Tuesday 21 January 2020

आ. अनुपमा अग्रवाल जी के शब्दों से हाइकु...

        आज के आपाधापी के युग में मानव की भावनाओं का भी मशीनीकरण हो गया है। आज मानव के पास स्वयं के लिए समय ही नहीं है, बस मशीन की तरह भागती-दौड़ती सी जिंदगी मानव जी रहा है। ऐसे में मानव के पास स्वयं के मनोरंजन के लिए भी समय निकाल पाना असंभव सा हो गया है और मशीनीकरण के इस युग में आज बड़ी-बड़ी मोटी-मोटी पुस्तकों का महत्व भी कम होता जा रहा है। आज मानव सीमित समय में मनोरंजन प्राप्त करने के संसाधनों की तलाश कर रहा है। मानव की इसी सोच का परिणाम है--- 'हाइकु'
                         समय-समय पर साहित्यकार अलग अलग माध्यमों से जनमानस का मनोरंजन करते रहे हैं। छायावादी युग से ही कविताओं में लघुता की प्रवृत्ति परिलक्षित होने लगी थी। जिसके परिणाम स्वरूप स्वतंत्रता के पश्चात् मिनी कविता, सीपिका, क्षणिका, कणिका व कैप्सूल कविता आदि का जन्म हुआ। मानव की इसी खोज के परिणाम स्वरूप, इसी सोच के परिणाम स्वरूप जापानी साहित्य के संसर्ग  से एक नई विधा का जन्म हुआ--- जिसका नाम है---'हाइकु'।
       लेकिन हाइकु केवल मनोरंजन के लिए नहीं है।अपितु इसके जरिये हम अपनी संस्कृति से जुड़ते हैं।

                क्रमशः 5, 7, 5 वर्णों की त्रिपदी में अपने भावों को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है हाइकु।
 हाइकु 'गागर में सागर' भरने जैसा है। मात्र 17 वर्णों में पूरी कविता समाहित किए हुए होता है हाइकु। अभी जब हम हाइकु की बात कर रहे हैं तो सर्वप्रथम मन में एक विचार आता है कि, हाइकु की उत्पत्ति कहाँ, कब और कैसे हुई?

                    हाइकु की उत्पत्ति जापान में हुई। जापानी साहित्य में मुरोमुचि युग (1335 - 1573 ई.) में आशु कविता प्रतियोगिता में एक व्यक्ति 3 पंक्तियों की रचना करके छोड़ देता था तथा शेष 3 पंक्तियों को दूसरा व्यक्ति पूर्ण करता था जिसे 'रेंगा' कहा जाता था। 'रेंगा' में हास्य व्यंग प्रधान रचनाओं को 'हाइकाइ' के नाम से जाना जाता था।
           धीरे धीरे 'हाइकाइ' का स्वरूप बदलने लगा और उसमें गंभीर भावों  का भी समावेश स्वतंत्र रूप से होने लगा और फिर वही 'हाइकाइ' 'हाइकु' के नाम से प्रचलित हुआ।

      जापानी साहित्य की अन्य विधाओं में ताँका, सेदोका, चोका और सैनर्यु आदि में सबसे अधिक 'हाइकु' प्रचलित विधा है।

           'हाइकु' का जन्म पंद्रहवीं- सोलहवीं शताब्दी के आसपास हुआ है। इसके जन्मदाता सोगान (1465-1553 ई.) और मोरिताके (1472-1549 ई.) थे।

     'हाइकु' को अनेक कवियों ने परिभाषित किया है जैसे---
          संत कवि बाशो के शब्दों में----- "हाइकु दैनिक जीवन में अनुभूत सत्य की अभिव्यक्ति है। पर वह सत्य एक विराट सत्य का अंश होना चाहिए।"
      त्सुरायुकि के अनुसार---- "जापानी कविता बीज रूप में मनुष्य के हृदय में प्रस्फुटित होकर शब्दों की असंख्य कोपलों  में फूट निकलती है---- वस्तुओं  से  जगत में मनुष्य अपने नेत्रों और श्रवणेंद्रियों द्वारा प्रभाव ग्रहण करता है।"
          ओत्सुजि के अनुसार--- "निरपेक्ष स्थिति में पहुंचकर जब कवि के हृदय में गीत स्वतः फूट पड़ता है तभी वह एक सफल हाइकु की रचना में समर्थ होता है।" 
डॉक्टर सत्य भूषण के अनुसार-- "हाइकु अनुभूति के चरम क्षण की कविता है।"
 प्रोफेसर डॉ. आदित्य प्रताप सिंह के अनुसार---- "हाइकु मनुष्य के सजीव फेंफड़ों की कविता है, ख्यालों की नहीं।"
इन महान रचनाकारों के वक्तव्य से यह स्पष्ट है कि हाइकु में कल्पना के लिए कोई स्थान नहीं है। हाइकु एक बिंब आधारित कृति है अर्थात् जो दृश्य हमारी आँखें देख रही हैं वही दृश्य हम अपने हाइकु के माध्यम से पाठक को दिखाने में यदि सफल हैं तो यह एक अच्छे हाइकुकार की निशानी है और हाइकु लेखन की सफलता।
दृश्य अर्थात् देखना यानि दर्शन---
उपनिषद में कहा गया है---
"दृश्यते अनेन इति दर्शनम्।"
अर्थात् जिससे देखा जाये अथवा सत्य के दर्शन किये जायें वह दर्शन है।यानि कि जिस वस्तु या बिंब को देखा गया, उसकी सटीक विवेचना ही हाइकु है।
         
