमें चार चाँद लगा दिए ....आह के पल को दुगना बना दिया। बंधे हुए युवक के सामने नगाड़ों का बजना ....बहुत ही मार्मिक दृश्य जो कि पाठक को सटीक भाव तक पहुंचाने में सफल रहा। एक तरफ किसी का जीवन दाँव पर है तो दूसरी तरफ नगाड़े की ध्वनि वातावरण को और गंभीर बना रही है।
एक उदाहरण आदरणीया ऋतु कुशवाह जी का देखें
नन्ही कब्र पे
उड़ती तितलियां-
जंगली पौधे
बिल्ली कब्र पे
उड़ती तितलियां-
जंगली पौधे
ऋतू कुशवाह 'लेखनी'
मेरा उद्धव बिल्ली का बच्चा हैं। उसे मेरी अपनी संतान समझिये। उसकी मृत्यु (7/7/2019) 4 वर्ष की आयु में हो गयी। उसे हमने घर के सामने ही दफनाया है।वहाँ पर बारिश की वजह से जंगली पौधे आसपास उग गए है और बहुत बड़े हो गए है उनमें पुष्प होने के कारण कई सारी तितलियां मंडराती रहती है उसकी कब्र पर
पिछले 4 सालों से बारिश के बाद जब उस स्थान पर पौधे उगते थे और छोटे छोटे पौधे में फूल आते थे तो उन पर कूद कूद कर उन तितलियों को पकड़ लेता था न वहां फूल होते थे न पौधे बस मेरा पुत्र होता था और उसकी अड़खेलिया। वह अब वो सो रहा है तो वही पौधे कितने बड़े हो गए है और वो तितलियां जैसे उसके ऊपर उड़ कर उसे चिड़ा रही है। खेर, ये मेरी कल्पना और अपना भाव है ।
ये रचना में नही है । पाठक इसे जैसे चाहे वैसे देखे। मैंने 2 रचनाये इसलिए प्रेषित की है क्योंकि मुझे आदत नही है अपने बेटे को बिल्ली कहने की । मैं वो स्वीकार नही पा रही थी इसलिए पहली वाला रचना का निर्माण हुआ । दूसरी वाला रचना भाव स्पष्ट करने के लिए हैं। इसका दूसरा अर्थ यह भी निकल सकता है कि जीवित बिल्ली के सामने तितलियां आती भी नही और मृत की ऊपर तांता लगा हुआ है।
एक उदाहरण आदरणीय नरेश जगत जी का देखें ....
*मेड़ किनारे*
*कर्क घोंघे की अस्थि--*
*दवा पोस्टर।*
नरेश जगत
इस कृति में आह के पल समाहित हैं, जबकि यह दिखने में बहुत ही साधारण सा दृश्य है। क्यों नहीं करेंगे प्रश्न इस पर, स्वाभाविक है। यह कृति दिखने में बहुत ही साधारण है परंतु उतनी ही संदेशात्मक और मार्मिक भी है। इसीलिए यह विधा आसान नहीं... क्योंकि दिखने में कुछ और, होता कुछ और ही है। आईये इसे समझने का प्रयास करें...
हम अपने बचपन में जाएँ तो किसी भी रासायनिक पदार्थों का उपयोग देखा नहीं जा रहा था, जिन्दगी खुशहाल थी। हाँ थोड़ी आर्थिक कमजोरी थी परंतु स्वच्छ खाद्य पदार्थ और स्वस्थ्य काया थी, प्रकृति सेवा-संरक्षण की भावना थी लोगों में इसलिए खुशहाली थी। आज रासायनिक दवा और खाद का उपयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है और आज भरमार उपयोग में है...जिसकी वजह से पूरी प्रकृति का संतुलन बिगड़ता बन रहा है। चूँकि प्रकृति का कोई भी एक हिस्सा अगर टूट जाए तो असंतुलित होगा ही, और अंततः जीवन की समाप्ति। इसी दुखद पल को अपने में लिये यह असामान्य कृति, प्रथम दृश्य बिम्ब... *मेड़ किनारे कर्क घोंघे की अस्थि* यह एक सामान्य नज़राना हो गया है आजकल खेतों में। जब-जब दवाओं का छिड़काव होता है तब-तब खेतों में यह दृश्य आम है। जिसकी सूचनार्थ खेतों में जो दवाई छिड़काव होते हैं उक्त दवा का पोस्टर भी लगा दिया जाता है ताकि गलती से कोई खेत के पानी का उपयोग न करे, इसलिए... *दवा पोस्टर (दूसरा सदृश्य बिम्ब)* जिसके चलते सारे हितैषी और अहित करने वाले सारे प्राणी मारे जाते हैं। ये आभास नहीं लोगों को कि उस विनाशकारी तत्व के अंश खेती में पल रहे खाद्य पदार्थों के जरीए हमारे शरीर में भी प्रवेश कर जाते हैं। जिससे हम बिमारियों से जुझते अकाल मौत के मुख में समा जाते हैं। इसी दुख भरी व्यथा को इस कृति में दर्शाने का छोटा प्रयास किया गया है।
*नरेश कुमार जगत*
एक कृति आदरणीय संजय कौशिक 'विज्ञात' जी की भी देखें.....
