Thursday 23 April 2020

कुसुम कोचर जी की प्रथम हाइगा...

आदरणीय श्री  नरेश कुमार जी 'जगत'
               सादर नमस्कार! सौभाग्यवश आज पूर्वाशा हिंदी अकादमी पटल पर आपसे 'हाइगा' विधा का कुशल प्रशिक्षण मिला। यह मेरे लिए अत्यंत कौतूहल का विषय था कि 5,7,5 वर्णों में 2 वाक्य और उसने भी एक कविता लिखी जा सकती हैं। दो छोटे वाक्य, जो एक दूसरे के कारक ना हो, और ना ही कथन हो फिर भी एक प्राकृतिक दृश्य को अत्यंत सूक्ष्मता व सुंदरता से वर्णित करते हो, तुकबंदी ना हो, ना ही वे तुलनात्मक हो, और सबसे बड़ी बात कि वह एक फोटो क्लिक हो, शुरुआत में सोचकर यह कठिन लग रहा था, पर यह कहते हुए गर्व महसूस हो रहा है कि आपके सुघड़ मार्गदर्शन से यह कठिन विधा भी हम सब के लिए संभव हो सकी। रंगों से चित्रांकन मेरा शौक रहा है पर शब्दों से चित्रांकन मैंने आपसे आज सीखा। यद्यपि मुझे कई बार संशोधन की आवश्यकता पड़ी पर आपके मार्गदर्शन से उत्तरोत्तर सुधार के प्रति आशान्वित हूं। मैं हृदय-तल से आप के प्रति आभार व्यक्त करती हूं। आपका मार्गदर्शन यूं ही मिलता रहे, यही कामना है।
                     -कुसुम  कोचर 
                         कोलकाता
                         23/4/20
मेरी प्रथम कृति...
आ. जगत जी की समीक्षा...
          आ.कुसुम कोचर जी आपकी प्रथम हाइगा रचना के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई, यह कृति बहुत ही सुंदर है...
       मुस्कुराहट मानव की एक भावनात्मक प्राकृतिक क्रिया है जिसे अंतरमन से ही विस्फुटित कर पाते हैं, जो ओछी नहीं हो सकती और इसके लिए हमारे समक्ष किसी खास कारण होना जरुरी है, जिससे हमारे अंदर की खुशियाँ मुस्कुराहट स्वरुप मानव पटल में नजर आता है। इससे हमारे आसपास के लोगों में भी सहज प्रसन्नता संचार हो जाता है। यह आपका सराहनीय प्रथम बिम्ब है।
       दूसरा बिम्ब आपने लिया है कि वर्षा का पानी जो बालों को भिगोया है, उसे किसी युवति ने गर्दन को झटका देकर मुस्कुराते हुए उक्त पानी के बूंदों को अपनी ओर छिटका दिया। यह बहुत ही सुंदर यौवन स्मृति का चित्रण है। हो सकता है कि युवति हमें रिझाने या छेड़ने के लिए ऐसा किया हो। इस अनुकृति में यह तो स्पष्ट है कि युवति में मादक भरी चंचल प्रवृत्ति है और यह उसके खुशियों को सहज ही बोध कराने में सफल हो रहा है। यह घटना किसी के भी साथ घटे वह अवश्य अविस्मरणीय होगा।
        इस कृति में आपने यौवनपन के एक खास पल को लेकर इस प्रकार दर्शाया है, मानो यह चित्र जीवंत हो और इसके थोड़ी ही देर पूर्व ये घटना घटी हो।
       बहुत ही सुंदर हाइगा के शिल्प में एक भावनात्मक कृति साहित्यिक पटल में प्रदान करने के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आ.कुसुम कोचर जी, सदैव ऐसे ही भावनात्मक कृतियों से हमें विभोर करती रहें।

आ.अनंत पुरोहित जी की समीक्षा...
      आदरणीया कुसुम कोचर जी को उनके प्रथम हाइगा की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ।

आपकी यह कृति इतनी सुंदर है कि इसमें समीक्षा देने का अपना लोभ मैं सँवरण न कर सका।

       इस कृति की समीक्षा करने से पूर्व हाइकु और हाइगा में कुछ अंतर जान लेना आवश्यक है। हाइकु और हाइगा दोनों ही संरचना की दृष्टि से दोनों में ही 5-7-5 का वर्णक्रम होता है। यह कृति एक चित्र के ऊपर लिखी गई है। स्पष्ट है कि यह एक हाइगा है और यह हाइगा का मूलभूत विशेषता है कि इसे किसी चित्र पर लिखा जाता है। दो जापानी शब्दों 'हाइ' और 'गा' से मिलकर बने शब्द 'हाइगा' का अर्पथ है चित्राभिव्यक्ति। परंतु यहाँ पर एक महत्वपूर्ण प्रश्न और भी विचारणीय है कि क्या संरचनात्मक दृष्टि से हाइकु की तरह दिखने वाले हाइगा का चित्र से इतर भी कोई अस्तित्व है? यदि है तो फिर सभी हाइकु को एक चित्र के साथ व्यक्त कर देने पर वह हाइगा बन सकता है। इससे स्पष्ट है कि चित्र से हटकर इसका कोई अस्तित्व नहीं हो सकता तभी यह हाइगा है। यही इस विधा को हाइकु से अलग बनाती है। चित्र से हटाकर देखने पर यह अपना अस्तित्व खो देती है।

     अब आपकी रचना पर विचार करते हैं। जब इस कृति को संलग्न चित्र के साथ देखते हैं तो प्रथम बिंब *मुस्कराहट* पूर्णतः एक स्वाभाविक क्रिया है जो मानव मन के भावों को व्यक्त करता है। चित्र में युवती की मुस्कान को व्यक्त करता सुन्दर प्रथम बिंब है आपकी कृति में। साथ ही दूसरा बिंब है *गेसुओं से छिटके वर्षा की बूँदें*। वैसे तो वर्षा हर किसी को प्यारी लगती है किंतु अक्सर यह नवयुवक/नवयुवती को खास आकर्षित करती है। ऐसे में चित्र की युवती की भीगी व बिखरी लटों ने स्पष्ट कर दिया है कि वर्षा पश्चात/दौरान युवती ने अपने बाल झटके हैं और वर्षा की बूँदें छिटक रही हैं। यह मोहक अदाएँ युवतियाँ बहुधा तब दिखाती हैं जब उनके अंतर हृदय को कोई बात गुदगुदा जाए। इस पल को पूर्णतः व्यक्त करती हुई आपकी यह कृति अत्यंत सराहनीय है।

       अब हाइकु से तुलनात्मक दृष्टिकोण पर विवेचना करें तो हम इसे चित्र से पृथक कर विचार करना होगा ऐसे में प्रथम बिंब *मुस्कराहट* अधूरा हो जाता है अतः चित्र से इतर इस कृति का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है।यही हाइगा का मूलभूत गुणधर्म है।

आपकी यह कृति एक सुन्दर हाइगा है। पुनश्च आपको कोटिशः बधाई व शुभकामनाएँ।

हाइकु विश्वविद्यालय ब्लाँँग

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