हाइकु एक प्रकृति आधारित विधा है।इसमें प्राकृतिक बिंब का होना अनिवार्य है।एक बिंब प्राकृतिक हो और दूसरा बिंब प्रथम बिंब को पूर्णता प्रदान करता हो। 
प्रथम बिंब पाँच वर्ण का होना चाहिए तथा द्वितीय  बिंब बारह वर्ण का जो क्रमशः सात और पाँच वर्ण की दो पंक्तियों में विभक्त किया गया हो।हाइकु ऐसा हो जिसे पढ़ते ही पाठक के मुख से आह! या वाह! निकल उठे,अर्थात् हाइकु में आह या वाह के पल भरपूर होने चाहिए।आईये अब इस विधा को एक उदाहरण के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं।......

श्रावण अंत~
कागजी नाव पर
राखी व टाॅफी।

हाइकुकार---

अनुपमा अग्रवाल 

अब इस कृति में प्रथम बिंब है....
श्रावण अंत----
जो एक समयसूचक शब्द है----
इस तरह के समयसूचक या ऋतुसूचक शब्दों को 'कीगो' कहा जाता है एवं 'कीगो' का प्रयोग रचना को सौंदर्य प्रदान करता है।
श्रावण अंत से पाठक के मन में छवि बनती है श्रावण मास के अंतिम दिन की....जिस दिन रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है परन्तु हमने अपनी कृति में कारण फल के दोष से बचने के लिए रक्षाबंधन के स्थान पर श्रावण अंत का प्रयोग किया है।
        अब देखते हैं दूसरा बिंब-----
कागजी नाव पर राखी व टाॅफी----
जिसे हमने दो भागों में विभक्त किया----

कागजी नाव पर
राखी व टाॅफी----ये दोनों वाक्य अपने आप में पूर्ण हैं और इन्हें संयोजक शब्द में से जोड़ा गया है।
अब इस वाक्य का अर्थ पाठक अपने हिसाब से निकालेगा और यही हाइकु की सुन्दरता है।
किसी पाठक को लग सकता है कि बारिश  का मौसम है और बच्चे खेल रहे हैं इसलिए कागज की नाव पर राखी व टाॅफी रखे हुए हैं----जिसमें भरपूर वाह के पल हैं ।
वहीं दूसरी ओर किसी पाठक को ये भी लग सकता है कि एक गरीब बच्ची को उसके माता-पिता ने विवशतावश बेच दिया है और उसे खरीदने वाले लोग उस पर अत्याचार करते हैं और उसे अपने भाई से मिलने नहीं जाने दे रहे अतः वह कागज की नाव पर रखकर राखी व टाॅफी अपने भाई तक पहुंचाने का प्रयास कर रही है।यहाँ पाठक को भरपूर आह के पल दिखाई देंगे।
और यही हाइकु की विशेषता है ...सीमित शब्दों में असीमित अर्थ।

अब ऐसे ही एक और कृति पर दृष्टिपात करते हैं----

मक्के का खेत~
गौरैया की चोंच में 
फलीछेदक।

हाइकुकार---

अनुपमा अग्रवाल 

अब इस कृति में प्रथम बिंब है----मक्के का खेत
जिसे पढ़ते ही पाठक की आँखों के सामने मक्के के खेत का दृश्य बनता है।
अब द्वितीय बिंब---
गौरैया की चोंच में फलीछेदक
ये दूसरा वाक्य जिसे दो भागों में विभक्त किया।और यहाँ भी संयोजक शब्द में का प्रयोग दोनों स्वतंत्रत वाक्यों को जोड़ने के लिए किया गया है।
      हाइकु प्रकृति प्रधान विधा है।अतः ये एक सुन्दर प्राकृतिक बिंब है।आज जबकि फोन टावर के कारण गौरैया चिड़िया जो कि लुप्तप्राय होती जा रही है उसका दिखाई देना एक भरपूर वाह का पल है।गौरैया मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र है।वो खेत को नुकसान पहुंचाने वाले कीट पतंगों को स्वाभाविक रूप से खाकर फसल की रक्षा करती है।और गौरैया के मुख में फलीछेदक कीड़ा इस बात का सबूत है।जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है ये कीड़ा किसी भी  फली में छेद कर देता है और फसल को नष्ट करके उसे भीतर से खोखला कर देता है।