*ओले की वृष्टि -*
*बजाती माँ चिमटा*
*उल्टे तव्वे पे।*
कवि प्रकृति और समाज के किसी विलक्षणता को अपने शब्दों में पिरोकर अपनी भावनाओं को पाठक तक पहुँचाने का प्रयास करता है। जो देखता है उसे लिखता है, प्रथम बिम्ब...
*ओले की वृष्टि*
यह एक मजबूत प्राकृतिक दृश्य बिम्ब है, जो हाइकु का आधार तत्व है। हाइकु में दो ऐसे बिम्ब चाहिए होते हैं जो प्रकृति की खूबसूरती, विडम्बना या किसी संदेश को लिखा जाए और विधिवत् प्रथम बिम्ब से घनिष्ठ सम्बंध भी रखता हो। इसलिए इससे सम्बंधित दूसरा बिम्ब...
*बजाती माँ चिमटा*
*उल्टे तवे पे।*
यह बिम्ब आंतरिक रुप से प्रथम बिम्ब से संबंधित है और साथ ही एक विधान भी, कि जब भी कोई मुसीबत आन पड़ती है तब "त्राही माँ त्राही माँ" होती है, इसी मर्म को इस दूसरे बिम्ब में ओले वृष्टि की वजह से प्राकृतिक आपदा को चित्रित करने का प्रयास किया गया है। तवे को उल्टा रखना भी परम्पराओं के अनुसार परिवार में मृत्यु का सूचक होता है, (पर भिन्न-भिन्न स्थान पर भिन्न-भिन्न परम्पराएं हो सकती हैं) जो आह के क्षण को दर्शाता है और साथ ही इस विधान का ज्ञानवर्धन भी कर रहा है। ज्ञातव्य है कि इस प्रक्रिया से ओले की वृष्टि थम जाती है। (या भयंकर छाए मेघ को सूचना देना की जन मानस के अपराध क्षम्य हैं वे मर रहे हैं) यह भी हो सकता है कि पाठक इसके तारतम्य अपनी मतानुसार अर्थ में भिन्नता रख सकते हैं, जो हाइकु को और भी मजबूती प्रदान करती है।
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
नीतू जी का हाइकु सफर बहुत ही शानदार रहा है। पाठकवर्ग का उत्तम मार्गदर्शन तो कर रहा है और साथ ही प्रेरित करने के लिए भी पर्याप्त है। इसे पढ़ने के पश्चात यदि नवोदित सीखने की इच्छा से आगे हाइकु यात्रा करना चाहेगा तो उसे भी हाइकु विधा की अनुभूति के चर्मोत्कर्ष को प्राप्त कर सकेगा। बधाई एवं शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय 🙏🙏🙏 सब आपके मार्गदर्शन का परिणाम है...स्नेहाशीष बनाये रखिये 🙏🙏🙏 सादर नमन 🙏🙏🙏
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Deleteआपके इस सुन्दर सफर ने तो सखी एक अलग ही दुनिया में पहुंचा दिया।बहुत बहुत सुन्दर लेख अभिव्यक्ति व स्पष्टीकरण👌👌👌👌👌👌👌और आपका मनहरण तो वाकई में मन हर ले गया👏👏👏👏👏👏👏
ReplyDeleteआभार अनुपमा जी 🙏🙏🙏
Deleteउम्दा ।
ReplyDelete👌👌👌👌जब साथ हो हर पल गुरु सम मित्र का ,सफलता दूर रहे कैसे ।
बधाई आपको
धन्यवाद पाखी जी 🙏🙏🙏
Deleteउम्दा ।
ReplyDelete👌👌👌👌जब साथ हो हर पल गुरु सम मित्र का ,सफलता दूर रहे कैसे ।
बधाई आपको
बहुत बहुत बधाई आदरणीया पाखी जी
Deleteआपके लिखे हाइकु सफर की जितनी तारीफ की जाए कम है।लेख में नियमो को स्प्ष्ट रूप से प्रस्तृत करना व उदाहरण द्वारा समझाना और उदाहरणों का भी स्पष्टीकरण, क्या कहने।नमन आपको व आपकी लेखनी को आदरणीय🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार निधि जी 🙏🙏🙏
Deleteवाह सखी विस्तारपूर्वक आपके हाइकु का सफर पढ़कर बहुत अच्छा लगा और बहुत सारी ज्ञानवर्धक जानकारी भी मिली। आपको बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐💐💐
ReplyDeleteशुक्रिया अनुराधा जी 🙏🙏🙏
Deleteबहुत सुन्दर आपका हाइकु सफर है प्रेरणात्मक
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीया अनिता जी 🙏🙏🙏
Deleteवाह!! बहुत ही शानदार ढ॔ग से आपने अपने स्वयं के अनुभवों से इस विधा को समझाया है। लाजवाब मनहरण से आपने अपनी बात प्रारंभ की। बहुत ही सुन्दर लेख 👌👌
ReplyDeleteआदरणीय अनंत जी बहुत बहुत आभार 🙏🙏🙏
Deleteनीतू ठाकुर जी ज्ञानवर्धक प्रस्तुति, हाइकु विधा के मूल का ज्ञान, समझ ,महसूस करना ,फिर उस अनुभूति को दिखने में सरल परंतु थोड़ा सा ध्यान अगर अब्यास किया जाए तो यूं कहिए कम शब्दों में बड़ी बात वो भी चित्रण अद्भुत ।
ReplyDeleteनीतू जी आपने शिक्षिका बन हाइकु विधा को सीखने में मेरा भी मार्गदर्शन कराया जो ,अमूल्य है।
साहित्य की अद्भुत विधा हाइकु ........
बहुत बहुत आभार आदरणीय 🙏🙏🙏
Deleteबहुत सुंदर ज्ञानवर्धक लेखन
ReplyDeleteधन्यवाद सौरभ जी 🙏🙏🙏
Deleteबहुत उम्दा लेख आद0🙏🙏🌷🌷🌷
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका 🙏🙏🙏
Deleteसिलसिलेवार तरीक़े से सुंदर हायकु यात्रा..👌👌
ReplyDeleteचरैवति-चरैवति
आभार पम्मी जी 🙏🙏🙏
Deleteबहुत ही सुन्दर लेख लिखा है आपने नीतू जी सबसे पहले तो हायकु के सफर में आने वाली मुश्किलों को लिखकर पाठक और शिक्षार्थी जो एक हद के बाद निराश होते हैं कि नहीं हम हायकु नहीं सीख सकते आपका लेख पढकर सोच सकते है कि मुश्किलें आपको भी आयी और आपने सीखा तो हम भी कोशिश करेंंगे शायद सीख भी जायें ये भाव सबसे महत्वपूर्ण है....जो आपने अपना नकारात्मक पक्ष रखकर सकारात्मकता को हासिल किया अनुकरणीय है....और इस मुश्किल विधा को सीखने का जज्बा दे रहा है....शेष पूरा ही लेख बहुत ही ज्ञानवर्धक और लाजवाब है।
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण लेख के लिए बहुत बहुत बधाई आपको।
बहुत बहुत आभार सुधा जी 🙏🙏🙏 आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर बहुत खुशी हुई। आपको लेख अच्छा लगा लेखन सार्थक हुआ ....स्नेह बनाये रखिये 🙏🙏🙏
Deleteबहुत सुंदर,हाइकु के रचनाकारों के मार्गदर्शन करता हुआ उत्कृष्ठ आलेख।
ReplyDeleteआभार आदरणीय 🙏🙏🙏
Deleteनीतू जी वाकई ये सफर बहुत अच्छा रहा ,
ReplyDelete17 वर्ण और 17 नियम ..
विद्वजनों का धैर्य से सिखाना और संमीक्षा ..
ये विधा चमत्कृत कर गयी
सादर
आभार आदरणीया अनिता जी
Deleteमनहरण छंद ..मन हरने में सफल रहा ।बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया👌👌👌👌 सच कहा आपने जब तक यह विधा समझ ना आए तब तक उदास करती है और जब समझ आए तो कुछ खास करती ही ..।हार्दिक आभार आपका🙏🙏 आपके कारण ही मैं इस विधा को
ReplyDeleteलिखने और समझने के प्रयास में सफल रही ..आपके सफर ने बहुत कुछ सिखाया आभार आदरणीया 🙏🙏
धन्यवाद सुगंध जी 🙏🙏🙏
Deleteवाह !आदरणीय दीदी निशब्द
ReplyDeleteसादर
आभार अनिता जी 🙏🙏🙏
Deleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच( सामूहिक भाव संस्कार संगम -- सबरंग क्षितिज [ पुस्तक समीक्षा ])पर 13 मई २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
ReplyDeletehttps://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/05/blog-post_12.html
https://loktantrasanvad.blogspot.in
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
ज्ञानवर्धक विषय
ReplyDeleteबहुत शानदार सखी जी ज्ञानवर्धक बाते
ReplyDeleteबहुत सराहनीय ज्ञानवर्धक लेखन
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