          हाइकु लेखन में एक बात जो विशेष ध्यान देने योग्य है वह है कटमार्क(~)का प्रयोग---कटमार्क का प्रयोग दो वाक्यों को पृथक करने में तो सहायक है ही, साथ ही बिंब के स्पष्टीकरण में भी सहायक है।

 अब एक और कृति आदरणीय संजय कौशिक विज्ञात जी की देखते हैं और उस पर उनके विचार-----

मेघ गर्जना ~
कांस्य बर्तन पर
विद्युत कांति।

प्रथम बिम्ब *मेघ का गर्जन* एक प्राकृतिक एक पल की घटना है जो कृति में सुशोभित है। इस प्राकृतिक बिम्ब के साथ दूसरा दृश्य बिम्ब किसी दहलीज के संचालन (गैरजिम्मेदारी) का बखान को रखे उपरोक्त शब्द हाइकु को बेहतरीन बना रहा है। यह साधारण दृष्टि से देखा जाए तो सामान्य दृश्य है परंतु इसमें एक खास संदेश भी छिपा है, वह यह है कि काँस्य बिजली का सुचालक है और जब भी गर्जना की संभावन नजर आती है तो लोग सबसे पहले काँस के बर्तनों को बिजली की चमक से दूर करने का प्रयास करते हैं। ऐसी परिस्थिति में यहाँ काँसे का बर्तन खुले में है तो कभी भी बिजली का गाज आ सकता है जो आह के पल को मजबूत कर रहा है।

हाइकुकार-----

संजय कौशिक 'विज्ञात'

                  कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि हाइकु यथार्थ व प्रदत्त नियमों पर आधारित सीमित वर्णों में एक सारगर्भित रचना है।जिसका मूल उद्देश्य अपने द्वारा देखी गयी प्राकृतिक हलचल का सीमित वर्णो में संबंध दिखाना है जो कि कारण/फल से परे हो।


अनुपमा अग्रवाल

22 comments:

  1. वाह्ह बहुत ही सटिक और सारगर्भित लेखन हाइकु को समर्पित आदरणीया अनुपमा जी। आपने पूर्ण परिचय और उसके गुणधर्म सहित सरलता से समझने को आसान शब्द देने में सफल हुए। हार्दिक बधाई 💐💐💐

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  2. बहुत ही सारगर्भित व्याख्या की है आपने दी... बहुत सी ऐसी बातें जानने को मिली आपके लेख से, जिनसे अभी तक अनभिज्ञ थे। बहुत शुभकामनाएँ 🌷🌷🙏🙏

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  3. बहुत ही सारगर्भित लेख, जानकारी से भरपूर। आपने हाइकु को आम पाठक एवं नवोदित लेखकों के लिए इस लेख के माध्यम से काफी महत्वपूर्ण जानकारी दिया है जो उन्हें लेखन में सहायक होगा। शानदार लेख के लिए बहुत बहुत बधाई

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  4. वाह बहुत सुंदर और सटीक जानकारी के साथ बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख लिखा सखी👌👌👌👌

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  5. बहुत ही सुंदर,सारगर्भित लेख✍️👌👌💐💐🙏🙏

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  6. सटीक एवं सारगर्भित लेख������ हाइकु विधा की सूक्ष्म एवं सुन्दर व्याख्या जो पाठक को मजबूर करती है कि वह एक बार अवश्य प्रयास करे इस विधा को पूर्णतः समझने का ।बहुत सुन्दर उदाहरण ������आह या वाह का सफर
    अति सुन्दर आदरणीया ������

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  7. हाइकु विधा पर महत्वपूर्ण सारगर्भित लेख💐🙏

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  8. बहुत ही सुन्दर सारगर्भित और ज्ञान वर्धक लेख...
    शानदार हायकू उदाहरणों के साथ।

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  9. बहुत बढ़िया वर्णन किया है अनुपमा आपने। आप बधाई की पात्र हैं।

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  10. Well written mausi.... very knowledgeable indeed

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  11. कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि हाइकु यथार्थ व प्रदत्त नियमों पर आधारित सीमित वर्णों में एक सारगर्भित रचना है।जिसका मूल उद्देश्य अपने द्वारा देखी गयी प्राकृतिक हलचल का सीमित वर्णो में संबंध दिखाना है जो कि कारण/फल से परे हो .... सार गर्भित लेखन , आपने हाइकु की सरलता के गुण बता कर मार्गदर्शन कर कृतार्थ किया है धन्यवाद। बधाई एवं शुभकामनाएं🌸🌸🌸🌸🌸

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